भारत एक विशाल देश है जहाँ अलग-2 धर्मों, जाति व वेश-भूषा अपनाने वाले लोग रहते हैं । दूसरे शब्दों में एकता में हमारी पहचान और हमारा गर्व है परंतु विभिन्नता कई समस्याओं के कारक भी है।
जाति, भाषा, रहन-सहन व धार्मिक विभिन्नताओं के मध्य कभी-कभी संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है । अलग-2 धर्मों व समाज के लोगों की सोच भी विभिन्न होती हैं । देश में फैला अनेक राज्य, अलग-2 भाषाओं, समुदाय या जाति इन्हीं विभिन्नताओं का परिणाम है । इसके चलते आज देश के लगभग सारे राज्यों से हिंसा, हत्या, लूट-डकैती प्रकार के समाचार अक्सर सुनने व पढ़ने को मिलते हैं।
समाज में हिंसा
स्त्री के प्रति अन्याय, बुरे बर्ताव तथा बलात्कार कि कोशिश हमारे समाज की एक शर्मनाक हकीकत है । भूत काल में जहाँ स्त्री को देवी समान माना जाता था आज उसी स्त्री की भावनाओं को दबाव मे रखा जाता है । आदमी का अहंकार उसे अपने बराबर जगह देने के लिए विरोध करता है ।
हमारे देश के ज्यादातर लोग अनपढ़ है। एक समय था जब संत-साधु की इस ज़मीन पर ज्ञान का सूरज चमकता था। इसके रोशनी में सम्पूर्ण विश्व ज़िन्दगी कि राह तलाशता था।
शास्त्रो की रचना इसी देश ने किया था। परंतु आज अशिक्षा की गुमनाम चादर लपेटे भारत के लोग अपने मकसद के दरवाजे को नहीं ढूंढ पा रहे है। ऐसा लगता है कि ज्ञान का सूरज पूर्व से प्रकाशित होकर अब पश्चिम को ओर डूब गया है।
कई प्रकार के सामाजिक मुद्दा
गरीबी की समस्या हमारे देश की सबसे बड़ी मुसीबत है। इस एक समस्या के पूरे हो जाने से यहाँ की कई समस्याएँ खुद ब खुद समाप्त हो सकती हैं
समाज में इतनी गरीबी है कि कई लोगों को भरपेट खाना नहीं मिलता, बदन पे ओढ़ने को कपड़ा नहीं मिलता और वस्तुओं का तो कहना ही क्या? ग़रीबी की वजह से ही बीमारी तथा चोरी आदि समस्या समाज में बढ़ते जा रहे हैं ।
अंधविश्वास रूढ़िवादिता जैसी सामाजिक दोष भारत के विकास को पीछे धकेल देती है । अंधविश्वास व रूढ़िवादिता हमारे युवको को भाग्यवादिता की तरफ ले जाती है जिसकी वजह से वे काम नही करना चाहते हैं । अपनी इस दोष में गलतियों को ढूँढ़ने के बजाय वे इसे किस्मत का रूप दे देते हैं ।
भ्रष्टाचार तो हमारे भारत का काफी बड़ा विषय है जो बहुत ही उलझा हुआ है। देश के सब भागों में यह कूट-कूट कर भरा गया है। इस देश के छोटे से लेकर बड़े-2 पदों पर आसीन अधिकारी तक सभी भ्रष्टाचार के उदाहरण बने हुए हैं।
जिस देश के नेता लोग भ्रष्टाचार में डूबे हुए होंगे तो साधारण मनुष्य उससे बच के कब तक रह सकता है । यह भ्रष्टाचार कि वजह से देश में महँगाई तथा नकली कारोबार के जहर का पूरी तरह से विस्तार हो रहा है ।
इन सभी समस्याओं का अंत हासिल करना सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है लेकिन सम्पूर्ण जगत व समाज के सभी लोगों की भी ज़िम्मेदारी होती है ।
इसके लिए नागरिको के ज्ञान में और बढ़ोतरी होनी ज़रूरी है जिससे सभी लोग सतर्क बनें और अपने सभी ज़िमेदारियों को भी समझें । देश के युवाओं और आने वाली पीढ़ी का यह फ़र्ज़ बनता है।
निष्कर्ष
इसका निष्कर्ष यह किया जा सकता है कि देश के सभी नवयुवक, समाज में फैल रहे इन बुराइयों का ख़ुद ही विरोध करें और इन्हें रोकने की हर मुमकिन कोशिश करें ।
अगर यह कोशिश पूरे मन से होगा तो इन राष्ट्र के बुराइयों को एकदम ही जड़ से साफ कर सकें।