भारत-चीन संबंध दुनिया के दो महत्वपूर्ण और प्रभावशाली देशों के बीच संबंध हैं, जो नैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक माध्यम से जुड़े हुए हैं। इन संबंधों का इतिहास विचारशीलता, सहयोग, विरोध और समझौते के रूपों में विकसित हुआ है। भारत और चीन का संबंध विचारशीलता और समझदारी के साथ निर्मित हुआ है, जो कि उनके प्रत्येक पहलू पर प्रभाव डालता है। दोनों देशों की सांस्कृतिक धरोहर, भौगोलिक स्थिति और आर्थिक विकास के कारण, इनके संबंध विशेष महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि, इन संबंधों में कई चुनौतियाँ भी हैं। सीमाबद्ध के मुद्दे, व्यापारिक विवाद और राजनीतिक विभिन्नताएं केवल कुछ मुद्दों में से कुछ हैं। सुखद संबंधों की बजाय, समय-समय पर तनाव भी उत्पन्न होता रहा है।
बौद्ध भिक्षु फाहियान (४०५-४११) और चीनी यात्री हेनसाग (६३५-६४३) ने भारत जाने का सफर किया था। सातवीं सदी में हम्बली और इतिसंग नामक चीनी यात्री भी भारत आए थे। इसके अलावा, कई तिब्बती और चीनी यात्री भी भारत गए थे, जिससे दोनों देशों के धार्मिक और सामाजिक संबंध मजबूत हुए।
भारत-चीन के संबंध
दो पड़ोसी और विश्व में दो उभरती शक्तियाँ हैं जो एक दूसरे के पास स्थित हैं। इन दोनों के बीच एक लम्बी सीमा रेखा है।
इन दो देशों के बीच प्राचीन समय से ही सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। बौद्ध धर्म का प्रचार भारत से चीन में हुआ है। चीनी लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों को चुना था, जैसे कि नालन्दा विश्वविद्यालय और तक्षशिला विश्वविद्यालय, क्योंकि उस समय ये दो विश्वविद्यालय शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र थे। उस समय यूरोप के लोग जंगली हालत में थे।
हालांकि 1946 में चीन में साम्य वादी शासन आया, लेकिन दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध बरकरार रहे। भारत ने चीन के संघर्षों के प्रति विकासशील दृष्टिकोण दिखाया और पंचशील के माध्यम से सहमति भी दिखाई। 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद, भारत ने चीन के साथ आर्थिक संबंध स्थापित किए। इस प्रकार, भारत ने चीन को पहला गैर-समाज वादी देश मान्यता दी।
भारत – चीन के बीच का इतिहास
1954 के जून माह में, चीन, भारत, और म्यानमार ने पंचशील के पांच सिद्धांतों का पालन किया, जो शांति और सहयोग के मामलों में महत्वपूर्ण थे। पंचशील ने चीन और भारत द्वारा दुनिया की शांति और सुरक्षा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान किया, और आज तक यह सिद्धांत दोनों देशों की जनता के दिलों में है।
इन सिद्धांतों में, दोनों देशों ने एक-दूसरे की स्वराज्य और भू-अखण्डता का सम्मान किया, आक्रमण का प्रतिषेध किया, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया, और समानता और साझा लाभ के आधार पर शांति और सह-संबंध बनाए रखने का प्रति ज्ञान किया।
- हालांकि, चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया और उसने भारत की कई भूमि पर कब्जा किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया।
- जनवरी 1980 से, चीन ने थोड़ी राहत का संकेत दिया, जिससे भारत-चीन सम्बंधों में सुधार की आशा उम्मीद की जा सकती है।
- 1998 में, दोनों देशों के बीच फिर से तनाव उत्पन्न हुआ, जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए। इसके बाद चीन ने भारत की उपेक्षा की और उसने पाकिस्तान के साथ मिलकर एन०पी०टी० और सी०टी०बी०टी० पर सहमति दी।
- 1998 के बाद, दोनों देशों के सम्बंध फिर से सुधारे और 2000 में उन्होंने एक समझौता किया जिसके तहत वे ताकत की अविशिष्ट क्षेत्रों में संयम बनाए रखने की प्रतिज्ञा की।
भारत – चीन के बीच विवाद का इतिहास
