मेरे प्रिय लेखक पर निबंध । Essay on My Favourite Author in Hndi

दोस्तों, हम किसी भी मनुष्य को लेखक या कवि नहीं बना सकते है । हर लेखक के अंदर बचपन से एक अलग ही प्रतिभा देखने को मिलती है । जो आगे चलकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करते है । लेखक अपनी साहित्य से पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाता है ।

लेखक अपने जीवन में कई तरह की रचना, उपन्यास, निबंध, कहानीकार के रूप में जाने जाते है । इसी कड़ी में जो मेरे पसंदीदा लेखक है उनका नाम रामधारी सिंह दिनकर जी है । जिनकी कविता पढ़ने के बाद सभी का मनोबल उँचा होता है ।

हर लेखक के कलम में वह ताकत होती है, जिससे वह बड़े – बड़े ताकत को हिलाने की दमखम रखता है । क्योंकि वह अपने आस – पास व समाज में हो रही सभी गतिविधियों को सभी के सामने लाता है । एक लेखक का कलम समाज में हो रही अन्याय खिलाफ आवाज उठाता है, तो साथ ही वो अपने सूझ-बुझ से लोगों को सही राह व मनोबल भी बढ़ता है ।

मेरे प्रिय लेखक की भूमिका

जिस भारतीय पुनर्जागरण के क्षेत्र में कई कवियों ने अपना योगदान दिया । उनमें  राष्ट्र कवि के रूप में रामधारी सिंह दिनकर का विशिष्ट स्थान है । दिनकर जी ने पारंपरिक विषयों का आधार बनाकर ही काव्य की रचनाएँ की थी ।

जो उस समय वर्तमान की समस्याओं का उजागर किया था । जब हमारा भारत देश गुलामी के दौर से गुजर रहा था तो उस समय कोई भी कवि देश के लिए बिना कुछ किए कैसे मुंह मोड़ सकता था । तभी दिनकर जी ने सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना को जागृति करने के लिए अपना लेखनी को आरम्भ किए ।

नवजागरण की नजरिये से दिनकर जी द्वारा लिखा गया साहित्य बहुत ही बहुमूल्य माना जाता है । दिनकर जी बहुत ही कुशाग्र व कुशल बुद्धि के थे ।

जीवन परिचय

हमारे राष्ट्र प्रिय कवि रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म सितम्बर 23, सन 1908 में सिमरिया गाव, बेगूसराय जिला, बिहार राज्य में हुआ था । दिनकर जी के पिता का नाम रवि सिंह तथा माता जी का नाम मनरुपा देवी था । यह एक गरीब परिवार में जन्मे थे ।

इनका परिवार पूरी तरह से कृषि कार्य पर निर्भर था, जिससे उनका जीविका चलता था । रामधारी सिंह जब 2 वर्ष के हुए तभी उनके पिता जी का स्वर्गवास हो गया । जिसके बाद से इनके परिवार पर मानो दुखो क पहाड़ टूट पड़ा । पिता के देहांत की बाद इनकी माता जी ने जैसे – तैसे करके इनका पालन पोषण किया ।

रामधारी सिंह दिनकर जी बचपन से ही बड़ी कुशल बुद्धि के थे । उन्होंने सन 1928 में मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त कर ली । उसके बाद उन्होंने सन 1932 में पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की ।

पद-भार

दिनकर जी अपने जीवन में जब कार्य भाल संभाला तो उन्होंने सबसे पहले सरकारी नौकरी के तौर पर एक स्कूल में लगे । जहाँ उन्होंने सन 1934 से लेकर 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में रजिस्ट्रार व प्रचार विभाग में उपनिदेशक पदों का कार्य -भाल संभाला ।

उसके बाद दिनकर जी ने सन 1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिंदी विभाग अध्यक्ष रहे । उस समय 1952 में पहली बार देश आजाद होने के बाद राज्यसभा का गठन हुआ तब इन्हें राजसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया ।

