दोस्तों, जब भारत देश 15 अगस्त 1947 को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त हुआ । उस समय के राजनीति में उथल-पुथल व सामाजिक परिवर्तन तथा विकास से गुजरते हुए भारत अपने सपनों को साकार करने का प्रयास कर रहा था । देश की जनसंख्या में परिवर्तन तथा सामाजिक ढांचे में ढलने का सुधार आया।
ब्रिटिश शासन राज द्वारा कई तरह की परम्परा की शुरुवात की गयी थी । जिनमें से उसी एक को आधार मानकर शिक्षा को आगे बढ़ाया गया । देश की शिक्षा का तब कोई रूप रेखा तैयार नहीं किया गया था । इसलिए ब्रिटिश द्वारा बनाई गयी शिक्षा प्रणाली को ही राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया।
परन्तु ये शिक्षा प्रणाली को नए राष्ट्र के प्रशासकों को स्वीकार नहीं हो पाया । 1947 में स्वतंत्र सरकार द्वारा भारत देश का दायित्व संभाला गया । उस समय शिक्षा को नई रूप रेखा देने के लिए केंद्र का शिक्षा विभाग को शिक्षा मंत्रालय के रूप गठन किया गया । और तब जाकर सभी राज्य सरकारों को शिक्षा का दायित्व सौंप दिया गया।
भारत में शिक्षा का गठन
1947 में भारत की आज़ादी के बाद शिक्षा का गठन धीरे – धीरे किया गया । केंद्र द्वारा सभी उच्च शिक्षा का समन्वय, प्रगति, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षा इत्यादि सब तत्कालीन नवीन सरकार द्वारा अपने हाथों में ले लिया गया।
इसके बाद शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षा मंत्री व राज्य शिक्षा मंत्रियों द्वारा पूर्णरूप से परिचालन किया जाने लगा । सन 1950 में भारत देश का अपना संविधान लागू किया । जिसको लागू करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था । जो डॉ. भीम राव अंबेडकर जी नेतृत्व में लगभग 299 सदस्यों द्वारा मिलकर बनाया गया था।
अब इस संविधान के अनुसार शिक्षा को राज्यों का विषय बनाकर दिया गया । उस समय शिक्षा का शिक्षा का संगठन इस तरह हुआ करता था । पहले शिक्षा मंत्रालय की स्थापना व शिक्षा मंत्री हुआ करते थे फिर उसके अधीन राज्यों के शिक्षा मंत्री, सचिव, उप सचिव, सहायक सचिव इत्यादि सब हुआ करते थे।
भारत देश के शिक्षा के आधारभूत इकाइयाँ में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ़ एजुकेशन (1921), हायर सेकेंडरी एजुकेशन इत्यादि सब है । इतिहास का समय शिक्षा की दुनिया में करवट एक ने एक दिन बदलता ही है । जैसे भारत देश में अचानक से परिवर्तन आया और देश आजाद हो गया।
उस समय राष्ट्र के आवश्यकता अनुसार शिक्षा नीति के निर्माण द्वारा ही सामाजिक परिवर्तन किया जा सकता था। तब के शिक्षा-विशारदो द्वारा यह ज्ञात किया गया की, शिक्षा के ढांचे को बिना परिवर्तन के सही रास्ता मिलना असंभव था।
समाज में शिक्षा का महत्व
भारत देश शिक्षा का उस समय बहुत ही अभाव था । बिना शिक्षा के परिवर्तन के हम देश को आगे नहीं बढ़ा सकते है । अगर हमें समाज को शिक्षित करना है तो उनके बीच शैक्षणिक संस्थान का व्यवस्था करना जरूरी है।
हमारे देश में शिक्षा का अभाव होने के कारण ही ब्रिटिश सरकार द्वारा कई सालो तक राज किया गया । अंग्रेज भारत के लोगों को जानवरों के सामान मानकर उनसे कार्य कराते थे । उन तरह के जुल्म व यातनाये अंग्रेजों द्वारा दी जाती थी।
परन्तु हम 1947 के बाद पूरी तरह से अपने समाज को विकसित कर लिया है । आज हम किसी भी देश को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है । क्योंकि शिक्षा के विकास से ही हम अपने देश को आगे बढ़ने व विकसित करने में मदद कर सकते है।
राष्ट्र का पुन निर्माण
अगर हमारे देश का हर व्यक्ति शिक्षित है तो वो राष्ट्र का निर्माण करने में अपना पूरा योगदान दे सकता है । क्योंकि लोगों की सोच व विचार अच्छे हो तो किसी भी चीज में परिवर्तन ला सकता है । और ये सब तभी संभव होगा जब हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था एकदम सही रूप रेखा हो।
हमें साधारण नागरिक को शिक्षित करने के लिए शैक्षणिक स्तर को ऊपर उठाना होगा । तथा एक शिक्षित वर्ग द्वारा शिक्षा का निर्माण करने के लिए प्रयत्न करना होगा।
क्योंकि राष्ट्र का निर्माण कार्य विद्यालयों व महाविद्यालयों के छात्र – छात्राओं के गुणों के आधार पर निर्भर होता है । इसलिए राष्ट्रीय की शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए।
आज के शिक्षा में बहूमुखी विकास हुआ है जिसके तहत साक्षरता का प्रतिशत दर बढ़ा है । परन्तु के समय देश की बढती जनसंख्या ने फिर से शिक्षा को मुश्किल में डालता जा रहा है।
निष्कर्ष
हमें अपने शिक्षा को समाज में बढ़ावा देने के लिए हर संभव मदद करनी चाहिए । ताकि समाज व देश का भला हो सके । शिक्षा की बढ़ती समस्या कई क्षेत्र में विकराल रूप धारण किया हुआ है।
सरकार द्वारा भी बढ़ रही शिक्षा की समस्या को ध्यान में रखकर कुछ न कुछ कदम उठाना चाहिए । जिसके वजह से शिक्षा प्रणाली द्वारा शिक्षा देश के हर व्यक्ति व समाज को मिल सके।