साहित्यकार का दायित्व । Sahityakar ka Dayitva in Hindi

दोस्तों, कहा जाता है की साहित्यकार जिस देश में जन्म लेते है तथा वह जिस समाज में रहते है । वहाँ की सभ्यता में या परिस्थितियों उनके मस्तिष्क व उनके हृदय को प्रभाव डालती है । एक लेखक व साधारण पुरुष में अंतर होता है।

क्योंकि एक साधारण पुरुष अपने समाज में या अपने आस – पास हो रही घटना को बस मूक दर्शक बनकर देखता ही रहता है । लेकिन वही एक लेखक या साहित्यकार समाज के समक्ष हो रही घटना को अपने भावों और विचार द्वारा व्यक्त करके समाज के सामने प्रस्तुत करता है।

जिस व्यक्ति के सामने अगर हो रहे अन्याय को देखकर भी क्रोध व कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करें, तो एक मनुष्य के भाँति व्यक्ति नहीं है । साहित्यकार हमेशा से विचारो के अभिव्यक्ति होते है । मानव जीवन में साहित्यकार समाज का दर्पण होता है।

साहित्यकार का जीवन

एक साहित्यकार का जीवन सामान्य पुरुष से बहुत अलग होता है । वह अपने जीवन में, समाज में हो रही गतिविधियों को अपने अनुभव द्वारा साझा करके समाज के सामने प्रस्तुत करता है।

कोई भी साहित्यकार सामान्य जीवन नहीं व्यक्ति करता है , बल्कि वह सबसे हटकर एक संवेदनशील सामाजिक प्राणी होता है । वह जीवन में जो भी समाज में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप घटित होता है उसे वो अपने अनुभव के द्वारा सभी प्रतिक्रिया को सभी के सामने प्रकट करता है।

साहित्यकार की इसी सद्भावना की वजह से समाज के लोग उसे अपना अगुवा बना लेते है । जिससे उसका उतरदायित्व बढ़ जाता है । आज तक इतिहास गवाह है की प्रत्येक युग में साहित्यकारों ने अपनी सजगता  से अपने उतर दायित्व भली प्रकार से निर्वाह करता है।

साहित्यकार की मानसिकता

एक साहित्यकार की मानसिकता उसके युग के सापेक्ष होती है । वह परम्पराओं के द्वारा अनुभूतियों से रंजित भी रहती है । जिसके कारण उसका दायित्व समकालीन जीवन का चित्रण करना होता है । वह युग जीवन को नेतृत्व कर उसका पथ प्रदर्शन करना होता है।

जब कोई देश की राष्ट्रीय स्वतंत्रता व संस्कृति संकट में पड़ती है तो उस युग के साहित्यकार अपने मानसिकता के द्वारा सबल लेखनी उठाकर राष्ट्रों, जातियों व संस्कृतियों में नव संचार का विस्तारण करता है।

इसी तरह से साहित्यकार का दायित्म गौरवपूर्ण होता है । वह अपनी सभ्यता संस्कृति, अपने देश और राष्ट्र को उचित मार्ग से भटकने नहीं देता है । वह अपनी वाणी द्वारा हमेशा सब की धमनियों में नये रक्त का संचार करता है।

एक साहित्यकार मानसिक रूप से स्वस्थ व शांत स्वभाव रखता है । किसी भी गतिविधियों को  बहुत ही सरल व शुद्ध तरीके से गहराई तक सच्चाई को बाहर निकाल कर समाज के सामने रखता है।

साहित्यकार का इतिहास

साहित्यकारों के लिए इतिहास साक्षी है की हर युग में अपने कर्तव्य का निर्वाह सही ढंग किया है । वही यदि साहित्यकार अपने पाठक के द्वारा मर्म पर प्रहार करने के लिये समर्थ हो जाता है तो वह अपने राष्ट्र के लिए एक अमूल्य धरोहर बन जाता है।

सारे संसार में एक साहित्यकार ही एक ऐसा प्राणी है, जो समाज व देश की राष्ट्र सेवा के लिए सबसे आगे चलता है। अपितु वह किसी के पीछे नहीं चलता है । वह हमेशा समाज का मार्गदर्शन करता है । समाज में हो रही सच्चाई के साथ बुराई जैसी घटनाओं का सन्देश भी पूरे देश में हर समाज तक पहुँचाने का काम करता है।

एक साहित्यकार अपने मन, वचन और कर्म से तपस्वी यानि की साधक होता है । वह हमेशा एक दीपक की तरह जलकर दूसरों का जीवन आलोकित करता है।

वह ज्ञान का ज्योत हर घर में जलाता है । मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा एक साहित्यकार को आदर्शवादी होना चाहिए । क्योंकि उनका इसका अर्थ था की, जब तक कोई साहित्य में आदर्श तक नहीं पहुँचता है तब तक साहित्य से मंगल की आशा नहीं की सकती है।

निष्कर्ष

एक साहित्यकार अपना विरोध के साथ सही हो रहे कार्यों का अपना समर्थन भी समाज के लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है। वह समाज में हो रही कुरीतियों को समाप्त करने में साहित्यकारों का सबसे बड़ा योगदान रहा है।

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