राष्ट्र निर्माण में नारी की भूमिका, बहुत से समाजों में महिलाओं के प्रति सम्मान और उनके समृद्धिकरण की बात की जाती है। महिलाओं का सम्मान करना न केवल न्यायपूर्ण होता है बल्कि यह समाज के प्रत्येक सेक्टर में समृद्धि और उन्नति का एक महत्त्वपूर्ण अंग भी होता है।
भगवान या प्राकृतिक चक्र की बात करते समय, यह अवश्यक है कि हर व्यक्ति को समान रूप से महत्त्व दिया जाए और उन्हें उनके स्वाभाविक गुणों के आधार पर समझा जाए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मामलों में महिलाओं का सम्मान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” और “यतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया” के उदाहरण माध्यम से, आपका संदेश यहां यह है कि जहां महिलाओं को सम्मान दिया जाता है, वहां पर समृद्धि और सुख होता है। वे समाज में देवताओं के समान होती हैं।
महिलाओं के सम्मान और समृद्धि के लिए समाज में जागरूकता फैलाना और सम्मानित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जब हम समृद्धि, संतुलन और समानता की बात करते हैं, तो महिलाओं का सम्मान और समानता इसका अनिवार्य हिस्सा होता है।
राष्ट्र के निर्माण में नारी का योगदान
किसी भी देश के उन्नति में पुरुषों के योगदान के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी भी बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। पुरुष अकेले ही राष्ट्र के विकास का बोझ नहीं उठा सकता है। विकसित और उन्नत देशों में, महिलाओं को समाज में साक्षरता, स्वास्थ्य और हक प्राप्त होते हैं, जो की बहुत महत्त्वपूर्ण होता है।
लेकिन विकासशील देशों में, कई बार महिलाओं का समान या पूर्णतः: विकास नहीं होता है। ऐसे माहौल में विकासशील देशों को विकसित होने में ज्यादा समय लगता है।
एक महिला ने एक महापुरुष से पूछा कि एक सज्जन संतान की प्राप्ति कैसे की जाए? उसने जवाब में कहा कि आदर्श माता बनकर। महिलाओं को पुरुषों से अधिक सहनशीलता और संवेदनशीलता का भाव दिया गया है। इससे उन्हें कठिनाइयों को हल करने की क्षमता मिलती है।
उपरोक्त बातों में एक गहन सन्देश छिपा है कि महिलाओं को समाज में एक अच्छे नागरिक बनाने की महत्ता बहुत बड़ी है। नवजात शिशु की पहली शिक्षिका उसकी मां होती है, और उसका जीवन उसकी माता के संस्कारों और विचारों पर निर्भर करता है।
अगर महिलाओं के विचार या स्वास्थ्य में कोई दोष होता है, तो उसकी संतान भी उन्हीं विचारों को अपनाती है। इसलिए, राष्ट्र की विकास में महिलाओं की महत्ता और भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।
जब लगभग आधी आबादी महिलाओं की होती है, तो स्पष्ट है कि राष्ट्र का विकास सिर्फ 50 फीसदी आबादी से नहीं किया जा सकता। उस राष्ट्र के विकास में, उसकी पूरी आबादी का सहयोग जरूरी होता है।
इतिहास में भारतीय विकास में महिलाओं का योगदान
भारतीय महिलाओं ने इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका योगदान, विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम के काल में, अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम काल में, महिलाओं ने अद्भुत साहस और निर्णायक योगदान दिया। महारानी लक्ष्मीबाई, विजयालक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, मणीबेन पटेल, और अमृत कौर जैसी नेत्रियों ने महान परिश्रम और समर्पण से देश के लिए काम किया।
प्राचीन भारत में भी, सीता, सावित्री, गंडकी, अरुंधती, लोपामुद्रा, और अनुसूया जैसी महान स्त्रियाँ अपने ज्ञान और नैतिकता से मानवता को प्रेरित करती रहीं।
हालांकि, समय के साथ, स्त्री-पुरुष के अनुपात में बदलाव और अन्य कई कारणों से, समाज में स्त्रियों का समान योगदान अब धीमा होता जा रहा है। यही कारण है कि भारत का गौरव धूमिल पड़ता जा रहा है।
इस दिशा में, समाज को स्त्रियों के साथ समानता और सम्मान के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने की जरूरत है, ताकि भारत का सम्मान और गरिमा फिर से उच्च स्तर पर आ सके।
