भारतीय समाज में नारी का स्थान, भारतीय समाज में स्त्रियों का महत्वाकांक्षी और प्रतिष्ठित स्थान है, जो कई पारंपरिक मान्यताओं और समाजिक धारणाओं का पालन करता है। पत्नी को पुरुष की अर्धांगिनी के रूप में माना जाता है, जिससे साथियों के रूप में उनका समर्थन और सहायता का महत्व माना जाता है। स्त्रियों को माता, बहन, पत्नी, और समाज के स्तम्भ के रूप में भी देखा जाता है।
स्त्रियों का यह महत्वपूर्ण स्थान भारतीय संस्कृति और धार्मिक धारावाहिकता में भी प्रतिफलित होता है, जहां देवी और देवताओं की पूजा और उनकी आराधना की जाती है। इसे दृष्टिकोण से देखा जाता है कि जहां स्त्री की पूजा होती है, वहां देवता भी प्रसन्न होते हैं।
तार के बिना वीणा और धुरी के बिना रथ का पहिया बेकार होता है, उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन अधूरा होता है। भारतीय ऋषियों ने इस सत्य को बहुत पहले ही स्वीकार किया था। वैदिक काल में मनु ने यह घोषणा की थी कि जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं, इससे नारी की महत्ता को प्रस्तुत किया गया था।
भारतीय समाज में नारी का स्थान
- वैदिक काल: वैदिक काल में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में नारी की उपस्थिति आवश्यक थी। कन्याओं को पुत्रों के बराबर अधिकार प्राप्त थे, उनकी शिक्षा दीक्षा का समुचित प्रबन्ध था। मैत्रेयी, गार्गी जैसी स्त्रियों की गणना ऋषियों के साथ होती थी।
- प्राचीनकाल की नारी: कोई भी क्षेत्र नारी के लिए वर्जित नहीं था। वे रणभूमि में जौहर दिखाया करती थीं तथापि उनका मुख्य कार्य क्षेत्र घर था। दुर्भाग्य से नारी की स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा।
- पतन का युग: मुस्लिम काल में नारी के सम्मान को विशेष धक्का लगा। वह भोग विलास की सामग्री बन गई और उसे पर्दे में रखा जाने लगा। उससे शिक्षा व स्वतन्त्रता के अधिकार छीन लिए गए।
- वीरांगनाएँ: मुस्लिम युग में पद्मिनी, दुर्गावती, अहिल्याबाई सरीखी नारियों ने अपने बलिदान एवं योग्यता से भारतीय नारी का गौरव बढ़ाया। सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में झाँसी की रानी को कौन भूल सकता है।
- नारी के विशेष गुण: भारतीय इतिहास की सारी उथल-पुथल के बाद भी भारतीय नारी के कुछ ऐसे गुण उसके चरित्र से जुड़े रहे, जिनके कारण वह विश्व की नारियों से पूरी तरह अलग रही। नम्रता, लज्जा और मर्यादा ये विशेष गुण हैं, जो भारतीय नारी को गौरवान्वित करते हैं।
पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव:
- अभिप्रेरणा के साथ पश्चिमी आदर्श – आज की भारतीय समाज में पश्चिमी विचारधारा का प्रभाव प्रमुख है। नारी के समाज में नए रूप की भूमिका – नारी की सामाजिक स्थिति में बदलाव के लिए पश्चिमी आदर्शों का प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। अपने-अपने कर्तव्यों की कमी – परिवार और समाज में नारी की अधिक सक्रियता के कारण, कई मामलों में वह अपने परिवार के लिए कर्तव्यों का पालन नहीं कर पा रही है।
वर्तमान स्वरूप:
- स्वतंत्रता और स्वाधीनता – नारी को आजादी और स्वतंत्रता की महत्वाकांक्षा अच्छी है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक अपनाना आवश्यक है। आधुनिकता का सही समावेश – नारी को आधुनिकता के साथ अपनी भूमिका को सही समय पर संतुष्ट करना चाहिए, ताकि वह परिवार और समाज के लिए सकारात्मक योगदान कर सके।
नारी का देवी स्वरूप:
- नारी की महिमा – भारतीय समाज में नारी को देवी स्वरूप में माना जाता है। उन्हें धैर्य, त्याग, ममता, क्षमा, स्नेह, समर्पण, सहनशीलता, करूणा, दया और परिश्रमशीलता जैसे गुणों से परिपूर्ण माना गया है।
नारी का समाज में स्थान:
- अद्वितीय भूमिका – भारतीय समाज में नारी को गृह स्वामिनी, गृहिणी, अद्र्धागिनी, गृह लक्ष्मी, आदि अलंकारों से सुशोभित माना गया है।
- सामाजिक परिवर्तन – भारतीय समाज में नारी के सम्मान में विभिन्न कालों में परिवर्तन आया है। वैदिक काल में उन्हें महत्व दिया गया था, लेकिन उत्तर वैदिक काल में उनकी स्थिति में कमी आई। वे अब घर के चारों दीवारों में बंद रहतीं थीं और समाज में अपने अधिकारों का हानि होता देखा गया। तत्कालीन संत, कवियों, और लेखकों ने उन्हें केवल घर की चार दीवारों का हिस्सा माना, जिससे उनका स्वाभिमान और आत्मविश्वास कम हो गया।
कितनी बढ़ी महिलाओं की साक्षरता दर?
