सन्त कबीर दास हिंदी काव्य के एक बहुत चर्चित कवि माने जाते हैं। उन्होंने समाज के हर पहलू पर ज़ोर दिया जिससे वे उच्च कोटि के समाज के रक्षक बन गए।
कबीर जी ने समाजिक पहलू पर प्रकाश डालते हुए इसमे हो रहे अत्याचारों व पाखण्डों को जड़ से मिटाने का प्रयत्न भी किया और इस उद्देश्य के मध्य उन्हें उन्हें समाज से भिन्न कर दिया।
दिलों को छू जाने वाली काव्य
यदि सच्चाई व परोपकार की बात करें तो सन्त कवि कबीर दास के दिल में केवल उदारता व अच्छाई थी। इसी वजह से उनकी बोली काफी प्रभावित करने वाली थी। उनके द्वारा लिखे कुछ कविताओं के सारांश में आत्मा के दुःख व पीड़ा का वर्णन किया है जो किसी भी व्यक्ति का दिल पिघलाने के लिए काफी है।
कबीर जी बहुत कोमल व सरल प्रवित्ति के थे जिससे लोग आकर्षित हो जाते थे। कबीर ज्ञान पर महत्व दिखाते हुए कई रचनाएं लिखी जो हर क्षेत्र में उत्तम है।
उनके काव्य में नीति की झलक थी जो किसी भी मामले में रहीम से कम अमूल्य नहीं। तुलसीदास व सूर की रचनाओं की सफलता के बाद सन्त कबीर के काव्य की गिनती होती है। इन काव्यों के बाद के बंधुओं ने अपने ‘हिंदी नवरात्र’ में कबीरदास, तुलसीदास व सूर के बाद तीसरा गुनी कवि के रूप में श्रेणी हासिल की है।
कवि के अलावा एक समाज रक्षक
इसके बावजूद कबीरदास अपने विचारों व लक्ष्यों पर कायम रहे। जब तक वे जिये तब तक समाज के कल्याण और हित के लिए रक्षक बन के रहे।
उनका जन्म वर्ष 1398 में काशी स्थित लहरतारा नाम के जगह पर हुआ था। वे सदैव लोगों के दिलो में उत्तम कवि बन कर रहेंगे। कबीर जी भक्ति काल में पैदा हुए थे जिसकी वजह से कई खूबसूरत रचनाएं लिखने वाले गुनी व महान कवि कहलाये।
दो धर्मों का मेल
वे हिन्दू माँ के कोख से पैदा हुए और एक मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उनको परिवार की तरह बड़ा किया। अतः उनका तालुक दो धर्मों से था परन्तु फिर भी वे किसी भी धर्म की बड़ाई नही करते थे और फिर अवगुण ब्रह्म की आराधना करने वाले व्यक्ति बन गए।
कबीर जी ने सम्माज में एक ऐसा धर्म स्थापित किया जिसको सम्मान देने वालों की कमी नही थी और कोई भी इसे अपना सकता था। एक तरफ वे हिन्दू धर्म के तीर्थ यात्रा, मंदिर, फल, पूजा, उपासना कि निंदा की और वहीं मुस्लिमों के व्रत, अज़ान व मस्जिद के भी खिलाफ थे।
धर्मों के खिलाफ परन्तु धर्मों से प्यार
कबीरदास अवगुण थे जिनकी रुची भक्ति में थोड़ी भी नही थी और इसी कारण वे भिन्न भिन्न जगहों पर हो रहे मूर्ति-पूजा की निंदा की। इस्लाम धर्मों को मानने वालों की आराधना मस्जिद में हो अज़ान से होती है। जो अज़ान का अधिकारी होता है वह बहुत तेज की आवाज से अज़ान पढ़ता है।
कबीर को यह बात काफी विचित्र लगती थी जिस पर वे टोक देते थे और कहते कि तुम लोगों का भगवान कम सुनता है क्या। मुसलमानों के तरफ से हो रहे हिंसा के अलावा वे हिंदुओं के भेदभाव व छुआछूत की निंदा करते थे।
निष्कर्ष
यह समाज कबीरदास एक विद्वान से कम नहीं समझते थे। वे एक समाज के बुराईयों के खिलाफ लड़ने वाले रक्षक होने के अलावा अत्यंत ज्ञानी भी थे।
कबीर एक सर्वश्रेष्ठ कवि तो थे ही इसके अलावा उच्च समाज केकार्यकर्ता भी रहे थे।