उसके बाद इन्होंने निरंतर 12 वर्ष तक राज्यसभा का कार्यभार की शोभा बढ़ाते रहे । दिनकर जी का स्वभाव बहुत सरल व मृदुभाषी था । कभी भी देश की अस्मिता की बात आती थी ये बेबाक तरीके से उसका जबाव देते थे ।

एक बार इनकी कुछ पक्तियों की वजह से देश में हलचल मच गया था । क्योंकि इन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरु पर कटाक्ष किया था । जब की मुख्य बात ये है की राजसभा की सदस्यता दिनकर जी को नेहरु जी के चुनाव पर ही किया गया था।

नेहरु पर किया गया कटाक्ष इस प्रकार था-

देखने में देवता सदृश्य लगते है,
बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है ।
जिस पापी का गुण नहीं गोत्र प्यारा हो,
समझो उसी ने हमें मारा है ।।

जबकि नेहरु जी से दिनकर जी से गहरी मित्रता थी । उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “संस्कृति के चार अध्याय” की भूमिका नेहरु जी द्वारा लिखा गया था । एक बार सदन में नेहरु जी ठोकर खाकर गिरने से पहले ही बचा लिया । उसके बाद इन्होने नेहरु जी के शुक्रिया के बदले बोला की – पंडित जी “जब भी सत्ता लडखडाती है तब उसको हमेशा साहित्यकार ही संभालता है” ।

पुरस्कार

जब इन्होने साहित्यिक की रचना “संस्कृति के चार अध्याय” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । उसी वर्ष भारत सरकार ने दिनकर जी को “पद्म भूषण” की उपाधि से सम्मानित किया गया ।

इनकी सबसे सर्वश्रेष्ठ रचना  “उर्वशी” के लिए ज्ञान पीठ से भी सम्मानित किया गया । सन 1974, अप्रैल 24 को हृदयगति अवरुद्ध हो जाने के कारण इनका आकस्मिक निधन हो गया ।

भारत सरकार द्वारा सन 1999 में इनको स्मृति के याद में डाक टिकट जारी किया ।

रचना-संसार

रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्र कवि के साथ बहुत ही प्रतिभावान थे । दिनकर जी ने हिंदी साहित्य में विविध विधाओं पर अपनी लेखनी को चलाया था । उन्होंने गद्य एवं पद्य को सामान रूप से समाप्त किये । उनकी रचना इस प्रकार है –

रेणुका, हुंकार, रसवंती, द्वन्द्वगीत, कुरुक्षेत्र, मिट्टी की ओर, धूप – छाँह, सामधेनी, बापू, इतिहास के आँसू, धूप और धुआं, रश्मिरथी, नीम के पत्ते, दिल्ली, नील कुसुम, सूरज का ब्याह, चक्रवाल, कवि श्री, सीपी और शंख, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व, मृत्तितिलक, हारे को हरि नाम, जैसे रचनाओ का उल्लेख किया ।

इसके साथ उन्होंने कुछ प्रमुख पुस्तक का भी लेख लिखा है । जो इस प्रकार है –

मिट्टी की ओर, अर्द्धनारीश्वर, रेती के फूल, हमारी सांस्कृतिक एकता, संस्कृति के चार अध्याय, वेणुवन, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता, इत्यादि जैसे प्रमुख पुस्तकों का उल्लेख किया ।

निष्कर्ष

दिनकर जी बचपन से ही बहुत प्रभावशाली पुरुष थे । उनका बचपन जीवन बहुत ही संघर्षों भरा था । फिर उन्होंने अपने काबिलीयत के द्वारा ही राष्ट्र कवि के रूप में आज भी जाने जाते है । दिनकर जी सम्मान में हमारा मन व मस्तिष्क उनके लिए स्मरणीय रहेगा ।

1 thought on “मेरे प्रिय लेखक पर निबंध । Essay on My Favourite Author in Hndi”

  1. Pingback: कवि रामधारी सिंह दिनकर - Article on Poet Ramdhari Singh Dinkar -

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top