भारत में आज भी कई लड़कियाँ शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। उन्हें पढ़ाई करने का अधिकार नहीं मिलता, जिससे उनके स्वप्नों की पंख निकाली जाती है। अक्सर बीच में ही स्कूल छोड़ देने वाली लड़कियाँ अपने पढ़ाई को छोड़ना पड़ता है, क्योंकि उन्हें घर के काम में मदद करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। कई लड़कियाँ उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती हैं, क्योंकि उनके परिवार उन्हें पढ़ाई के लिए घर से दूर नहीं भेजना चाहते हैं। इस संदर्भ में लड़कियों को समाज में इस संतान के लिए कई बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में मुश्किलें आती हैं।
1951 में भारत की साक्षरता दर केवल 18.3 फीसदी थी, जिसमें महिलाओं की साक्षरता दर 9 फीसदी से भी कम थी। विपरीतता के साथ, 2021 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के डेटा के अनुसार, देश की औसत साक्षरता दर 77.70 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 84.70 प्रतिशत थी, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 70.30 प्रतिशत थी। यह सांकेतिक है कि महिलाओं की साक्षरता में वृद्धि हुई है, लेकिन इसमें अभी भी संतोषजनक वृद्धि की कमी है।
आर्थिक रूप से कितनी सक्षम हैं भारतीय महिलाएँ
महिलाओं की अधिकांश समस्याएं आर्थिक रूप से परनिर्भरता से जुड़ी होती हैं। देश की कुल आबादी में 48 फीसदी महिलाएँ हैं, जिनमें से केवल एक तिहाई महिलाएँ रोजगार में संलग्न हैं। इससे भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फीसदी है। परिवार और समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त करके उन्हें अर्थव्यवस्था में पुरुषों के समान भागीदारी के अवसर प्रदान किए जाएं, तो वे भी सशक्त हो सकती हैं। इससे देश की आर्थिक मोर्चे पर तेजी से प्रगति हो सकती है।
निष्कर्ष
समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त करना और उन्हें आर्थिक मोर्चे पर पुरुषों के समान भागीदारी में शामिल करना आवश्यक है। यह न केवल समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाने में मदद करेगा।
FAQs
भेदभाव का मुख्य कारण ऐतिहासिक सांस्कृतिक और सामाजिक धाराओं में है, जो महिलाओं को पुरुषों से अलग और कमजोर मानती हैं।
शिक्षा, सामाजिक संगठनों में शामिल होकर, और समाज में जागरूकता फैलाकर, महिलाओं को अपने अधिकारों की जागरूकता मिल सकती है।
हां, कई क्षेत्रों में समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है, जैसे शिक्षा, रोजगार, और राजनीति में भागीदारी।
हां, अर्थिक रूप से सशक्तिकरण महिलाओं की स्थिति में सुधार ला सकता है, क्योंकि यह महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिति में उनकी सुधार कर सकता है।
समय के साथ, लोगों की सोच में शिक्षा के प्रति सकारात्मक परिवर्तन आया है, और अब महिलाओं की शिक्षा को अधिक महत्व दिया जा रहा है।
नहीं, अक्सर महिलाओं को उच्च शिक्षा के लिए उत्तरदायित्व सही समझा नहीं जाता है, जिससे उन्हें इसमें भाग लेने में कठिनाई होती है।
हां, कई महिला संगठन और गैर-सरकारी संगठन महिलाओं के संघर्ष में भूमिका निभा रहे हैं, जैसे नारी निर्माण एवं विकास संगठन, महिला मोर्चा, और अन्य।
हां, महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करना संभव है, लेकिन इसके लिए समाज के सभी स्तरों पर जागरूकता और समर्थन की आवश्यकता है। भारतीय समाज में नारी का स्थान
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