1998 में, चीन और भारत के बीच फिर से तनाव बढ़ गया। 11 से 13 मई 1998 के बीच, भारत ने पांच परमाणु परीक्षणों की प्रक्रिया को पूरा करके खुद को एक परमाणु शस्त्र धारक देश के रूप में घोषित किया। इस दौरान, भारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने चीन को भारत का सबसे बड़ा शत्रु बताया था, जिससे चीन की मानसिकता में एक अचानक परिवर्तन आया। चीन ने अमेरिका और अन्य देशों के साथ मिलकर एन०पी०टी० और सी०टी०बी०टी० के साथ सहमति दी और भारत को इस पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला।
5 जून 1998 को, चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा परीक्षण बंद करने का प्रस्ताव पास किया, शस्त्र विकास कार्यक्रम बंद किया, और सी०टी०बी०टी० और एन०पी०टी० पर हस्ताक्षर करने का सुझाव दिया। जुलाई 1998 में, एशियान रीजनल फोरम की बैठक में, विदेश मंत्री जसवंत सिंह और चीन के विदेश मंत्री तांग जियाशं के बीच चर्चा हुई और उन्होंने उच्च सरकारी संवाद को जारी रखने का निर्णय लिया।
अक्टूबर 1998 में, चीन ने अटल बिहारी वाजपेयी की चीन के विरुद्ध तिब्बत-कार्ड के रूप में एक मुलाकात की आलोचना की और भारत ने सम्बंधों में मिठास लाने के लिए 1996 में एक मन्त्रालय स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल की बैठक आयोजित की। चीन ने इसे सकारात्मक और प्रगतिशील दृष्टिकोण का नाम दिया।
इस प्रकार, चीन और भारत के बीच संबंधों में समय-समय पर तनाव और सुधार आये हैं, लेकिन ये दोनों देश आपसी सहमति के माध्यम से समस्याओं का समाधान ढूंढते रहते हैं।
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मोदी सरकार में भारत-चीन के संबंध
2014 में, जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तो पूरे देश में उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। लोगों को उम्मीद थी कि उन्हें चीन और पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध बनाने में मदद मिलेगी। मोदी ने शुरुआत में सभी पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए काफी प्रयास किए। उन्होंने चीन के राष्ट्रपति को सितम्बर 2014 में अहमदाबाद में बुलाया।
उनके द्वारा किए गए प्रयासों से लगा कि दोनों देशों के बीच के संबंध में सुधार होगा। उनकी इस यात्रा के दौरान बेहद महत्वपूर्ण मामलों पर हस्ताक्षर किए गए, जैसे कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के नए मार्ग और रेलवे में सहयोग। इसके साथ ही, दोनों देशों ने क्षेत्रीय मुद्दों और चीन के औद्योगिक पार्क से संबंधित समझौतों पर हस्ताक्षर किए। हालांकि इसी दौरान चीन के सैन्य ने जम्मू कश्मीर के चुमार क्षेत्र में घुसकर विवाद को बढ़ावा दिया था। भारत ने इस मुद्दे को उठाया, लेकिन वार्ता में कोई बड़ी समस्या नहीं आई।
2017 के जून में डोकलाम सीमा विवाद के कारण फिर से दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ, और यह तनाव लगभग 73 दिनों तक चला। ध्यान देने योग्य है कि डोकलाम भारत-भूटान और चीन की सीमा पर होने वाले विवाद के संबंध में है।
भारत – चीन के बीच डोकलाम सीमा विवाद
डोकलाम के एक हिस्से में भारतीय सीमा पास है, जहां चीन एक सड़क बनाना चाहता है। भारतीय सेना ने इस सड़क के निर्माण के खिलाफ विरोध किया। भारत की चिंता यह है कि इस सड़क के निर्माण से हमारे पूर्वोत्तर राज्यों को चीन के पास आने वाले “मुर्गी की गरदन” के इलाके का संकेत हो सकता है। चीन ने अपने हिसाब से इसे खुद के इलाके में सड़क बताया और उन्होंने भारतीय सेना पर “अतिक्रमण” का आरोप लगाया।
चीन का कहना था कि भारत को 1962 की युद्ध में हार की याद दिलानी चाहिए। वे भारत को यह भी समझाते थे कि वे पहले भी शक्तिशाली थे और अब भी हैं। उसके बाद भारत ने कहा कि वर्तमान में स्थिति अलग है और चीन को इसका समय समझना चाहिए।
