पर्वों का बदलता स्वरूप । त्यौहारों का बदलता स्वरूप

भारत देश में बहुत से पर्व होते है । हमारा भारत रंग-बिरंगी त्योहारों  के लिए महशूर है । जैसे दीवाली, होली, क्रिस्मस और भी कई सारे त्यौहार है । ऐसे त्यौहार हमारे जीवन में खुब सारी खुशिया लाती है । पहले से लेके अब तक हमारे देश में कई त्यौहार आये और लुप्त हो गये या तो उसे बनाने का तरीका बदल गया । त्यौहार अब भी वही है पर उसे बनाने का तरीका बदल गया।

हिन्दू धर्म में दिपावली सबसे बड़ा त्यौहार है, और दिपावली सबका मनपसंद त्यौहार भी है । पहले समय में दिपावली आने के एक-दो महीनो से ही तैयारी करना शुरू कर देते थे । अपने घरो की साफ सफाई और अपने  घरो के आस-पास की सफाई करने लगते थे । दिपावली त्यौहार के कई महीनो पहले से ही चारो तरफ खुशिया छा जाती थी और बच्चे नये नये कपडे लेने लगते थे, पटाके लेने लगते थे।

कई लोग तो गाँव भी जाते थे दिवाली मानाने के लिए । लेकिन आज के लोगो के पास इतना टाइम नही है, की वो कुछ महीने पहले से ही साफ सफाई करना शुरू करे कुछ लोग तो साफ सफाई नौकरी या किसी कर्मचारी से करवाने लगते है । जिससे वो दिवाली का आनंद पहले जैसा नही ले पाते है।

त्यौहारो की रौनक 

पहले समय में दिवाली के कुछ महीनो पहले से ही दुकाने सजी हुई दिखती थी । बाजारों में खरीदारी के लिए भीड़ लग जाती थी । दोस्तों, रिश्तेदारों और अपने लिए क्या लेना है, ये सब कुछ महीने पहले से ही सब सोचने लगते थे । और दिवाली के दिन सब लोग तैयार होकर एक दूसरो को बधाईयाँ देने जाते थे । पर अब सब लोग एक- दुसरे को मोबाइल से ही बधाईयाँ दे देते है । क्योकि उनके पास समय नही रहता है।

होली भी हमारे देश का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है । पहले होली के दिन सब एक दुसरे को अबीर (गुलाल) लगा कर गले मिलते थे और बड़ो का आशीर्वाद लेते थे, और बच्चे तो कुछ दिन पहले से ही पिचकारियो से रंगों की होली खेलने लगते थे।

लेकिन अब के लोगो के पास समय नही है ।  पहले से होली खेलने का अगर गलती से कोई बच्चा होली के पहले किस पे रंग डाल भी दे तो बड़े गुस्सा करते है। पहले की तुलना में अब के लोग होली में कम मनोरंजन करते है, और होली की बधाईयाँ भी अब मोबाइल और इन्टरनेट द्वारा देने लगे है।

पर्वों का बदलता स्वरूप

नवरात्री भी भारत का एक अनोखा त्यौहार है । पहले के लोग नवरात्री की रात में राम लीला करते थे । बच्चे भी कोई भगवान राम कोई लक्ष्मण, हनुमान तो कोई सीता माँ बनती थी, और पुरे नौ-रात राम लीला का आयोजन होता था । सब परिवार एक साथ मिलकर इसका आनंद उठाते थे । परन्तु अब के समय में इस तरह की नवरात्री नही मनाई जाती है। कोई करता भी है तो लोग तरह – तरह की कमियाँ निकलने लगते है।

क्योकि किसी के भी पास पुरे नव रात का समय नही रहा बस कुछ घंटो के गरबा या डांडिया जैसा आयोजन होता है । अब पहले की तरह सबके मन में माताजी के लिए मन में श्रध्दा भी नही रही, सिर्फ नाम के लिए नवरात्री त्यौहार रह गया है।

पर्वों का बदलता स्वरूप का यही कारण है की बढती महगाई और विज्ञान में तरक्की । महगाई के वजह से सब दो वक्त की रोटी कमाने में व्यस्त है, और विज्ञान तकनीकी की वजह से सब अपनों से दूर हो रहे है । परन्तु हमें अपने विज्ञान पर गर्व है पर लोग उस चीज गलत फायेदा भी उठाते है।

निष्कर्ष

पहले की परम्पराओ का पालन करना हमारा कर्तव्य ही नही बाकि धर्म भी है । इसलिए जो त्यौहार जिस तरह से मनाया जाता था । हम कोशिश करे की अब भी हम उसी तरह से सब मिलजुल कर मनाने की कोशिश करे । त्यौहार को हमें उत्साह और खुशी के साथ मनना चाहिए ।

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