जयशंकर प्रसाद पर निबंध। Hindi Essay On Jaishankar Prasad

essay on jaishankar prasad in hindi, जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचयजयशंकर प्रसाद ने 20वीं सदी के प्रारंभ में हिन्दी साहित्य को एक नया दिशा देने का कार्य किया और छायावादी काव्य धारा का प्रवर्तन किया। इन्होंने अपनी कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य, भावनात्मक, और आत्मा के साथ समर्थन का माध्यम बनाया।

छायावाद के सिद्धांतों के अनुसार, प्रकृति में एक अद्वितीय आत्मा होती है जिससे हम सभी जुड़े हैं। जयशंकर प्रसाद ने इसे अपनी कविताओं में उजागर किया और मानव अनुभव को प्राकृतिक तत्वों के साथ जोड़ने का प्रयास किया। उनकी कविताएं अपने समय के अनुसार अत्यंत नवीन और उत्कृष्ट मानी जाती हैं।

जयशंकर प्रसाद का साहित्य जीवन उनकी कविताओं के माध्यम से एक अद्वितीय और विचारपूर्ण यात्रा की गई है। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, इतिहास, और धार्मिकता के प्रति उनकी गहरी रुचि को देखा जा सकता है।

छायावादी युग में जयशंकर प्रसाद का महत्वपूर्ण स्थान है, और उनकी कविताएं आज भी हिन्दी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान धाराप्रवाह में बनी हैं। उनका साहित्य जीवन एक सुंदर और अमूर्त साहित्य की रूपरेखा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है जो हमें अपनी असीमित सांस्कृतिक धरोहर के प्रति पुनर्गठन के लिए प्रेरित करता है।

जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में हुआ था, एक समृद्ध परिवार में। उनके पिता का नाम देवी प्रसाद था, जिन्हें सूँघनी साहु के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने घर पर ही अपनी शिक्षा प्रारंभ की, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, और उर्दू जैसी भाषाओं को सीखा। बाद में, वह वाराणसी के क्वींस कॉलेज में सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करते रहे।

उनकी शिक्षा के पूरा होने के बाद, उन्होंने हिंदी साहित्य में एक नये युग की शुरुआत की और छायावाद काव्य धारा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया। छायावाद एक साहित्यिक आंदोलन है जो प्रकृति, भावनाएँ, और आध्यात्मिकता पर जोर देता है। जयशंकर प्रसाद की कविताएं उनके आध्यात्मिक अध्ययन और व्यक्तिगत अनुभव को दर्शाती हैं, जिससे हिन्दी साहित्य को एक नए आयाम में ले जाती हैं।

उनका निधन 15 नवंबर 1937 को हो गया। उनके आध्यात्मिक अन्वेषण और परिवार की कठिनाईयों ने उनकी रचनाओं को गहराई से प्रभावित किया। जयशंकर प्रसाद के योगदान ने हिन्दी साहित्य में एक नए युग की शुरुआत की, और उनकी कविताएं भारतीय साहित्य इतिहास में एक अद्वितीय स्थान बनाए हैं।

विशेषता जानकारी
नाम जयशंकर प्रसाद
जन्म तिथि 1890 ईसवी
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
पिता का नाम श्री देवी प्रसाद
शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी और संस्कृत का अध्ययन
रुचि साहित्य, काव्य रचना, नाटक लेखन
लेखन शैली काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
मृत्यु तिथि 15 नवंबर, 1937 ईसवी
साहित्यिक पहचान हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के लिए ‘प्रसाद युग’ का निर्माता और छायावाद की प्रवर्तक
भाषा भावपूर्ण और विचारात्मक
शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक और चित्रात्मक
साहित्य में स्थान हिंदी नाटक में नई दिशा देने के लिए ‘प्रसाद युग’ के निर्माता और हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में मान्यता प्राप्त की गई।

प्रमुख रचनायें

जयशंकर प्रसाद ने अपने बचपन से ही बहुत चेतना और विद्या से भरपूर रहे थे। उनमें कविता लेखन की प्रतिभा ने बचपन से ही पलक झपकने लगी थी। कवि-गोष्ठियों और सम्मेलनों के माध्यम से, उनकी ब्रिलियेंट प्रतिभा और रचनात्मक योग्यता का प्रदर्शन होता रहा। जयशंकर प्रसाद का व्यक्तित्व बहुमुखी था, जिसमें कविता के अलावा वह कहानीकार और नाटककार भी थे।

इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न प्रकार के साहित्य का सृजन किया, जिसमें कहानियां, कविताएं, और नाटक शामिल थे। उनका साहित्य विविधता और समृद्धि से भरा हुआ था। जयशंकर प्रसाद ने हिन्दी साहित्य में नए और अनूठे शैली का प्रतिष्ठान बनाया और उन्होंने अपनी विविध प्रतिभा के माध्यम से साहित्य को एक नये स्तर पर उठाया।

