हमारी मां हम सब की जननी कहलाती है क्योंकि वे हमें जन्म देती है। यही धरती माँ हमें बच्चों की भांति पालती है। जिस देश में हम पूरा बचपन जीते हैं वह मातृभूमि हमारे प्राणों से भी बढ़कर है।
इस स्वर्णिम देश की मिट्टी पर हम अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करते हैं क्योंकि यही वह भूमि है जिसने हमें खाने के किये अन्न, पीने के लिए जल और रहने के लिए स्थान दिया।
देशप्रेम का अर्थ
प्रत्येक जीव अपनी जन्मभूमि से जुड़ा होता है। वह उससे भिन्न भिन्न कभी भी अपने अस्तिव को स्वीकार नहीं करता। एक व्यक्ति कहीं भी चला जाये, देश से बाहर में उसे कितना ही प्रेम और आदर क्यों न ही मिले, उसे आख़िर अपने देश की मिट्टी ही प्यारी होती होती है और वह वहीं रहना चाहता है। चाहे कुछ भी हो कोई भी अपनी जन्मभूमि से सबसे ज़्यादा जुड़ा होता है जिसे वह कभी नहीं भूल सकता।
अगर हम आज के युग के देश प्रेम की बात करे तो पाएंगे कि अपनी प्यारी राष्ट्र की पौराणिक विरासत लिए हमारी पीढ़ी राष्ट्र के नाम पर काफी दुखमयी दिखती हैं।
देश प्रेम की भावना
हम देखते हैं की केवल कुछ ख़ास अवसरों पर ही इनके दिलों में देश के प्रति प्रेम जागता है, हमें इस चीज़ को बदलना होगा । यह भावना कुछ कार्यक्रमों की समाप्ति के पश्चात जैसे स्वतंत्रता दिवस, अगले साल तक के लिए सो जातो है.
समय के साथ खत्म होती जा रही देश के प्रति इस प्रेम की भावना राष्ट्र के बेहतरी की एक सफल परिभाषा है। हमारे नवीन युग के युवकों में अपने देश के प्रति कुर्बान हो जाने का जज्बा हमें उत्पन्न करना होगा, और इस कार्य में शिक्षा प्रणाली एवं हमारे बड़े को आगे आने की आवश्यकता है।
हालांकि आज अपने देश की स्वतंत्रता की वजह से हमारे देश में भाईचारे की भावना आयी है जिसकी वजह से किसी को भो अपने देश से जाने की ज़रूरत नहीं है।
देश की स्वर्णिम मिट्टी
हमारे देश के राष्ट्रीय हीरो के समर्पण व त्याग की वजह से हमारा देश स्वतंत्र है मगर लोगों को अपने देश के प्रति प्रेम को दिखाने की जरुरत नहीं हैं क्योंकि हमारा अस्तित्व हमारे देश की भूमि से ही हैं।
हम इस भूमि पर पैदा हुए इसीलिए हमें जो कुछ मिला वह इसी देश की मिट्टी के बदौलत मिला। आज संसार में बहुत परिवर्तन हुआ है। हम आर्थिक युद्ध में सफलता प्राप्त करते जा रहे हैं.
वो ताकते जीसमें धन की खुशबू हों हमारें बाजारों पर दिन-प्रतिदिनराज कर रही हैं। देश में इतनी जनसँख्या हो गयी है हर किसी को नौकरी या व्यवसाय का मौका नहीं मिल पाता और लोग बेरोजगार रह जाते हैं। वे लोगों से कर्ज़ लेकर अपनी ज़िन्दगी चलाने पर विवश हैं। एक विकासपूर्ण व नवीन युग को तलाश में अपने राष्ट्र प्रेम को फिर से ज़ाहिर करने की आवशयकता हैं।
निष्कर्ष
हमारे देश में बनी वस्तुओं के इस्तेमाल को महत्व देकर, बाहरी देशों के वस्तुओं के बहिष्कार औऱ हमारे आसपास स्नेह व एकता की भावना ला कर अपने राष्ट्र की प्रगति में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले सकते हैं। किसी भी राष्ट्र का विकास और शान्ति एक दूसरे की ज़रुरत हैं।