भारतीय समाज में कुरीतियों पर निबंध । Evil Practices in Indian Society Essay in Hindi

भारतीय समाज में कुरीतिया पर निबंध

भारतीय समाज, भारत वास्तव में विविधताओं का देश है, जहां अनेक जातियां, धर्म, संस्कृतियाँ, और भाषाएँ सहजता से समेकित हैं। यहाँ के विभिन्न भागों में लोग अपनी-अपनी विशेषताओं, परंपराओं, और भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग तरीके से रहते हैं।

हमारे भारत की भौगोलिक विविधता भी बेहद प्रचुर है। यहाँ पहाड़ों से लेकर समुद्र तटों तक, वृक्षातीत इलाकों से लेकर विशाल धरती के मैदानी इलाकों तक विविधता देखने को मिलती है।

भारत में भाषाओं का भी विशाल संग्रह है। हर राज्य में अपनी विशेष भाषा होती है और कई स्थानों पर एक ही राज्य में भी विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। यहाँ हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, तमिल, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, तेलुगु, कन्नड़ और अन्य कई भाषाएँ बोली जाती हैं।

यह भारतीय सबहीत और भाषाओं का संगम ही भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, जो इसे एक अद्वितीय और विशेष देश बनाती है। इस विविधता में भारतीय समाज और संस्कृति की भव्यता छिपी हुई है जो उसे विश्व में अद्वितीय बनाती है।

भारतीय जीवन का वर्तमान स्वरूप

समाजिक मुद्दे भारतीय समाज की सटीक छवि को प्रकट करते हैं, जिनसे अनेक लोग प्रभावित हो रहे हैं। ये कुरीतियाँ और अव्यवस्थाएं भारतीय समाज के अनेक क्षेत्रों में प्राचीनता से मौजूद हैं, और इनका असर समाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से होता है।

  • वर्णव्यवस्था: इसमें समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। यह वर्णव्यवस्था समाज में असमानता को बढ़ावा देती है।
  • अंधविश्वास: इसमें लोग अज्ञानता और धार्मिक विश्वासों के आधार पर निर्णय लेते हैं, जो वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति को अस्वीकार करता है।
  • जातिवाद और सम्प्रदायवाद: यहाँ पर लोगों को उनकी जाति और धर्म के आधार पर विभाजित किया जाता है, जिससे समाज में बाधाएँ बढ़ती हैं।
  • क्षेत्रवाद और प्रांतवाद: यह समाज को भौगोलिक और स्थानीय मूल्यों के आधार पर विभाजित करता है, जिससे सामाजिक एकता में कमी आती है।
  • भाषा-बोली वाद: भारत में अनेक भाषाएँ हैं, जिससे कई बार समाज में भाषा के आधार पर भेदभाव होता है।
  • दहेज-प्रथा, बाल-विवाह, सती-प्रथा: ये प्राचीन प्रथाएं हैं जो अब भी कुछ समाजों में मौजूद हैं और महिलाओं को कमजोर बनाती हैं।

ये सभी कुरीतियाँ और अव्यवस्थाएँ समाज को बाधित करती हैं और लोगों को नुकसान पहुंचाती हैं, खासकर महिलाओं और वंचित समुदायों को। इनमें से कुछ आर्थिक, सामाजिक, और मानवीय सुधारों की आवश्यकता को दर्शाते हैं ताकि समाज में समानता, न्याय, और सशक्तिकरण की दिशा में प्रगति हो सके।

वर्ण व्यवस्था:

भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था का इतिहास दायर है। यह प्राचीन सामाजिक प्रणाली समाज को विभाजित करती थी और व्यक्तियों को उनके काम के आधार पर वर्गीकृत करती थी। इसके साथ ही यह पद्धति न्याय, सामाजिक समरसता, और समाजिक विकास में बाधाएं पैदा करती थी। धर्मानुसार जन्म के अनुसार भेदभाव इस पद्धति की बुनियाद थी, जो अब बदल रही है।

वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इस पद्धति में, प्रत्येक वर्ण की अपनी-अपनी जिम्मेदारी थी और समाज के विभिन्न पहलुओं को संचालित करने का काम था।

आज के समय में, समाज वर्ण व्यवस्था को छोड़कर समानता और न्याय की दिशा में आगे बढ़ रहा है। समाज में शिक्षा, जागरूकता, और सशक्तिकरण के माध्यम से वर्णाश्रम व्यवस्था की प्रतिष्ठा को धीरे-धीरे हटाया जा रहा है, और समाज के सभी वर्गों को समान अधिकारों का आनंद उठाने का दर्शनिक स्तर पर बदलाव देखने को मिल रहा है।

असमानता ओर उपेक्षा पूर्ण भाव:

समाज में महिलाओं के प्रति असमानता और उपेक्षा की समस्या को उठाता है, जो वास्तव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारतीय समाज में पुरानी वर्ण व्यवस्था, जाति और लिंग के आधार पर न्याय और समानता को अस्थायी रूप से प्रभावित करती रही है। महिलाओं के साथ अन्याय और उनके प्रति असमान व्यवहार की समस्याएं आज भी मौजूद हैं।

महिलाओं को सिर्फ “योग्या” के रूप में देखना और समझना, उन्हें उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित करता है। उन्हें समाज में सिर्फ घरेलू कामों और परिवार की देखभाल का ही जिम्मा दिया जाता है, जिससे उन्हें समाज में शक्ति और सम्मान कम मिलता है।

आज के समय में, महिलाओं को समानता, सम्मान और सुरक्षा के मामले में अधिकारों का पालन करने का अधिकार होना चाहिए। उन्हें शिक्षा, सम्मान, और समान अधिकारों का लाभ उठाने का पूरा हक होना चाहिए। समाज में महिलाओं के प्रति उपेक्षा और अत्याचार को समाप्त करने के लिए शिक्षा, संविधानी उपाध्याय, और सशक्तिकरण की आवश्यकता है।

इससे पहले की महिलाओं को समाज में पूरी तरह से सम्मानित और स्वतंत्र माना जा सके, हमें समाज में सामाजिक मानवाधिकार, शिक्षा, और समानता के मामले में सक्रिय रूप से काम करना होगा। इससे हम एक समृद्ध, समान और समरस समाज की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे।

अंध-विश्वास :

अंध-विश्वास का अर्थ होता है ऐसा विश्वास जो वैज्ञानिक और तथ्यों पर आधारित नहीं होता है। इसमें व्यक्ति किसी अज्ञात, अनिष्ट या सुपरनैचुरल कारणों के बिना किसी घटना को समझता है और इस प्रकार के विश्वास के कारण वे अनुचित या नुकसानदायक कार्रवाई में प्रेरित हो सकते हैं।

महिलाओं के खिलाफ समाज में असमानता और उपेक्षा की समस्या अभी भी अवरुद्ध है। पुरानी धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं ने उन्हें केवल घरेलू कामों और परिवार की देखभाल में ही समाज में रखा है। महिलाओं को सिर्फ ‘योग्या’ के रूप में देखना और समझना, उनके अधिकारों को समाप्त कर दिया है। उन्हें समाज में सम्मान, सुरक्षा, और समानता का हक दिलाना जरूरी है।

समाज में महिलाओं को सम्मानित और स्वतंत्र माना जाना चाहिए। इसके लिए शिक्षा, सम्मान, और समान अधिकारों का लाभ मिलना चाहिए। समाज में महिलाओं के प्रति उपेक्षा और अत्याचार को समाप्त करने के लिए शिक्षा, संविधानी उपाध्याय, और सशक्तिकरण की आवश्यकता है। इससे हम एक समृद्ध, समान और समरस समाज की दिशा में अग्रसर हो सकेंगे।

दहेज- प्रथा:

मेरा विचार दहेज प्रथा के खिलाफ है, जो वास्तविकता में एक समाजिक और मानवाधिकार की उल्लंघन है। दहेज प्रथा एक पुरानी और नकारात्मक प्रथा है जो विवाह में भाग लेने वाली महिलाओं को जीवन की दी जाने वाली सम्पत्ति और सामग्री के रूप में दी जाती है। यह प्रथा महिलाओं के साथ अन्यायिकता, असमानता, और बढ़ती विवाह संबंधित दुःखों का कारण बनती है।

दहेज प्रथा एक अत्यंत नकारात्मक और असमानता भरा प्रथा है जो महिलाओं को सिर्फ उनकी विवाहित जीवन साथिनियों के रूप में देखती है, जिससे उन्हें शोषण और अत्याचार का शिकार होना पड़ता है। इस प्रथा के कारण, कई महिलाएं अन्याय और दबाव के चलते अत्याचारित होती हैं, जिससे उन्हें मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए सक्रिय जागरूकता, शिक्षा, और समाज में समानता की भावना फैलानी चाहिए। समाज में इसे खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाने और सशक्तिकरण को महत्त्वपूर्ण मानना चाहिए। इसमें सरकारी और सामाजिक संगठनों का भी अहम योगदान होना चाहिए, ताकि इस अशिक्षित और अनुचित प्रथा को समाप्त किया जा सके।

बाल-विवाह:

बाल विवाह एक घातक समस्या है जो मानवता और समाज के लिए बड़ी चुनौती है। यह अपराधनीय है और किसी भी समाज में नागरिकता और मानवाधिकारों के खिलाफ है।