काव्य रचनाएँ (Poetry Works) नाटक, उपन्यास, कहानी-संग्रह, निबन्ध (Dramas, Novels, Short Stories, Essays)
उर्वशी (1909) सज्जन (1910), प्रायश्चित (1913), कंकाल (1930), कहानी-संग्रह (छाया, ग्राम्या आँधी, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, इंद्रजाल आदि), काव्य-कला (काव्य – कला)
प्रेमराज्य (1909) तितली (1934)
वन मिलन (1909)
शोकोच्छवास (1910)
अयोध्या का उद्धार (1910)
वभ्रुवाहन (1911)
प्रेम-पथिक (1913)
कानन-कुसुम (1913)
करुणालय (1913)
महाराणा का महत्त्व (1914)
झरना (1918)
आँसू (1925)
लहर (1933)
कामायनी (1935)
विधा रचना
उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती (अधुरा)
कहानी संग्रह छाया, प्रतिध्वनी, आकाशदीप, आंधी, इंद्रजाल
नाटक राज्यश्री, विशाख, अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, धुर्वस्वामिनी, सज्जन, प्रायश्चित, जनमेजय जा नागयज्ञ, कामना, एक घूंट
निबंध काव्य और कला
काव्य रचनाएं कामायनी, चित्राधार, कानन कुसुम, करुणालय, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, प्रेम पथिक आदि.
श्रेष्ठ कहानियाँ ममता, आंधी, पुरस्कार, गुंडा, छोटा जादूगर

आशावादी कवि

कामायनी, महाकवि जयशंकर प्रसाद की काव्यरचना है जो उन्हें काव्यक्षेत्र में विशेष पहचान दिलाई है। इस काव्य का मुख्य उद्देश्य मनु और श्रद्धा के माध्यम से मानवता को मधुर संदेश पहुंचाना है।

जयशंकर प्रसाद, एक आशावादी कवि, ने कामायनी में निराशावाद के खिलाफ अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। उन्होंने निराशावाद को आशावाद का संदेश देने के रूप में प्रस्तुत किया है। इस काव्य में वे यह कहते हैं:

“सभी कुछ मिलेगा मनु, आसा है, श्रद्धा है यही।
निराशा न कर मनु, जगत में सब कुछ मिलता है।”

इस प्रकार, जयशंकर प्रसाद ने आशावाद के माध्यम से मानवता को प्रेरित करने का प्रयास किया है, और उनकी काव्य रचना कामायनी इस प्रयास का अद्भुत परिणाम है।

छायावाद के श्रेष्ठ कवि

छायावाद हिंदी कविता के क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण आंदोलन है, जिसकी शुरुआत सन 1920 से होती है और इसका प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है महाकवि जयशंकर प्रसाद को। यह आंदोलन 1936 तक चलता रहा है।

जयशंकर प्रसाद, छायावाद एक आदर्शवादी काव्य धारा है जिसमें व्यक्तिगत, रहस्यमय, प्रेम, सौंदर्य, और स्वछंदता का पूरा प्रमुख भूमिका मिलता है। प्रसाद जी को छाया वाद के जन्मदाता के रूप में माना जाता है, और उनकी कृति ‘आंसू’ से ही हिंदी में छायावाद का आरंभ हुआ। ‘आंसू’ एक काव्य कृति है जिसमें प्रेमी के वियोग की भावना को “विप्रलम्भ श्रंगार” के रूप में व्यक्त किया गया है। इसमें प्रियतम के वियोग के समय आंसू वर्षा की भांति बहने का वर्णन होता है।

श्रेष्ठ गद्यकार

गद्यकार प्रसाद, हिंदी साहित्य के एक प्रमुख लेखक और नाटककार, ने अपने योगदान से साहित्य क्षेत्र में अमूल्य रत्न छोड़े हैं। उनकी रचनाएं गुप्तकाल से लेकर आधुनिक काल तक बहुपक्षीय और आक्रमक हैं। प्रसाद जी ने नाटककार के रूप में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई है और उनकी नाटक रचनाएं समाज में सामाजिक वादों और चुनौतियों को प्रमुख किरदारों के माध्यम से चित्रित करती हैं। उनके गद्य रचनाओं में भी साहित्यिक उत्कृष्टता और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का सुंदर मेल होता है। उनकी भाषा सरल, सुगम और सामाजिक चेतना से भरी होती है, जिससे पाठकों में सहजता और समर्थन पैदा होता है।

नाटककार और गुप्तकालीन भारत

गद्यकार प्रसाद को सर्वाधिक ख्याति नाटककार के रूप में है। उन्होंने गुप्तकालीन भारत को आधुनिक परिवेश में प्रस्तुत कर के गांधीवादी अहिंसामूलक देशभक्ति का संदेश दिया है।

