साहित्य का उद्देश्य- प्रेमचंद । Purpose of literature- Premchand in Hindi

भारत देश में “प्रगतिशील लेखक संघ” का प्रथम अधिवेशन में प्रेमचंद की अध्यक्षता में सन 1936 में लखनऊ शहर में हुआ था । इस सम्मेलन के दौरान  मुंशी प्रेमचंद ने सभापति के रूप में अपने द्वारा दिए गये भाषण में व्यक्तिवादी, रूढ़िवादी तथा सौन्दर्य दृष्टि रखने वाले सभी साहित्यकारों पर प्रहार करते हुए, कहा की वे अब से सक्रिय व जीवन साहित्य की रचना करें।

मुंशी प्रेमचंद के इस साहित्य जगत को प्रगति वाद का घोषणापत्र भी लोगों द्वारा कहा जाने लगा । यह सम्मेलन हमारे साहित्य जगत के इतिहास में स्मरणीय घटना के रूप में याद किया जाता है । सम्मेलनों में आमतौर पर भाषा व उसके प्रचार पर बहस किया जा रहा है । जहाँ तक उर्दू व हिंदी का आरम्भिक साहित्य मौजूद है । जिसका उद्देश्य विचारो व भावों पर असर डालना नहीं है।

साहित्य चिंतन

मुंशी प्रेमचंद जी ने प्रथम अधिवेशन के दौरान साहित्य चिंतन के बारे में अपनी विचार को दर्शाया था । उन्होंने साहित्य उद्देश्य के समय यह बताया की विचारो व भावों पर असर नहीं डालना था, केवल भाषण का निर्माण करना था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह था की जब तक भाषा का एक स्थायी रूप से न प्राप्त हो जाये । उसके लिए विचारो व भावों को व्यक्त करने के लिए शक्ति कहाँ से प्राप्त होगी । उन लोगों द्वारा जो हमारी भाषा के “पायनियरो” ने आग एक रास्ता साफ करने के साथ हिन्दुस्तानी भाषा का निर्माण करके जो सभी जाति पर एहसान किया है उसके लिए हमारी एहसान होगी।

उस समय यह बताया गया की भाषा साधन है, पर साध्य नहीं । अब के समय में भाषा वह रूप प्राप्त कर लिया है की वो अब आगे बढ़कर भाव की ओर ध्यान दे । इस पर विचार करके जिस उद्देश्य के निर्माण का कार्य आरम्भ किया गया था।

उसी भाषा के आरम्भ में “बागो बहार” व “बैताल-पचीसी” की रचना करके सबसे बड़ा साहित्य सेवा था । यह अब इस योग्य हो गया को उसमें शास्त्र व विज्ञान के प्रश्नों का भी विवेचना किया जा सकता था । इस सम्मेलन का यही सच्चाई स्पष्ट रूप स्वीकृत है।

भाषा बोलचाल की और लिखने की भी होती है । कहा जाता है बोलचाल की भाषा मीर अम्मन व लल्लूलाल के ज़माने से मौजूद थी । परन्तु जिसने भाषा की दाग बेल डाली, वही लिखने की भाषा थी और आज वही साहित्य है । बोल चल की भाषा से लोगों द्वारा अपने विचार प्रकट किये जाते है।

साहित्य के महत्वपूर्ण कथन

  • हिंदी व उर्दू की जो आरम्भिक भाषा ही साहित्य है । इसका मुख्य उद्देश्य विचारो व भावों पर प्रभाव डालना नहीं, केवल भाषा का निर्माण करना था।
  • लेकिन अब हमारी भाषा का वह रूप प्राप्त कर लिया है की हम भाषा से आगे बढ़कर भाव की ओर ध्यान लगाये।
  • इसी भाषा ने आरम्भ में “बागोबहार” तथा “वेताल-पचीसी” रचना करके साहित्य की सेवा की, ये अब इस लायक हो गया है की इसमें शास्त्र व विज्ञान के द्वारा की प्रश्नों का भी विवेचना किया सकता है । उस सम्मेलन की स्पष्ट रूप से स्वीकृति है।
  • हम साहित्य की उसी रचना को सही कहेंगे, जिसमें सच्चाई को प्रकट किया गया हो । जिसकी भाषा में परिमार्जित व सुन्दरता से परिपूर्ण हो । जो दिल और दिमाग पर असर डाल सके, ऐसा गुण हो।
  • साहित्य में प्रभाव उत्पन्न करने के लिए जीवन में आवश्यक सच्चाइयों का दर्पण हो । फिर आप उसे जिस जगह लगा सके जैसे – चिडे की कहानी व गुलोबुलबुल की दास्तान उस चीज के लिए उपयुक्त हो सकती है।
  • साहित्य कई भाषाओं में परिभाषित की गई: पर मेरे विचार से सबसे सर्वोत्तम परिभाषा “जीवन की आलोचना” है । चाहे वो निबंध हो या फिर कहानियो या काव्यों में हो।
  • मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा निःसंदेह ही काव्य व साहित्य का उद्देश्य हमारी द्वारा अनुभूतियों की गति को बढ़ाना था।
  • साहित्य अपने समय का एक प्रतिबिम्ब होता है । जो लोगों के भाव और विचार को उनके हृदय से स्पंदित करता है, वही साहित्य पर भी अपना छाया डालते है।
  • हम अपने जीवन में जो कुछ देखकर कल्पना करते है या जो कुछ हम पर गुजरता है । उसकी अनुभव का तथा दर्द का कल्पना करके साहित्य सृजन के लिए प्रेरणा मिलता है।
  • प्रेमचंद का उद्देश्य में यह भी है की हमारा देश में ऐसा वायुमंडल उत्पन्न कर देना है की जिसके वजह से अभीष्ट प्रकार के साहित्य उत्पन्न हो सके।

निष्कर्ष

मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा साहित्य के बारे में हमें बहुत कुछ जानकारियाँ प्राप्त होती है । जिससे हमें भाषा व साहित्य का अनुभव का एहसास होता है।

2 thoughts on “साहित्य का उद्देश्य- प्रेमचंद । Purpose of literature- Premchand in Hindi”

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