एक राष्ट्र की तरक्की और सफलता में शिक्षा और ज्ञान को बहुत बड़ी अहमियत दी गयी है। एक व्यक्ति का उसके पढ़े लिखे होने की वजह से यह भारत कई रूप से अनपढ़ का तिरस्कार करते आये है।
पढाई की बात करें तो ज्ञान के तरफ धर्म या संस्कृति रास्ते की रुकावट बन जाती है। हालाँकि कई हालातों में तो इंसान के कष्ट व उनकी गरीबी रुकावट बन जाती है।
प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ है किसी ऐसे व्यक्ति को शिक्षित होने का अवसर देना जो शिक्षित नहीं हैं।
लोगों को शिक्षा का अवसर प्रदान जो किसी न किसी कारणवश शिक्षा को अपना भाग्य नही बना सके और आज कई तरह के कार्यों में अपनी थोड़ी सी भी भूमिका अदा कर वे अपनों का दैनिक जीवन चलाते हैं।
प्रौढ़ शिक्षा की अहमियत/योगदान
प्रौढ़ शिक्षा को महत्वपूर्ण बनाने का मकसद ऐसे निरक्षर व्यक्तियों को शिक्षा से परिचित कराना है जिनको अपनी ज़िन्दगी का मकसद साफ-साफ पता है। एक पढ़ा हुआ व्यक्ति ही अपने हक का उपयोग करने के काबिल होता है।
आज़ादी से पहले के समय में निरक्षर में ऐसे कारण बहुत दिखते थे, मग़र आज के आधुनिक समय में शिक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। राष्ट्र के आज़ाद होने के बाद जनता पार्टी के शासन के समय 2 अक्टूबर से प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत हुई। इस शुरुआत के दौर में 15 से 35 की उम्र लोंगो को पढाई का अवसर दिया जाता था। परन्तु आज के समय में इससे ऊपर की सभी सीमा को मायने नही दिया गया है ।
निरक्षर आम लोगों के बीच भी निरक्षर औरतों की संख्या पुरुषों की तुलना में कई ज़्यादा थी। फिर समय के बदलते वक्त के साथ लड़कियों को पढ़ाना ज़रूरी होने लगा। अपवाद के रूप में कुछ औरतों को पढाई देकर उन्हें विद्यमान बना दी गयी।
प्रौढ़ शिक्षा का अधिकार
एक प्रौढ़ व्यक्ति को शिक्षित होने के लिए किसी खास स्थान जाकर शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता नही होती है और नहीं समय निकालकर पढ़ने की चिंता।
प्रौढ़ों को उस वक्त की शिक्षा लेने का अधिकार है जब वे अपने दिनभर के सभी कार्यों को निपटा कर फुरसत में बैठें हालांकि पढाई में जो मेहनत व समय देना होता है वह उन्हें बराबर देना होता है।
उम्रदराज व्यक्ति को पढाई का ज्ञान देना आम उम्र के बच्चों को पढ़ाने से भिन्न है, क्योंकि प्रौढ़ के पास तजुर्बे और ज़िन्दगी के ज्ञान की मौजूदगी के कारण उन्हें शिक्षा पाने में ज़्यादा मुश्किलें नहीं आएंगी।
प्रौढ़ों की सीमा
वैसे ज़्यादातर प्रौढ़ शिक्षा स्वैच्छिक है, इसी वजह से शिक्षा पाने वालों को आम तौर पर बहुत ही प्रेरणा दी जाने की कोशिश रहती है, जब तक कि नियोक्ता खुद इसमे भाग लेने की मंजूरी न दे।
बड़ों की पढाई पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि बच्चों के लिए पारंपरिक स्कूल की शिक्षा से भिन्न होना जो है शिक्षा की शास्त्र। बच्चों के मुकाबले, बड़ों को सहायता देने के लिए दूसरों पर निर्भर होना आत्म ग्लानि की तरह देखा जाता है।
प्रौढ़ शिक्षा की महत्तव बहुत अधिक है क्योंकि इसका उद्देश्य 15 और 35 की मध्य की उम्र के पुरुषों और महिलाओं में ज्ञान का प्रकाश जलाना है।
यही ज्ञान व बुद्धि की कौशलता जिसके द्वारा प्रौढ़ शिक्षा को अहमियत दे सकें और उनके शोषण पे विराम लग गया।
निष्कर्ष
बिना पढ़े लिखे का शोषण आज भी गांव के कुछ लोग कर रहे हैं। ऐसे बुद्धिहीन को न तो सरकारी नियमों व उनकी कठोरता की जानकारी है और न ही इससे परिचित हैं कि सरकार ने ऐसे लोगों की सहायता व बेहतरी के लिए कई प्रकार की योजनाएं लायी हैं।