सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत हर तरह से पूर्ण है परन्तु आज भी इसका समाज जाती, धर्म, भाषा, रंग के जाल में फंसा हुआ है जिससे बाहर सर्फ नए व खुले विचार ही ला सकते हैं।
यह सब एक ऐसा सामजिक मुद्दा है जो ज़हर की तरह कार्य करता है। यहाँ लोग देश की आज़ादी का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे समाज की नींव कमजोर हो रही है। इन भिनता के भेदभाव की वजह से देश की एकता भंग हो रही है।
इस सामाजिक बाधा का मूल जड़ राजनीति है जिससे देश का विकास थम गया है। इनके ताकत व सत्ता के लाल चके बीच में ये समाज पीस रहा है जिसका फायदा ये नेता, भ्रस्ट सरकारी अफसर उठा रहे हैं।
राजनितिक कूटनीति
इस देश का भाषावाद होना सबसे बड़ी ससामाजिक बाधा है जो धीरे-धीरे समाज को औऱ पीछे ले जा रही और जो देश के लिए घातक है।
हमारे देश के में भाषाओं ब बोली की भिन्नता है जो कहीं नही है और यही बात भारत को सबसे अलग करती है पर यही इसकी कमज़ोर कड़ी भी बन गई है।
इसके कारन समाज में भेदभाव हो रहा है। अनेकों भाषाओं वाला हमारा देश बहुभाषी देश है। बहुभाषी देश होने की वजह से किसी ख़ास भाषा को राष्ट्रमहत्व नही मिल पाई आजतक।
जनसंख्या-मूल कारक
हमारे देश सबसे बड़ी समस्याओं में से एक जनसंख्या। अगर पीछे के कई वर्षों का आंकलन करे तो पाएंगे कि इन 2-3 वर्षों में देश की जनसँख्या में काफी वृद्धि हुई है।
इस समस्या से जूझ रहा यह लोकतांत्रिक देश भिन्न समस्याओं से पीड़ित है। हमारे देश की जनसंख्या का अनुपात गत वर्षों में तेजी से बढ़ा है जो किसी और देश के मुकाबले काफी ज़्यादा है।
आज के मौजूदा वक्त में हमारे देश की जनसंख्या 130 करोड़ तक पहुंच गई है।
बढ़ती बेरोजगारी
अधिक आबादी के कारण देश की रोजगार पर प्रभाव पड़ा है। इस बेरोजगारी नाम की यह बाधा काफी निंदनीय और कष्टदायक बाधा है। इससे निपटने के लिए देश की यूवा को रोजगार का अवसर प्रदान करना होगा तभी इस बेरोजगारी की समस्या से समाज को मुक्ति मिलेगी।
बेरोजगारी जैसे चुनौती से निपटने हेतु देश की मौजूदा सरकार निरन्तर कोशिशों बावजूद विफल हुई है रही है, कारण अभी तक हमारी शिक्षा के क्षेत्र में उतना। विकास नही हुआ की सही गति को पकड़ सके।
भ्रष्टाचार की समस्या
अनेकों संस्कृति व इतिहास को अपने अंदर संजोने वाला ये देश बेरोजगारी और अन्य कई मामले में पीछे वह गया है औऱ कुछ नही कर पाया है।
इन्ही घूसखोरी समस्याओं में से महँगाई और भ्रष्टाचार चरम सिमा पर पहुंच गया है। कई सामाजिक बुराईयों ने इस देश को पूर्ण रूप से घेर लिया है जो विकास के मार्ग को बाध्य किये हुए है जैसे घूसखोरी, चोरी, डकैती, भ्रस्टाचारी, कूटनीति व महँगाई।
भिन्नता ही देश की खूबसूरती
हमारा देश सदियों से अपनी सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है और कई विद्यमाणों की जानकारी के मुताबिक, इस देश की सभ्यता लगभग पाँच हज़ार वर्ष पुरानी है। यही कारण है कि यहाँ के लोगों के विचार, उनके आदर्श सब पुरानी है और जटिल भी।
किसी भी देश व प्रांत के लोग इस देश में आकर अपना आशियाना बना सकते हैं और सबसे अच्छी बात तो भारत की ये है कि यहां लोगों को बहुत अपनापन महसुस होता है।
यह कठिनता और विकास व सम्पन्नता एक देश को तक लेके जाता है और खुशहाल और भिन्न सांस्कृतिक देश का संकल्प लेता है । रूप, रंग, भाषा जाती, बोली की भिन्नताओं का ये भारत देश अभी भी समाज के कुछ लोगों के कारण विकास के स्तर तक पहुंच पाने में बाधा बनी हुई हैं।
निष्कर्ष
आमतौर पर, एक राष्ट्र की समस्या वह मुद्दा है जो एक समाज को संतुलित करने में पूरी तरह बाध्यक साबित होता है। सदियों के इतिहास पर हम प्रकाश डालें तो देखेंगे कि यह कई प्रकार की बाधाओं व चुनौतियों के इतिहास के रहस्य से गुथी हुई है।
एक देश चाहे निरक्षर न हो, असभ्य न हो, पर हम भुल जाते है कि ये दुनिया मानव की है और जहां मानव होंगे वहाँ गलतियां, कुकर्म, भ्रस्टाचार, लूटपाट, भेदभाव जैसी समस्याएं व्याप्त रहेंगी। यही सब समाज की उलझनें मानव की पैदा की हुई हैं।
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