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वर्तमान युग में महिलाओं का योगदान
मध्यकाल में मुगल और विदेशी लुटेरों की दृष्टि ने महिलाओं को संकुचित कर दिया और इसे सामाजिक एकत्रित संस्कृति का एक हिस्सा बना दिया। इससे बहुत समय तक इस भावना को बढ़ावा मिला कि महिलाओं का योगदान अनुपस्थित है, जिससे समाज में हानि होती रही।
हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में लैंगिक अनुपात इतना खराब हो गया है कि वहां का विकास और भविष्य संकटमय हो रहा है।
वर्तमान समय में महिलाओं को केवल भोग-विलास की वस्तु माना जाता है और उन्हें घर में बंधक बना कर रखा गया है, जहां उनका मुख्य काम केवल चूल्हा चौका और परिवार की देखभाल होता है।
स्वतंत्रता के बाद, महिलाओं ने सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी स्थिति को सुधारा है। विजय लक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपालानी और इंदिरा गांधी जैसी नेत्रियों ने देश को मजबूत किया।
आधुनिक युग में किरण बेदी, मीरा कुमार, बछेंद्री पाल, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, और मिताली राज जैसी महिलाओं ने हर क्षेत्र में भारत का नाम ऊँचा किया है।
आधुनिक समय में भी, ऐसी महिलाएं हुई हैं जो नैतिकता और मानवीयता के माध्यम से समाज को बदलने का काम कर रही हैं। जब भी महिलाओं के अधिकारों पर हमला होता है, तो समाज को उनके साथ खड़ा होकर समर्थन देने की जरूरत होती है।
भारतीय महिलाओं ने अपने देश के सीमाओं को पार करते हुए विदेशों में भी अपने हक और स्थान की जंग लड़ी है। उनके योगदान से हम सीखते हैं कि जब तक हम महिलाओं को समाज में समानता और सम्मान नहीं देंगे, तब तक राष्ट्र का समृद्धि से कोई ताल्लुक नहीं हो सकता।
भारत के आर्थिक विकास में महिलाओं का योगदान
किसी भी राष्ट्र का पूर्ण विकास तभी सम्भव होता है जब उसकी आर्थिक, भौतिक और सुरक्षा स्थिति समृद्ध होती है। यदि किसी एक क्षेत्र में कमी होती है, तो यह उस राष्ट्र के पूरे विकास को प्रभावित करता है।
भारतीय महिलाओं ने आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ज्यादातर महिलाएं गृहस्थी होती हैं, लेकिन फिर भी वे आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।
आधुनिकता और शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं की स्थिति में सुधार किया है, जिससे देश की समृद्धि में सुधार आया है।
महिलाएं आज सभी क्षेत्रों में सम्मानित पदों पर हैं, चाहे वह चिकित्सा, सुरक्षा, इंजीनियरिंग, सिविल सेवा, पुलिस, विज्ञान या अन्य क्षेत्र हों। आज की महिलाओं की स्थिति पूर्व की तुलना में बहुत ही अधिक सुधारी है, जिससे देश की आर्थिक मजबूती में वृद्धि हुई है।
भारतीय गृहस्थाः को सबसे कुशल परिवार संचालक माना जाता है। भारत की पिछड़े क्षेत्रों की महिलाएं भी आज खुद को विकास और देश की प्रगति में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, उन्होंने कड़ाई-बुनाई और छोटे उद्योगों को संचालित किया है।
भारतीय महिलाएं अब भी अधिक योगदान कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। उन्हें अपने हक की रक्षा के लिए आवाज बुलंद करनी होगी।
शासन और संविधान महिलाओं के हक की रक्षा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए महिलाओं को खुद को प्रतिरोधी बनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
महिलाओं की समाज में सक्रिय भूमिका निभाने से राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव है। उनकी योगदान से न केवल अर्थ नीति और सुरक्षा में सुधार होती है, बल्कि समाज में भी समानता और सामाजिक न्याय का मानविकी आधार बनता है। इससे राष्ट्र की समृद्धि और विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
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