इस विवाद के कारण चीन ने भारत से कैलाश मानसरोवर यात्रियों को मानसरोवर जाने से रोक दिया, लेकिन बाद में उन्होंने भारत के हिमाचल प्रदेश के मार्ग से 56 हिंदू यात्रियों को मानसरोवर जाने की अनुमति दे दी। डोकलाम के मामले में भारत और चीन के बीच तनाव लगभग दो महीने तक बढ़ता रहा, लेकिन आखिरकार विवाद समाप्त हो गया।
भारत – चीन कूटनीतिक/व्यापार सम्बन्ध
चीन और भारत के बीच बहुत सारे पैसे के व्यापार का होता है। 2008 में चीन भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साथी बन गया था। 2014 में चीन ने भारत में 116 बिलियन डॉलर की निवेश की थी, जो बाद में 2017 में 160 बिलियन डॉलर हो गई। 2018-19 में भारत और चीन के बीच व्यापार की मात्रा 88 अरब डॉलर थी। यह बड़ी बात है कि पहली बार भारत ने चीन के साथ व्यापार में घाटा 10 अरब डॉलर से कम करने में सफलता पाई।
वर्तमान में चीन भारत के तीसरे सबसे बड़े निर्यात बाजार के रूप में है। वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा माल आयात करता है और भारत चीन के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक बाजार है। चीन से भारत इलेक्ट्रिक उपकरण, मैकेनिकल सामान, कार्बनिक रसायन आदि खरीदता है। वहीं भारत से चीन को खनिज ईंधन और कपास आदि बेचता है।
भारत में चीनी टेलिकॉम कंपनियाँ 1999 से काम कर रही हैं और उनसे भारत को भी फायदा हुआ है। चीनी मोबाइल्स का बाजार भी भारत में बड़ा है। चीन दिल्ली मेट्रो के निर्माण में भी शामिल है। भारत में चीनी सोलर प्रोडक्ट्स का बाजार भी महत्वपूर्ण है। व्यापार में भारत चीन की मदद से बड़े हिस्से पर निर्भर है, जैसे कि थर्मल पावर के लिए जो उत्पाद चीन से आते हैं।
2018 में भारत ने चीन के सॉफ़्टवेयर बाजार के लाभ उठाने के लिए वहां एक सूचना प्रौद्योगिकी गालियारे की शुरुआत की। आईटी कंपनियों के संगठन ने बताया कि चीन में दूसरे डिजिटल सहयोग पूर्ण सुयोग प्लाजा के साथ घरेलू आईटी कंपनियों की पहुंच बढ़ गई।
निष्कर्ष
भारत और चीन के संबंधों का विषय एक व्यापारिक और राजनीतिक महत्वपूर्ण विषय है। ये दोनों देश विभिन्न दृष्टिकोणों से संबंधित हैं – एक ओर व्यापार और आर्थिक सहयोग, वहीं दूसरी ओर सीमा विवाद और राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में तनाव।
व्यापार के मामले में, चीन और भारत के बीच का व्यापार अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन दोनों देशों के बीच करीब 2014 में एक नया व्यापारिक संदर्भ तय हुआ था, जिसने उनके आर्थिक संबंधों को मजबूत किया। चीन ने भारत में बड़े निवेश किए और व्यापार में बढ़ोतरी हुई। हालांकि, राजनीतिक और सीमा संबंधों में अक्सर तनाव रहता है, जैसे कि डोकलाम विवाद का मामला।
इसके अलावा, भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय और वैशिष्ट्यक मुद्दों पर सहमति प्राप्त करने की कोशिशें भी दिखाई दी है। ये मुद्दे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, वाणिज्य विचारधारा, और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में होते हैं। चीन और भारत के संबंधों में उभरते मुद्दों का संयम और विशेषज्ञता से समाधान करने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष में, भारत और चीन के संबंध एक संयमित, उद्यमी, और सहयोग पूर्ण दिशा में विकसित होने की कोशिश कर रहे हैं। यह दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक महत्वपूर्ण संबंधों के साथ-साथ राजनीतिक मुद्दों को भी संभालने का प्रयास कर रहे हैं। यह आवश्यक है कि दोनों देश सहमति, सूझबूझ, और सामर्थ्य के साथ मिलकर संबंधों को मजबूती दें और उनकी सामर्थ्य शाली भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाएं।
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