छायावाद एक विशेष प्रकार की भाव पद्धति है, जो जीवन में अपना एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण होता है । छायावाद को सामान्य रूप से भावोच्छवास से प्रेरित स्वछन्द प्रवृति है, जो कल्पना वैभव से प्रेरित होती है।
इस वैश्विक संसार में सभी जातियों वैशिष्ट्य के साथ विभिन्न उत्थानशील युग की आशा, आकांक्षा में निरंतर व्यक्त होती रहती है । स्वछन्दता सामान्यतः भाव धारा की विशेषता अभिव्यक्ति का नाम हिंदी साहित्य में छायावाद पड़ा । इस छायावाद की प्रवृति के लिए उसका श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को दिया जाता है।
छायावादी कवि हमेशा वस्तु अहनिष्ठ होकर भावभिव्यंजना करता है । इस दौरान डॉ. शिवदान सिंह चौहान द्वारा इस संदर्भ में कहा गया है की,
‘मैं प्रत्येक प्रबुद्ध भारतवासी था, कवि का “मैं” था । इस कारण कवि द्वारा अपनी विषयगत दृष्टि ने सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियो को व्यक्त करने के लिए जो लाक्षणिक भाषा व प्रस्तुति योजना शैली को अपनाई, उसी संकेत व प्रतीक हर व्यक्ति के लिए सहज व प्रेषण बना जा सके।
छायवादी काव्य में प्रकृति
छायावाद द्वारा यह एक संज्ञान मिला है की मानव और प्रकृति के सम्बन्ध में एक चित्रण समीक्षक हो । छायावादी साहित्य प्रकृति का एक अभिन्न सम्बन्ध है । प्रकृति के अलंकार स्वरूप बिम्बग्राही ध्वन्यार्थव्यंजक तथा अनेक सूक्ष्मातिसूक्ष्म सुकोमल एवं विकाल स्वरूप छायावादी साहित्य में अवलोकित है । इसलिए कवि अपनी अंतरंगता को स्मृति करते हुए प्रकृति के साथ गुन-गुनाता है।
जो इस प्रकार है –
‘वे कुछ दिन कितने सुन्दर थे,
जब सावन धन सघन बरसते,
इन नयनों की छाया भर थे।’
छायावाद के अर्थ
दोस्तों, छायावादी शब्द के अर्थ को लेकर पूरे जगत में काफी आलोचना व विवाद रहा है । जिसके कारण यथार्थवाद, आदर्शवाद, प्रगतिवाद ये ऐसे नाम है जो इनके आधार पर इस वादों के अंतर्गत स्वीकृत रचनाओं के बुनियादी स्वरूपों को आसानी से समझाया जा सकता है।
लेकिन वही छायावाद को देखा जाये वो ऐसे किसी शब्द का बोध नहीं करता है की जिसके आधार पर छायावादी काव्य की विशेषताओं को समझा जा सके।
छायावाद का व्यापक अर्थ में उन्होंने रहस्यवाद को समाविष्ट किया गया है । इसी कड़ी में जय शंकर प्रसाद जी ने छायावाद को स्वानुभूति की विवृति पर जोर दिया। लेकिन आज के समय में छायावाद तथा रहस्यवाद दो स्वतंत्र वाद के बारे में जानते है।
छायावाद इस वाद में शैलीगत विशेषता के साथ सौन्दर्य, प्रेम इत्यादि जैसे भावनाओ को भी स्वीकार किया जाता रहा है।
जबकि रहस्यवाद की मूल विशेषता ये माना जाता रहा है की ये अव्यक्त निराकार प्रिय के पति प्रणय-निवेदन को ही रहस्यवाद माना जाता है।
छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- राष्ट्रीयता की भावना
- मुक्तक छंद का प्रयोग
- अनुभूति की तीव्रता
- प्रकृति के रम्य रूपों की रचना
- वेदना की विवृति
- स्वछंद कल्पना
- दार्शनिक चिंतन
- आत्माभिव्यंजना/आत्माभिव्यक्ति की प्रधानता
- मानवीय सौन्दर्य का बोध
- मैं शैली / उत्तम पुरुष शैली
- प्रकृति सम्बंधित बिम्बों की बहुलता
- रहस्य भावना
- श्रृंगार भावना
- मानवतावाद
प्रसाद जी ने रहस्यवाद को अध्यात्मवाद तथा विशेषत शैव दर्शन के साथ सम्बन्ध करने का प्रयास किया । परन्तु उनके द्वारा की यह व्याख्या सर्वमान्य नहीं हो सका । जहाँ तक भाषा शैली का प्रश्न है, उसमें छायावाद व रहस्यवाद दोनों में समानता पायी जाती है।
रीतिकाल जीवन में छायावाद की प्रणयानुभूति में श्रृंगार-चित्रण का काफी प्रभाव रहा है । काव्य शास्त्रियों की दृष्टि से छायावाद प्राचीन सिद्धांतों, विशेषकर रस- सिद्धांत के अनुरूप है । जो उनके लिए काफी मूल्यवान साबित होता है।
जहा तक दार्शनिक सिद्धांतों की बात है वो छायावादी काव्य में कर्मवाद, वेदांत, भक्ति आदि सभी पुराने सिद्धांतों को व्यक्तता दिखाई देता है।
निष्कर्ष
छायवाद एक काफी कठिन शब्द होता है जिसे बाकि सभी काव्य की तरह समझ पाना इतना आसान भी नहीं है । छायावादी कवियों द्वारा प्रधान रूप से प्रणय की अनुभूति को व्यक्त किया गया है।
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