दोस्तों, प्रकृति की सुन्दरता किसी से छुपी नहीं है । मानव हमेशा से इस प्रकृति का दीवाना व सौन्दर्य का प्रेमी रहा है । प्राकृतिक के साथ मानव का बहुत ही पुराना नाता है, जितना इस सृष्टि का प्रारंभ इतिहास रहा है । कहा जाता है को मानव और सृष्टि द्वारा ही प्रकृति की उत्पति को माना जाता है।
साहित्य के द्वारा माना गया है की सबसे पहले जिसको उत्पति हुई उनमें से पांच तत्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश है । ये सभी तत्व मूल रूप से प्रकृति के अंग है। लेकिन यह भी बात की जाती है की साहित्य सृजन की प्रेरणा मानव को प्राकृतिक की रहस्यमय कार्य व गतिविधियों की जानकारी प्राप्त हो सकी।
इस बात में कोई संदेह नहीं की जब प्रकृति का शुरुवाती दौर में मानव जीवन जीने के लिए उनका आश्रय-दात्री सब कुछ के लिए एकमात्र सहारा प्रकृति ही था । जिसके सहारे मनुष्य ने अपना जीवन को आगे बढ़ाया और खुद जीने के लिए कई तरह की संसाधन का निर्माण किया।
प्रकृति का स्वरूप
वैदिक काल के समय मानव द्वारा चाँद, सूर्य, उषा, संध्या, नदी, वृक्ष, पर्वत आदि सभी प्रकृति के विविध अंग के रूप में देवत्व को प्रदान कर दिया गया था । कई तरह के पशु, पक्षी को लोग देवत्व मानकर उनका दर्शन किये।
प्रकृति के प्रति आज भी लोग उसकी सुंदरता की तरफ आकर्षित होते है । मानव द्वारा आज भी लोग वर्तमान में प्रकृति को किसी न किसी रूप में उसकी पूजा अर्चना करते है । लोगो के बीच प्रकृति के प्रति आज भी अटूट विश्वास है।
प्राकृतिक के कारण ही आज मनुष्य अपने जीवन में साहित्य द्वारा बहुत ही सुंदर रचनाओं वर्णन किया गया है । इसी सब के कारण मानव अपने जीवन में महानतम उपलब्धि साहित्य और प्रकृति के संबंध को उतना ही अनादि, चिरातन और शाश्वत है।
सामान्यतः ये सभी जानते है की प्रकृति का दो स्वरूप होता है । इस दोनों स्वरूप को प्रत्येक मानव व विशेषकर कवि और साहित्यकार कोटि के मानव द्वारा आरम्भ से ही भावनाओं का सबल प्रदान करते आ रहे है।
वैदिक काल के समय जहां साहित्य में प्रकृति को दैवी स्वरूपों को देखा और उसे प्रतिष्ठित किया है । वही कवियों द्वारा उसे उपदेशिका, पथप्रदर्शिका, प्रेमिका, माँ, सुंदरी आदि कई तरह के रूपों में देखा गया है।
साहित्यकार द्वारा प्रकृति का स्वरूपों का वर्णन बहुत अच्छे तरीके से किया गया है । जो प्रकृति की सद्गुण व साकार स्वरूपता व चेतना का आरम्भ ही एक साहित्यकार के मन व मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है । जो हर युग में कवि व साहित्यकार ने किसी – किसी रूप में आकर प्रकृति का दामन निश्चित ही थामा गया है।
कवि द्वारा प्रकृति का चित्रण
हिंदी जगत में आदि काल से लेकर आज तक कई भारतीय कवियों व साहित्यकारों ने प्रकृति का किसी न कसी तरह से उसके आश्रय को ग्रहण किया है । सभी कवियों ने प्राकृतिक सौन्दर्यता व सुन्दरता को अपने अंदर उस मधुर रस को स्थापित करके अपने काव्य को बहुत ही सरस बनाया है।
कवियों व साहित्यकारों की सब की अपनी अलग – अलग काल में सृष्टि द्वारा रचित प्रकृति के प्रति प्रेम की बढ़ोतरी होती गयी । हर काल में कवियों द्वारा अपने – अपने द्वारा प्राकृतिक की सुन्दरता को प्रकृति चित्रण किया गया है।
निष्कर्ष
प्राकृतिक एक ऐसी चीज है जो हर किसी की जरूरत है । प्रकृति के द्वारा ही हमारा जीवन सुन्दर व स्वस्थ दिखता है । जिस तरह साहित्य में साहित्यकार द्वारा इसका रूप रेखित किया गया है वो वास्तव में तारीफ करने योग्य है।
इसलिए हमें प्राकृतिक के साथ उसका वर्णन करने वाले अपने कवि व साहित्यकार को भी सम्मान करना चाहिए।
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