गोस्वामी तुलसी दास पर निबंध । Essay on Goswami Tulsidas

essay on goswami tulsidas in hindi, गोस्वामी तुलसी दास पर निबंधगोस्वामी तुलसी दास जी एक महान भारतीय कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान श्रीराम के जीवन और मानवता के मूल्यों को उजागर किया। उनकी कृतियाँ आज भी लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के प्रति प्रेरित करती हैं और उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका महाकाव्य “रामचरितमानस” भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह लोगों को भगवान श्रीराम के जीवन और उनके उपासकों की भावनाओं को समझने में मदद करता है। तुलसी दास जी की रचनाएँ आज भी हमारे जीवन में उत्कृष्टता और नैतिकता के मूल्यों को स्थापित करने में सहायक हैं।

महाकवि तुलसी दास जी के विचार, भक्ति और सामाजिक संदेश आज भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान श्रीराम के जीवन और भक्ति के महत्वपूर्ण विषयों को सजीवता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया। उनके काव्यों में वीरता और भक्ति के मूल्यों को उत्कृष्टता से चित्रित किया गया है और उन्होंने समाज में सुधार के लिए प्रेरित किया। तुलसी दास जी के योगदान को समय के साथ भी महत्वपूर्णता दी जा रही है, और उनके कृतियाँ आज भी लोगों को आदर्शों और मार्गदर्शन के लिए प्रेरित करती हैं।

गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल काव्यिक अद्वितीयता दिखाई, बल्कि धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिए भी उत्साहित किया। उन्होंने लोगों को सच्चे धर्मिक भावनाओं और मानवता के मूल सिद्धांतों के प्रति प्रेरित किया। तुलसी दास जी के द्वारा रचित “रामचरितमानस” और अन्य रचनाएँ आज भी लोगों को धार्मिक और नैतिक मूल्यों को समझाने में मदद करती हैं और समाज में सुधार के लिए प्रेरित करती हैं।

तुलसीदास का जन्म और जीवन

तुलसीदास का जन्म १५४४ ईस्वी में हुआ था। वे भारतीय साहित्य के महान कवि थे और भक्ति काव्य के उत्कृष्ट प्रतिष्ठान पर रहे हैं। उनका जन्मस्थान राजपुर, जिला बाँदा, उत्तर प्रदेश था। तुलसी दास जी का वास्तविक नाम गोस्वामी गोस्वामी था। वे संत तुलसीदास के रूप में माने जाते हैं।

तुलसी दास जी ने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा और विनय पत्रिका जैसी अनेक रचनाएँ लिखी। रामचरितमानस उनकी सबसे प्रमुख रचना है, जिसमें भगवान राम के जीवन का चित्रण व्यापकता से किया गया है।

तुलसी दास जी के ग्रंथों में भक्ति, भगवान राम के लीलाएँ, और मानवता के मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने आध्यात्मिक उन्नति और भक्ति के माध्यम से लोगों को दिव्य ज्ञान का प्राप्ति करने के लिए प्रेरित किया।

तुलसीदास जी का जीवन एक उदाहरणपूर्ण उद्धारण है, जो भक्ति, साहित्य, और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उनके महान योगदान को प्रकट करता है। उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को एक नया दिशा देने का काम किया और लोगों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित किया।

हिन्दू धर्म के उद्धारक

तुलसीदास जी कैसे हिन्दू धर्म के उद्धारक रहे हैं। उन्होंने धर्मिक आडम्बरों और पाखंडों का विरोध किया और हिन्दू धर्म के मूल गुणों को प्रमोट किया। उन्होंने निराकार उपासना के स्थान पर सगुण भक्ति को प्रमोट किया, जिससे व्यक्तियों को अपने भगवान के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने का अवसर मिलता है।

तुलसीदास जी ने इस समय में जब मूर्तियों का विनाश हो रहा था, राम के भक्ति और भाग्य पर बल दिया। इससे उन्होंने लोगों को धार्मिकता और अनुषासन के मार्ग पर प्रेरित किया। वे विभिन्न सामाजिक समूहों के लोगों को एक साथ आने के लिए प्रेरित करते थे, धार्मिक और सामाजिक एकता के लिए प्रयासरत रहे। उन्होंने व्यक्तिगत उद्धारणों और उपदेशों के माध्यम से लोगों को आदर्श जीवन के लिए प्रेरित किया।

इस प्रकार, तुलसीदास जी ने न केवल कविता के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में भी अपने महान योगदान का संकेत किया। उनके उपदेशों और रचनाओं का अभिमान आज भी लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन करता है।

तुलसीदास जी का धर्म के प्रति आस्था

तुलसीदास जी ने वास्तविकता का आदर्श रखते हुए हिन्दू धर्म की मूर्तिपूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना और उन्होंने भगवान राम की भक्ति को उच्च आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने सगुण भक्ति को श्रेष्ठ बताया, जिसमें भगवान को सगुण रूप में पूजने का अधिकार था। उन्होंने धार्मिक कट्टरता के खिलाफ उत्कृष्टता, उदारता और सहिष्णुता को बल दिया। उन्होंने लोगों को धर्म के आदान-प्रदान के बारे में विचार करने के लिए प्रेरित किया और अहिंसा, अभिमान और परोपकार के मूल गुणों की महत्वपूर्णता को स्वीकार किया।

उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भगवान राम के अद्वितीय भक्त बनने के विचार को प्रस्तुत किया और उनके जीवन और उपासना को एक उत्तम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। तुलसीदास जी के योगदान ने हिन्दू धर्म को उसके मौलिक तथा सजीव रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

साम्प्रदायिकता का विरोध

तुलसी दास जी वास्तविकता में एक उदार और समाज वादी मानसिकता रखते थे। उनकी रचनाओं में दूसरे धर्मों या सम्प्रदायों के प्रति नकारात्मक भावनाओं का स्पष्ट संकेत नहीं होता। वे साम्प्रदायिकता और भेदभाव के खिलाफ थे और सभी धर्मों और सम्प्रदायों का सम्मान करते थे।

उनकी भाषा में भी साम्प्रदायिकता के कोई अंक नहीं थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सभी व्यक्तियों को आत्म-समर्पण और भगवान की प्रेम-भक्ति में एकत्रित करने का प्रयास किया। वे विभिन्न समाजों और सम्प्रदायों के लोगों को एक-दूसरे के साथ साझा करने के लिए प्रेरित करते थे और सभी को एक परिवार के रूप में देखते थे।

इस प्रकार, तुलसीदास जी ने विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के बीच सामाजिक सद्भावना और सहिष्णुता के मूल्यों को प्रमोट किया। उन्होंने एक एकत्रित और सद्भावनापूर्ण समाज के लिए अपने योगदान का महत्वपूर्ण योगदान किया।

समाज सुधारक के रूप में

तुलसीदास जी वास्तविकता में एक समाज सुधारक रहे हैं और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनसामान्य की बुराइयों और आचरणों को प्रकट किया। उन्होंने रामचरितमानस के विभिन्न पात्रों के चरित्र चित्रण के माध्यम से भारतीय संस्कृति और आदर्शों को प्रस्तुत किया है और उन्होंने समाजिक बुराइयों का प्रहार किया।

तुलसी दास जी ने राम को एक आदर्श पुत्र, भाई, पति और राजा के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अपने कर्तव्यों का उचित पालन करते हैं। उन्होंने सीता को आदर्श पत्नी, भरत को आदर्श भाई, कौशल्या को आदर्श माता, और हनुमान को आदर्श सेवक के रूप में चित्रित किया है। इस रूप में, उन्होंने जनता को आदर्श पारिवारिक जीवन और आदर्श भारतीय समाज की मूल रूपरेखा को समझाया।

तुलसीदास जी की रचनाओं के माध्यम से हमें विभिन्न पात्रों के आदर्शों और धार्मिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का अध्ययन करने का अवसर मिलता है। उन्होंने समाज को विश्वास दिलाया कि सच्चे आदर्शों का पालन करके एक उच्च और उत्थानशील समाज बनाया जा सकता है।

भारतीय संस्कृति के रक्षक

आपने तुलसीदास जी के योगदान को बहुत सुंदर रूप में  दिया गया है। वे वाकई भारतीय संस्कृति और आदर्शों के अद्वितीय रक्षक थे और अपनी रचनाओं के माध्यम से इसे प्रमोट करने का कार्य किया। उन्होंने धार्मिक और नैतिक मूल्यों का महत्वपूर्ण रूप से संकेत किया और लोगों को उनके जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया।

तुलसीदास जी ने हिन्दू धर्म की महत्वपूर्ण और सुंदरता से साकार उपासना को प्रस्तुत किया और इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और धार्मिकता के मूल आदर्शों का पुनरुद्धार करने का प्रयास किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता, सहिष्णुता, मानववादिता, ग्रहणशीलता आदि विशेषताओं पर प्रकाश डाला और भारतवासियों में अपने धर्म तथा संस्कृति के प्रति आत्म विश्वास एवं आत्म सम्मान की भावना उत्पन्न की।

उनके योगदान के लिए हम आज भी आभारी हैं, और उनके उदार दृष्टिकोण और समाज सुधार के कार्यों को सराहते हैं। उनके काव्यिक और धार्मिक योगदान ने हमारे समाज को एक उदार, नैतिक और आदर्शिक दिशा में प्रेरित किया है।

निष्कर्ष

तुलसीदास जी के योगदान को बहुत ही अच्छे तरह समझाया गया है। उनका साहित्य हमें आत्मा के महत्व और मानवता के साथी रहने की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। उनके काव्यों से हम जीवन को एक उद्देश्यमय और उत्तम दिशा में बिताने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। तुलसीदास जी की रचनाओं का अध्ययन करना हमारे जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन और समाज में सुधार की दिशा में आवश्यक ज्ञान प्रदान कर सकता है।

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