बाल विवाह के मुख्य कारणों में गरीबी, जातिवाद, सामाजिक प्रतिष्ठा की भावना, शिक्षा के अभाव, और परंपरागत धार्मिक मान्यताओं का प्रभाव शामिल हो सकता है। बच्चों को इस तरह के विवाहों में जाने देना उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है और उनकी शिक्षा और समाजिक सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है।

सरकारों ने बाल विवाह को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए हैं और कई कानूनी प्रावधान किए हैं, लेकिन इसके बावजूद यह समस्या आज भी जारी है। इसे रोकने के लिए समाज में जागरूकता, शिक्षा, समाजिक परिवर्तन, और कानूनी कदमों का सख्ती से पालन करना आवश्यक है।

शिक्षा को समाज में फैलाना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि लोग इस समस्या के खतरों को समझ सकें और इसे रोकने के लिए सक्रिय हो सकें। साथ ही, सरकारों को सख्त कानूनों को लागू करने के साथ-साथ, उन्हें प्रभावी रूप से प्रचारित करने की आवश्यकता है।

बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में समाज, सरकार, और समाज सेवी संगठनों को मिलकर काम करना होगा ताकि हम समृद्ध, समान और समरस समाज की दिशा में अग्रसर हो सकें।

कविवर रामधारी सिंह दिनकर की निम्नलिखित कविता पंक्तियों में इस स्थिति का स्पष्ट चित्रण है:

“मन से कराहता मनुष्य पर ध्वंस बीच तन में नियुक्त उसे करती नियति है।”

रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्ति नारी के उत्पीड़न और समाज में उसकी स्थिति को बयान करती है। प्राचीन समय में नारी को देवी के समान माना जाता था, लेकिन आजकल उसकी स्थिति में बड़ी परिवर्तनात्मक परिवर्तन आया है। आज की समाज में, नारी दहेज, पुरुष के स्वार्थ, और समाजिक प्रतिष्ठा के लिए बलात्कार और उत्पीड़न का शिकार हो रही है।

यह समस्याएं अखबारों में अक्सर दिखाई देती हैं, जैसे नारी के प्रति अत्याचार, दुराचार, बलात्कार और दहेज के लिए हुई जानलेवा घटनाएं। ये सभी अपराध नारी के अधिकारों और मानवता के खिलाफ हैं और समाज में इसे सुधारने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष 

भारतीय समाज में जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, सती प्रथा आदि कई कुरीतियों का सामना कर रहा है। इन कुरीतियों को निर्मूल करना बहुत जरूरी है क्योंकि ये समाज के विकास और सामूहिक उत्थान में बाधाएं पैदा करती हैं। जब हम इन कुरीतियों से निपटते हैं, तो हमारा समाज एक अधिक समृद्ध, समान, और सशक्त समाज बनता है।

जातिवाद ने समाज को बाँधा हुआ है, इसलिए हमें जातिवाद के खिलाफ लड़ना और उसे समाप्त करने के लिए उपाय करना होगा। क्षेत्रवाद, भाषावाद और प्रांतवाद समूचे देश के एकीकरण में बाधा बन रहे हैं, तो हमें इसे दूर करने के लिए साझा दृष्टिकोण अपनाना होगा।

FAQs

1. क्या हैं भारतीय समाज में कुरीतियां?

कुरीतियां भारतीय समाज में देश के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद समाजिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक प्रथाओं को संकेतित करती हैं, जो आमतौर पर अनैतिक, अन्यायपूर्ण या विवादास्पद होती हैं।

2. भारतीय समाज में कौन-कौन सी प्रमुख कुरीतियां हैं?

भारतीय समाज में कुरीतियां जैसे जातिवाद, दहेज प्रथा, बाल-विवाह, साती प्रथा, भाषावाद और अन्य अनेक प्रकार की होती हैं।

3. क्या कुरीतियां भारतीय समाज के विकास में बाधक होती हैं?

हाँ, कुरीतियां समाज के विकास में बाधक हो सकती हैं क्योंकि वे व्यक्तियों और समाज के भीतर बाधाएं खड़ी करती हैं जो समृद्धि और समानता की राह में आरम्भिक चरणों में असफलता और असमानता उत्पन्न कर सकती हैं।

4. क्या समाज में कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई में सरकार का योगदान होता है?

हाँ, सरकारें कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई में सशक्त नीतियों और कदमों को लागू करती हैं। वे समाज में जागरूकता बढ़ाने, नियमों का पालन करने और कुरीतियों को समाप्त करने के लिए कठोर कानूनों को लागू करती हैं।

5. क्या कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई में समाज का योगदान होता है?

हाँ, समाज के नेतृत्व और सामाजिक संगठन कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाने, उन्हें बदलने के लिए समाज को प्रेरित करते हैं और साथ ही सामाजिक सुधारों में सक्रिय रूप से योगदान करते हैं।

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