परोपकार अर्थ से तातपर्य है एक दूसरे के लिए करुणा व इंसानियत की भावना। एक व्यक्ति के सुखमय व सफल जीवन के विकास के लिये इन गुणों का होना अति महत्वपूर्ण है।
परोपकार को सबसे अच्छा गुण समझा गया है क्योंकि एक व्यक्ति को बिना स्वंय का स्वार्थ सोचे एक दूसरे को सहायता करना सिखाता है। परोपकार समाज में प्रेम का भाव उतपन्न होता है और एक दूसरे के प्रति दिल मे भाईचारा आता है।
क्या है परोपकार
वह व्यक्ति जो परोपकार के गुण से परिपूर्ण हो वह लोगों को सम्मान व आदर दे सकता है । एक परोपकारी के द्वारा ही लोगों को प्रेम का। भाव उतपन्न होता है। सहानुभूति, स्नेह, विवेक और करुणा के रूप से ही केवल एक परोपकारी का जन्म हो सकता है।
परोपकार की नींव हमें सदैव स्वंय के घर से करनी चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति अपने परिवार के लिए स्नेह का भाव नहीं रख सकता तो वह व्यक्ति किसी और के प्रति खुद का प्रेम नहीं दिखा कर सकता है। अतः मनुष्य को अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे व नेक राह पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे उनका एक खूबसूरत भविष्य इंतज़ार कर सके।
परोपकार–एक धर्म
एक इंसान के ज़िन्दगी में परोपकार को एक धर्म की तरह महत्व दी गयी है। मनुष्य एक समाज के मुताबिक कार्य करने वाला प्राणी है। कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन का भली- भांति निर्वाह करने के लिए एक दूसरे पर निर्भय रहना ही पड़ता है।
एक मनुष्य की ज़िंदगी ऐसी होती है कि लिए एक दूसरे की सहायता के बग़ैर कोई भी कार्य करना संभव नहीं हो पाता है। लोगों के उनके परोपकरी होने से एकता की भावना जागृत होती है। यह परोपकार ही होता है जिस वजह से मनुष्य के अंदर कोई स्वार्थ नहीं रहता है, और जो मन को एक आंतरिक शांति का सुख मिलता है। एक साफ-सुथरे समाज के विकास में वॄद्धि लाने के लिए एक दूसरे के मन में परोपकार का भाव जागना बहुत ही आवश्यक है।
मनुष्य की महत्वता
एक इंसान का जीवन हम सब दिया जाता है ताकि हम अन्य व्यक्ति की सहायता में हमेशा ततपर रह सकें। मनुष्य के ज़िन्दगी को तभी सार्थक तभी माना गया है जब वे स्वंय के ज्ञान, विवेक, कठिन परिश्रम या ताकत से दूसरों की मदद करें।
हालाँकि यह आवश्यकता नहीं की जो सिर्फ पैसे पैसे में खेल रहा हो या जो काफी धनी हो वही केवल दान देकर पुण्य कमा सकता है। एक आम डैम भी किसी की सहायता अपने बुद्धि व विवेक के दम पर कर सकता है।
इन सब बातों को समय-समय के मुताबिक देखा गया है, की कब किस व्यक्ति की आवश्यकता पड़ जाये। कहने का तात्पर्य, जब कोई ऎसा व्यक्ति सामने हो जो ग़रीब व जरूरत में हो तब हमसे जो भी मुमकिन हो हम उस व्यक्ति के लिए कर सकें। यहां जरूरतमंद कोई भी हो सकता है एक पशु या इंसान भी।
निष्कर्ष
एक व्यक्ति का जीवन तभी महत्वपूर्ण समझा जाता है जब हम सब में एक परोपकार जैसे भाव का धर्म होता है। हम सब को अपने बच्चों को यह बात आरम्भ से ही सिखाना चाहिए फिर जब वे हमें इसको मान्यता देते देखेंगे वे स्वयं भी इसको मान्यता देंगे।