प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध। Hindi Essay on Adult Education

प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ होता है, की वो स्त्री – पुरुष जो शिक्षा से बिलकुल वंचित रह गये है । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जो लोग बिना शिक्षा प्राप्त किये 15 – 35 वर्ष निकल गया है, वे लोग को इस विकल्प में आते है । क्योंकि वह लोग अब शिक्षा प्राप्त करके ज्यादा कुछ कर नहीं सकते है।

ऐसे लोग को तब शिक्षा का अनुभव महसूस करते है जब वह आधारभूत शिक्षा, कौशल विकास (व्यावसायिक शिक्षा), तथा अन्य शिक्षा जो उसको आगे जीवन में बढने में मदद करता है । वह इस तरह के आवश्यक तरह के ज्ञान की जरूरतों को महसूस करता है।

हमारे भारत देश में लंबी सदियों से देखा जाये तो की कमियों के कारण साक्षरता बनी रही है । लोगों तक शिक्षा का माध्यम किस रूप में पहुँचाया जाये इस पर अभी भी सही निर्णय तक नहीं पहुँच सका है । दूसरे शब्दों में देखा जाये तो अशिक्षित होने के कई कारण है जैसे किसी के लिए निर्धनता व घर – परिवार की आवश्यकता इस सब की बाधा बनती है।

प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य

इस प्रौढ़ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है की उन व्यक्तियों को शैक्षिक विकल्प देना है, जिन लोगों ने शिक्षा प्राप्त करने अवसर गवा दिया है । इसके साथ ही जिन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के अवसर वाला आयु पार कर चुके है । क्योंकि अब वे साक्षरता, आधारभूत शिक्षा तथा अन्य शिक्षा के सहित किसी और तरह के ज्ञान की आवश्यकता महसूस करते है।

इसलिए प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा पहले पंचवर्षीय योजना का कार्यक्रम की शुरु वात हुई । जिनमें से सबसे प्रमुख राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एन एल एम) रहा है, जिसके तहत समयबद्ध तरीके से 15 – 35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरु वात हुई थी।

प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्य के तहत 10वि योजना के अवधि के अनुसार अंत तक लगभग 127.45 मिलियन लोगों को साक्षर किया । जिसमें से लगभग 60% महिलाये तथा 40% पुरुष थे । इसमें लगभग 23% अनु सूचित जाति तथा 12% अनु सूचित जनजाति से सम्बन्धित लोग थे।

इस साक्षरता अभियान के अंतर्गत 597 जिला को शामिल किया गया था, जिनमें से समग्र 502 साक्षरता के पश्चात चरण तथा 328 सतत शिक्षा चरण में पहुँच गये है।

जनगणना तहत साक्षरता की प्रतिशत दर

वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार पुरुष की साक्षरता दर 75.26 % दर्ज की गयी थी । जबकि महिला की साक्षरता दर 53.67 % जो की अस्वीकार्य स्तर पर थी । उस समय जनगणना के दौरान यह पता चला की साक्षरता की कमी लैंगिक व क्षेत्रीय भिन्नताएँ मौजूद रही है।

उसके बाद सरकार द्वारा प्रौढ़ शिक्षा तथा कौशल विकास को मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने 11वी योजना के तहत दो स्कीम साक्षर भारत और प्रौढ़ शिक्षा एवं कौशल विकास हेतु स्वैच्छिक एजेंसियों की सहायता से स्कीम की शुरु वात की थी।

फिर 2011 की जनगणना से यह प्रकट होता है की भारत ने साक्षरता में उल्लेखनीय प्रगति की है ।  भारत देश की साक्षरता दर 72.98 % है । जो की पिछले दशक में मुकाबले समग्र साक्षरता दर में 8.14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है । (2001 में 64.84 प्रतिशत और उसके बाद 2011 में 72.98 प्रतिशत)।

निरक्षरों की संख्या (7+आयु समूह) 2001 में जहाँ 304.10 मिलियन थी वही 2011 में घटकर 282.70 मिलियन हो गयी।

सबसे ज्यादा साक्षरता वाले भारत के राज्य जिनकी साक्षरता दर 90 प्रतिशत से ज्यादा है – केरल (94%), लक्ष्य द्वीप (91.85%)  तथा मिजोरम (91.33%)।

राष्ट्रीय स्तर (72.98%) और 90% से नीचे के बीच साक्षरता दर वाले राज्‍य : त्रिपुरा (87.22%), गोवा (88.70%), दमन एवं दीव (87.10%), पुडुचेरी (85.85%), चंडीगढ़ (86.05%), दिल्‍ली (86.21%), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (86.63%), हिमाचल प्रदेश (82.80%), महाराष्‍ट्र (82.34%), सिक्किम (81.42%), तमिलनाडु (80.09%), नागालैंड (79.55%), मणिपुर (76.94%), उत्तराखण्‍ड (78.82%), गुजरात (78.03%), दादरा एवं नागर हवेली (76.24%), पश्चिम बंगाल (76.26%), पंजाब (75.84%), हरियाणा (75.55%), कर्नाटक (75.36%) और मेघालय (74.43%)।

निष्कर्ष

दोस्तों, आज के समय हर व्यक्ति के जीवन में बहुत ही आवश्यक है । शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोई उम्र नहीं होती है । लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें किस भी तरह से बाधा नहीं बनना चाहिए । खासकर लैंगिक व क्षेत्रीय भिन्नता को लेकर शिक्षा को पिछड़ना नहीं चाहिए।

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