दोस्तों. शिक्षा का माध्यम का अर्थ होता है की वह संसाधन जिससे हम सही ढंग से अपनाकर कुछ ग्रहण कर सके । हर शिक्षा के माध्यम पर विचार करने से पहले उसकी जाँच पड़ताल कर लेना चाहिए । हम शिक्षा की माध्यम से लोगों के अंदर की क्षमता व शक्तियों को सही दिशा में ले जाने की कोशिश करते है ।
इसका मुख्य उद्देश्य है की हम सभी को सफलतापूर्वक शिक्षा तभी दे सकते है जब हम लोगों के उनके माध्यम से उन्हीं के भाषा में शिक्षा पद्धति को लागू करें।
स्वतंत्र भारत में विद्यार्थियों को शिक्षा समझने व जानने में देरी लगती है क्योंकि यह शिक्षा पद्धति पुरानी है । छात्रों को अपने माध्यम के भाषा में न जानकर दूसरे माध्यम में जाने पर उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ता है । कोई भी चीज उन्हें समझने में देरी होती है, जिससे उनका आने वाला भविष्य पिछड़ जाता है।
इसका एक ही उपाय है की शिक्षा पद्धति को बदलकर उसे एक सार्वदेशिक माध्यम की निश्चितता की जाये । जिससे शिक्षा, शिक्षार्थी तथा राष्ट्र का भला हो सकता है । भारत देश में विविधता की वजह से शिक्षा का कोई एक निवारण अंतिम निर्णय नहीं हो पाता है । क्योंकि सभी के भिन्न – भिन्न प्रकार के विचार आते है।
शिक्षा का महत्व
शिक्षा का वास्तव में देखा जाये तो लोगों को पढ़ना लिखना तथा खुद विकसित करना होता है । लेकिन एक व्यक्ति शिक्षा द्वारा तभी अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है । जब उसे उसी के माध्यम से उसी भाषा दिया जाये जिससे बच्चा शुरु वात से समझता है।
इसके अनुसार स्कूलों में मातृ भाषा से सम्बन्ध रखने वाले माध्यम से अगर शिक्षा दी जाती है, तो वो स्कूल की शिक्षा बहुत अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है । क्योंकि मातृ भाषा वह भाषा होती है, जिससे बचपन में एक युवा अपने माता-पिता से सिखता है।
मातृ भाषा में शिक्षा
मातृ भाषा वह भाषा होती है, जो एक निश्चित समुदाय, वर्ग तथा स्थान पर बोली जाती है । इस भाषा की बोलचाल घर के साथ बाहर अपने गली मुहल्लों में दोस्तों के साथ तथा समुदाय में किया जाता है । शिक्षकों द्वारा ये भी माना जाता है की बच्चों को उन्हीं की भाषा में निर्देश व समझाना सरल व सुलभ होता है।
बच्चे सब को देखा जाये तो वो अपने मातृ भाषा में घरेलू रूप से अच्छे से परिचित होते है । वे अपनी भाषा में लिपि, व्याकरण और साहित्यिक को अच्छे समझ जाते है । लेकिन वही किसी दूसरे माध्यम से शिक्षा दी जाति है तो उनको समझने में परेशानी होती है और उसे सीखने में समय लगता है।
हालाँकि ऐसी कोई चीज नहीं है जो कोई सीखना चाहे और वो सीख न सके । बहुत लोग अपने मातृ भाषा को छोड़कर दूसरे माध्यम की भाषा को सीखने में समय लगता है, लेकिन सीखते भी है।
राष्ट्र भाषा या अंतरराष्ट्रीय भाषा
हमारे मातृ भाषा के अलावा एक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा का प्रयोग में लाया जाता है । राष्ट्रभाषा वह भाषा होती है जो देश के अंदर विभिन्न भागो में बोली जाती है । एक तरह से यह एक संपर्क की भाषा होती है ।
यह न तो केवल एक समुदाय या क्षेत्रीय भाषा के साथ सरकारी कार्यों तथा सार्वजनिक जगहों पर उपयोग होकर केवल एक आम भाषा बन जाती है । जैसे की भारत देश में हिंदी भाषा को संवैधानिक स्थान प्राप्त है।
देश में एकमत का अभाव होना
भारत देश को ब्रिटिश शासन से आजाद हुए लगभग 75-76 वर्ष हो चुके है, परन्तु अभी तक शिक्षा के माध्यम में कौन सी भाषा का उपयोग होना चाहिए । इसका निर्णय किसी अंतिम चरण तक नहीं पहुँच सका है । अभी तक सिर्फ तीन भाषाओं को ज्यादा उपयोग होता आ रहा है, जो की अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय तौर पर, हिंदी राष्ट्रीय तौर पर तथा मातृ भाषा जो क्षत्रिय के आधार पर होती है।
इसलिए हर विद्यार्थी को आगे बढ़ने में दिक्कत होती है क्योंकि वह पहले तो क्षेत्रीय भाषा शिक्षा प्राप्त करता है फिर उसके बाद उसे हिंदी या अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा प्राप्त करना पड़ता है ।
क्योंकि अगर आपको अपने जीवन में अच्छे से सफलता प्राप्त करनी है तो 2 – 3 भाषा कि जानकारी होनी चाहिए, खासकर अंग्रेजी जो इस समय हर कोई उसी के पीछे भाग रहा है । लोगों को लग रहा है इसके की बिना वो कुछ नहीं कर पाएंगे।
निष्कर्ष
हम सभी के लिए यही उचित रहेगा की अपने मातृ भाषा को ही शिक्षा का माध्यम बनाया जाए । जो जिस भाषा को शुरवात से बोलचाल में उपयोग करता रहता है उसे उसी माध्यम में हर चीज समझने में सहजता महसूस होता है । हालाँकि देश शिक्षण संस्थानों जो माध्यम का प्रयोग होता है, वह लोगों के सलाह के बाद ही किया जाता है।
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