रानी लक्ष्मी बाई का जब भी लबों पर नाम आता है एक प्रख्यात कविता की पंक्ति भी याद आती है जिसे हम सब बचपन मे पढ़े थे” खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी”। उनकी वीरता किसी पुरुष से कम नही थी।
रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में बहुत ही बहादुरी से लड़ी इसीलिए वह एक मर्दानी थी। भारत को अंग्रेज़ की हुकूमत से सुरक्षित रखने के लिए वह कई युद्ध लड़ी और लड़ते-लड़ते वह शहीद हो गई।
लक्ष्मीबाई का बचपन
लक्ष्मीबाई का असली नाम मनुबाई था। रानी लक्ष्मीबाई नाना जी पेशवा राव की सगी बहन नही थी। उन्ही के साथ खेलकूद कर उनका बचपन बीता था।
उनके मुँहबोले भाई रानी लक्ष्मीबाई को प्यार से छबीली कह कर बुलाते थे। उनके पिता नाम मोरोपन्त थे और उनकी माता का नाम भागीरथी बाई था। उनके पिता महाराष्ट्र के निवासी थे। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 13 नवम्बर वर्ष 1835 में काशी में हुआ था।
इसके अलावा लक्ष्मीबाई का रहन सहन व बचपन बिठूर में बीता था। जब रानी लक्ष्मीबाई चार-पांच वर्ष की थी, तब ही इनकी माँ चल बसी। बचपन से ही वो मर्दों के संग ही खेलती-कूदती, निशानेबाजी व घुड़दौड़ सीखी जिसके कारण उनका व्यवहार भी वीर पुरषों की भांति हो गया था।
शादी का बंधन
बाजीराव पेशवा ने अपनी स्वतंत्रता की कथाओं से लक्ष्मीबाई के दिल में उनके लिए अत्यधिक प्रेम पैदा करने में कामयाब हो गया था। फिर जब वर्ष 1842 की शुरुआत हुई तब मनुबाई की शादी के आखिर पेशवा राजा गंगाधर राव के संग तय हुआ था।
जब शादी हो गयी तब यह बहादुर औरत का नाम मनुबाई, व छबीली से रानी लक्ष्मीबाई हो गया। इस प्रसनता में राजमहल में पूरा हर तरफ जश्न मनाया गया। सभी घरों में दिया जलाए गए। जब शादी के बन्धन में बधे पूरे 9 वर्ष हो गए वे एक पुत्र को जन्म दी लेकिन वो जन्म के तीन माह होते मर गया।
पुत्र के शोक में गंगाधर राव बीमार होते चले गए तब उन्होंने दामोदर राव को अपने बेटे की तरह गोद लेकर अपना लिया।
कुछ वर्ष बीत जाने के बाद सन 1853 उनके पति भी चल बसे। जैसे ही वे चले गए इस दुनिया से उनके सभी शत्रु उनको आक्रमण करने के लिए आसान शिकार समझने लगे।
अंग्रेजों का प्रहार
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को अकेला उनके गोद लिए पुत्र को अवैध करार कर दिया। एक औरत हो कर अंग्रेजों से इस प्रकार लड़ी जैसे पुरुष लड़ते हैं और उनसब को मुंह की खानी पड़ी।
वर्ष 1854 व दिनांक 27 फरवरी लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अनुसार दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद को मना कर दी और झांसी को अंग्रेज सरकार के राज्य में मिलाने की बात कर दी।यहीं से भारत की पहली स्वाधीनता की लड़ाई की विशाल शुरुआत हुई।
रानी लक्ष्मी बाई की वीरता
अंगरेजों की राज्य लिप्सा के नियम के अनुसार से उत्तरी भारत के नवाब व राजा काफी नाख़ुश हो गए और सभी में विद्रोह की भावना जाग उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने इसको बहुत ही बड़ा मुद्दा माना व क्रांति की ज्वालाओं को और भड़काने की कोशिश की तथा अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ खड़ा होने की रणनीति बनाई।
मौके का फैदा उठाकर एक अंग्रेज सेनापति ने रानी को बेहद आम औरत जान कर के झाँसी पर हमला कर दिया लेकिन रानी पूर्ण रूप से हमले के लिए तैयार थी। दोनों में बहुत बड़ा युद्ध छिड़ा। रानी लक्ष्मीबाई व उनके साथी ने अंग्रेजों को मुंह की खिला दी।
फिर आखिर में रानी लक्ष्मीबाई को वहां से चले जाने के लिए मजबुर होना पड़ा। झाँसी राज्य से बाहर आकर रानी लक्ष्मीबाई ने कालपी पोहची ग्वालियर में अंग्रेजों से बहादुरी दिखाते हुए मुकाबला किया किंतु युद्ध लड़ते हुए वह भी चल बसी।