दोस्तों, हर मानव के जीवन में शिक्षा का बहुत ही विशेष महत्व है । शिक्षा के बिना कुछ भी हासिल करना संभव नहीं है। शिक्षा वह चीज है जो एक मनुष्य को सभ्य, अनुशासित व ज्ञानवान बनाने में मदद करता है। इस वर्तमान समय में शिक्षा की प्रणाली जो है वो बिलकुल नये दिशा में ले जाने के लिए मार्गदर्शक है। क्योंकि ये प्राचीन शिक्षा प्रणाली भारत देश के नये शिक्षा प्रणाली से बिलकुल अलग है। शिक्षा प्रणाली के बदलाव का मुख्य कारण है की भारत की शिक्षा को डिजिटल प्रणाली शिक्षा की तरफ ले जाना है।
आज के वर्तमान समय में जिसके पास शिक्षा का ज्ञान नहीं है उन्हें एक तरह से लोग पशु के समान समझते है। इसलिए वर्तमान सरकार द्वारा ये कोशिश किया जा रहा है की नए प्रणाली तहत सभी लोगों को शिक्षा दिया जा सके। शिक्षा के महत्व को समझते हुए प्रायः सभी को शैक्षणिक गतिविधियों को ही वरीयता दिया जाता है।
प्राचीन भारत के समय में शिक्षा प्रणाली गुरुकुल पर आधारित हुआ करती थी । जबकि इस वर्तमान समय में संशोधित करके ज्ञान विज्ञान के साथ नए – विषयों को समाहित किया जाता है। जो की सबसे अच्छा उदाहरण कंप्यूटर शिक्षा है, जिससे मनुष्य के जीवन में बहुत ही सहज, सुंदर व सुविधाजनक प्रदान हुआ है।
प्राचीन भारत में शिक्षा का महत्व
देखा जाये तो प्राचीन काल में शिक्षा का बहुत ही बड़ा महत्व रहा है। उस समय की सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा का आरम्भ सबसे पहले भारत देश में हुआ था । प्राचीन समय में शिक्षा का स्थान सबसे शुद्ध माना जाता था क्योंकि उस जो गुरुकुल जाकर शिक्षा प्राप्त करता था। उसका आचरण और व्यवहार अच्छा हो जाता था।
प्राचीन काल में शिक्षा की प्राप्ति दूर स्थित वन में गुरुकुल जो नगरों व शोर-शराबों हमेशा दूर रहता था। वह एकदम शांति मन से सभी शिष्य बैठ कर शिक्षा की प्राप्ति करते थे। शिक्षा का संचालन ऋषि – मुनियों द्वारा किया जाता था।
उस समय में विद्यार्थियों को ब्रह्मचर्य का पालन भी किया करते थे और अपने गुरु का आज्ञा का पालन करते थे। गुरु द्वारा की गयी सभी बातों को बड़ी गौर से सुनते थे तथा जो गुरु द्वारा कार्य दिया जाता था उसे हर हाल में पूरा करते थे।
प्राचीन काल के समय के विद्यालय तक्ष शिला और नालंदा है। जहाँ पर विदेशी लोग भी आकर इसमें शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करते थे। जब तक मध्य युग आ नहीं गया तबतक भारत देश को परतंत्रता का सामना करना पड़ा था।
फिर मुसलमानों द्वारा अरबी फारसी शिक्षा का प्रसार हुआ। इसके बाद जब 18वी तथा 19वी शताब्दी आयी उस समय तो स्त्रियों के लिए शिक्षा एक तरह से समाप्त ही हो गयी थी।
नवीन शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता
जब हमारा भारत देश आज़ाद है तो उस समय ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ही थी। जो हमारे शिक्षा प्रणाली का अनुकूल नहीं थी। उस समय गाँधी जी द्वारा शिक्षा के विषय को समझाया गया की शिक्षा का अर्थ है की बच्चो को शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का विकास होना चाहिए। इसके शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए अनेक समितियाँ बनायीं गयी।
इस समिति द्वारा यह योजना बनाई गयी की जो तीन साल के भीतर 50% शिक्षा का प्रसार किया जा सके। उसके बाद सेकेंडरी शिक्षा का निर्माण किया गया। जो की विश्वविद्यालय द्वारा समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की गयी परन्तु सफल नहीं हो पाया।
फिर बाद में बेसिक शिक्षा समिति बनाई गयी जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में बेसिक शिक्षा अंक प्रसार अच्छे हो सके। इसके लिए बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया।
नए शिक्षा नीति का लाभ
इस समय जो वर्तमान में शिक्षा प्रणाली का सुधार किया गया है की, लोगों के लिए रोजगार भी मिल सके। अर्थात वर्तमान समय में अच्छी शिक्षा प्राप्त करके खुद का रोजगार के लिए स्टार्टअप की शुरु वात कर सके।
इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली नीति के तहत कई नये विश्वविद्यालय व महाविद्यालय खोले जायेंगे। जिससे ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिक्षा की प्राप्ति हो सके। जिन बच्चों का पढाई में मन नहीं लगता है वो देश व समाज में अनुशासनहीनता तथा अराजकता पैदा करते है।
जब विश्वविद्यालय और महाविद्यालय नए खुलने से जो बच्चे 10वी और 12वी के बाद आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते थे। उनके लिए यह एक सुनहरा मौका होगा। वे बच्चे अपन मनपसंद कोर्स को लेकर पढाई कर सकेंगे।
निष्कर्ष
अगर भारत देश की बात की जाये तो वर्ष 2011 के जनगणना के आकड़ों अनुसार इस वर्तमान समय में देश की कुल साक्षरता दर 73.0 प्रतिशत है।
इसलिए शिक्षा सभी के लिए बहुत जरूरी है। अगर देश के सभी नागरिक शिक्षित होंगे तो बेरोजगारी दर अपने आप समाप्त हो जायेगी।