सामाजिक आंदोलनों का चित्रण

प्रसाद ने अपने समय के सामाजिक आंदोलनों को सफलता से चित्रित किया है। उनके नाटकों में आंदोलनों के समय की भूमिका और उनकी महत्वपूर्णीयाँ को विशेषज्ञता से दिखाया गया है।

नारी के स्वतंत्रता और महिमा

प्रसाद ने अपने प्रत्येक नाटक में सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से नारी की स्वतंत्रता और महिमा को महत्वपूर्ण बनाया है। उनके कामों में, किसी नारी पात्र के हाथ में ही संचालन सूत्र होता है।

उपन्यास और कहानियां

प्रसाद के उपन्यास और कहानियों में भी सामाजिक भावना का प्राधान्य है। उनकी कहानियों में दांपत्य प्रेम का आदर्श रूप से चित्रण किया गया है, जो समाज में उत्तरदाता और संबंधों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

निबंध और विचारात्मकता

प्रसाद के निबंध विचारात्मक और चिंतन प्रधान हैं। उनके निबंधों में विभिन्न काव्य और काव्य-रूपों के विषय में उनके विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

जयशंकर प्रसाद के लेखन का प्रभाव

जयशंकर प्रसाद को हिन्दी काव्य में छायावाद की स्थापना का श्रेय जाता है। उनके द्वारा रचित खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म और व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई। उनकी कविताओं में भावनात्मक गहराई, आध्यात्मिक संवेदना, और सामाजिक चेतना का सुंदर सम्मिलन है। छायावाद के सिद्धांतों को अपनाते हुए उन्होंने साहित्यिक दृष्टिकोण को नए आयाम दिए। उनकी कविताएं न केवल भाषा की सुंदरता में आदर्श हैं, बल्कि वे समाज, धर्म, प्रेम, और आत्मा के महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरा चिंतन करती हैं।

साहित्यिक प्रभाव

जयशंकर प्रसाद के लेखन का साहित्यिक प्रभाव व्यापक और गहरा है। उनकी कविताएं, कहानियाँ और नाटकों में विभिन्न विषयों पर विचारशीलता, मानवीयता और धार्मिकता की प्रशंसा की जाती है। उनके लेखन से पठने वालों को साहित्यिक आनंद का अनुभव होता है और उन्हें सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक विचारों में विस्तारित करने का अवसर मिलता है।

सामाजिक प्रभाव

जयशंकर प्रसाद के लेखन का सामाजिक प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी रचनाएं समाज की समस्याओं, स्वतंत्रता, न्याय, जाति-धर्म और स्त्री सम्मान जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। उनके लेखन से समाज के विभिन्न वर्गों की सोच और संवेदनशीलता में प्रगामी परिवर्तन आता है। वे जनसाधारण के बीच जागरूकता फैलाने और सामाजिक सुधार की अपेक्षा रखते हैं

आध्यात्मिक प्रभाव

जयशंकर प्रसाद का लेखन आध्यात्मिकता को प्रमुखता देता है और मानवीय अस्तित्व के महत्वपूर्ण सवालों पर ध्यान केंद्रित करता है। उनकी रचनाएं आत्म-विकास, प्रेम, ध्यान और आध्यात्मिक साधनाओं के महत्व को प्रोत्साहित करती हैं। उनके लेखन से पाठकों को आध्यात्मिक ज्ञान, मन की शांति और अंतरंग सुंदरता का अनुभव होता है। जयशंकर प्रसाद के लेखन का दूरगामी प्रभाव व्यापक रूप से साहित्यिक, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में महसूस होता है और उनकी रचनाएं लोगों को समय के साथ भी प्रभावित करती हैं।

निष्कर्ष

जयशंकर प्रसाद एक महान हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने पद्य और गद्य के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से लोगों को मोहित किया। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ और परिमार्जित हिंदी में थी, जिससे उनके काव्य को समृद्धि और सौंदर्य मिला। उनकी रचनाओं में अलंकारिकता और साहित्यिकता का शानदार मेल है।

जयशंकर प्रसाद के गद्य रचनाओं में छायावादी कवि हृदय की पहचान होती है, जो मानवीय भावनाओं और आदर्शों में उदार वृत्ति का सृजन करता है। उनकी रचनाओं में विश्व कल्याण के प्रति उनकी विशाल हृदयता और सजीव होश दिखता है।

प्रसाद जी की रचनाओं में छायावाद की पूर्ण प्रौढ़ता, शालीनता, गुरुता, और गंभीरता दिखाई देती है। उनकी कल्पना शक्ति, मौलिक अनुभूति, और नूतन अभिव्यक्ति पद्धति ने हिंदी साहित्य में एक नया मोड़ प्रदान किया।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुत महान है और उनकी रचनाओं का योगदान हिंदी साहित्य के विकास में अद्वितीय रूप से महत्वपूर्ण है।

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