हिंदी साहित्य में नारियों का भी काफी योगदान रहा है । क्योंकि नारी आज के समय में किसी भी क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं है । आज के दौर में नारी सभी क्षेत्रों में पुरुष से साझेदारी निभा रही है । स्त्रियों में बढती जागरूकता व चेतना उनकी पारस्परिक छवि को तोड़ा है।
हिंदी साहित्य में महिलाओं की भागीदारी जिस तरह से बढ़ रही है उतनी तेजी से उनका सामर्थ्य भी बढ़ता जा रहा है, और ये सब देखने से किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
नारी के लेखन को बाटने से अच्छा है की नारी या पुरुष सब की भागीदारी एक सामान हो । जब आज़ादी की लड़ाई के समय जो स्वर साहित्य उभरा, उस समय देश कालिक परिस्थितियाँ व देश-प्रेम की अभिव्यक्ति स्पष्ट लक्षित होता है।
हिंदी साहित्य में नारी का महत्व
साहित्य एक ऐसा चीज है जो किसी भी जाति व समाज को उसकी जीवंतता को प्रमाणित करती है । जिस तरह से जीवन व समाज की धड़कन को सही सलामत बनाये रखने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों को होना आवश्यक है । इसी तरह से जीवन के विविध व्यवहारिक व भावनात्मक स्वरूप का निर्माण करने के लिए दोनों का होना बहुत जरूरी है।
साहित्य सभी भावनात्मक रूपों से एक बहुत ही प्रमुख विद्या स्वीकार किया जाता रहा है । भारत देश में भाषाओं के साहित्य का इतिहास के शुरु वात से ही इस बात का प्रमाण मिलने लगे की इस रचना व स्वरूप के निर्माण कार्य में नारियों का स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
विश्व में सर्वप्रथम लिखित साहित्यिक ऋगवेद ग्रन्थ को माना जाता है । जो भी विश्व के महान रचनात्मक व साहित्यकार है वो भी एकमत व मुक्त भाव से ये स्वीकार करते है की वैदिक रचनाओं में या दर्शन में आर्य नारियों का हाथ रहा है।
कहा जाता है की अनुसूईया जैसी ऋषि-पत्नियों ने भी अनेक वैदिक रचनाओं के दर्शन व प्रणय करके वैदिक साहित्य को समृद्ध किया । वैदिक काल के समय लौकिक संस्कृत-काल की अनेक विदुषी नारियों के नाम मिलता है जिसके द्वारा ये अनुमान किया जाता है की उन्होंने भी साहित्य सृजन किया होगा।
हिंदी साहित्य के भक्तिकाल से ही नारी साहित्यकारों के नाम अवश्य मिलने लगते है की उन्होंने अपने प्रतिभा के बल से साहित्य का सम्मान, वर्चस्व और प्रभुत्व को बढ़ाया । जो आज भी सभी के बीच में विराजमान है।
भक्तिकाल के समय काव्य जगत की महत्व
दोस्तों, भक्ति काल के समय चलने वाले सद्गुण की भक्तिधारा की कृष्ण शाखा के द्वारा सर्वप्रथम हिंदी काव्य जगत के लिए कुछ महत्वपूर्ण साधिकाए अपनी भूमिका प्रदान की । उन सभी में से एक नाम मीरा का आता है । जो कृष्ण की प्रेम दीवानी थी।
मीरा की वाणी में मधुरता, सहजता, तरसता, अपनापन, लीनता व समर्पित निष्ठा का भाव दर्शाता है । मीरा जैसी प्रेम के पीर और विरह के वेदना में अपनी सहज स्वाभाविकता को पिरोता है।
एक शैख़ नाम की कवयित्री की चर्चा में देखने को मिली थी । जिन्होंने काव्य प्रतिभा में बहुत धनी थी जो मूल रूप से एक ब्राह्मण जाति की थी फिर बाद में मुसलमान बनकर आजम नाम से प्रसिद्धि हासिल प्राप्त की।
निष्कर्ष
आज के समय भी बहुत सारी कवयित्री है जिन्होंने अपनी एक अलग ही पहचान दी है । हमें महिला व पुरुष दोनों का सम्मान करना चाहिए । एक कवि या कवयित्री समाज में हो रहे सभी घटना को लोगों के सामने प्रस्तुत करते है । जिससे अच्छाई व बुराई में लोगों को पहचान करा सके।