बंधुआ मजदूरी पर निबंध । Essay on Bonded Labor in Hindi

essay on bonded labor in hindi, बंधुआ मजदूरी पर निबंधभारत के विभिन्न भागों में आज भी बंधुआ मजदूरी की प्रथा मौजूद है। इसके तहत, कर्जदार या उसके वंशजों को कर्ज चुकाने के लिए साहूकार के परिवार के एक या एक से अधिक सदस्यों के साथ बाजार की दर से मजदूरी अथवा सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी के बिना एक निर्धारित अथवा बिना किसी निर्धारित अवधि तक काम करना पड़ता है।

बंधुआ मजदूरी एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है जो आम तौर पर गरीब और वंचित लोगों को प्रभावित करती है। यह विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित करती है जो अपने आधारिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक श्रमिक मजदूरी करते हैं।

कई बार, बंधुआ मजदूरी का अनुभव उन लोगों के साथ होता है जो व्यापारिक उद्योगों या अन्य संस्थानों के तहत काम करते हैं। उन्हें अपने आधिकारिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है, और वे अक्सर बहुत खराब श्रमिक संकट का सामना करते हैं। यह एक प्रकार का मानव अधिकार उल्लंघन होता है और सामाजिक न्याय और इंसानी दया के खिलाफ है।

बंधुआ मजदूरी की प्रथा असमान सामाजिक ढाँचे से हुई, जिसमें सामंत वादी तथा अर्द्धसामंतवादी परिस्थितियों के लक्षण थे। यह कुछ निश्चित प्रकार की ऋण ग्रस्तता यथा, प्रथागत दायित्व, जबरन मजदूरी, बेगार अथवा ऋण भार का परिणाम है जो लम्बे समय से प्रचलन में है। बंधुआ मजदूर आमतौर पर समाज के आर्थिक रूप से शोषित, लाचार एवं कमजोर वर्ग से होते हैं। वे किसी कर्ज के बदले में साहूकार को सेवा प्रदान करने के लिए सहमत होते हैं। कभी-कभी मामूली रकम चुकाने के लिए कई पीढ़ियाँ गुलामी में काम करती हैं।

बंधुआ मजदूरी की प्रथा मूलभूत मानव अधिकारों का हनन है और यह मजदूर की गरिमा का अपमान है।

भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदम (बंधुआ मजदूर अधिनियम 1976)

भारत सरकार ने बंधुआ मजदूरी की प्रथा को समाप्त करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें से कुछ कदम निम्नलिखित हैं:

  • बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976: यह अधिनियम बंधुआ मजदूरी की प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करता है और बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रावधान करता है।
  • बंधुआ मजदूरों की पहचान और मुक्ति के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम: इस कार्यक्रम के तहत, बंधुआ मजदूरों की पहचान करने और उन्हें मुक्त कराने के लिए विशेष दल गठित किए गए हैं। इन दलों में सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।
  • बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए योजनाएं: सरकार ने बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं के तहत, बंधुआ मजदूरों को आर्थिक सहायता, तकनीकी प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
  • बंधुआ मजदूरी की स्थिति का समाप्ति: इस अधिनियम के तहत, बंधुआ मजदूरी से मुक्ति देने के लिए कड़ी कानूनी कार्रवाई की गई। यह कानूनी कदम बंधुआ मजदूरी को निष्क्रिय करने के लिए बनाए गए थे।
  • गुलामी की प्रतिबंध: इस अधिनियम ने गुलामी या बंधुआ मजदूरी को एक कानूनी दंडनीय अपराध घोषित किया था। इसका मतलब था कि बंधुआ मजदूरी प्रथा लागू करने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था को कड़ी सजा का सामना करना पड़ता था।
  • बंधुआ मजदूरों को सहायता: इस अधिनियम के तहत, बंधुआ मजदूरों को समर्थन और सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई योजनाएं चलाई गईं। उन्हें समाज में पुनर्वास के लिए आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण की सुविधा दी गई।

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क्या है बंधुआ मजदूरी?

बंधुआ मजदूर (Bounded Labour) एक ऐसी प्रथा होती है जिसमें व्यक्ति ऋणदाता से लिए हुए ऋण को चुकाने के लिए श्रम करता है या सेवाएँ प्रदान करता है। इसे ‘अनुबंध श्रमिक’ या ‘बंधक मजदूर’ भी कहा जाता है। अक्सर, इस प्रकार के श्रमिकों को ऋण के भुगतान के रूप में उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार की मजदूरी को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अनवरत रूप से चलती रहने की कुछ बार देखा जाता है। ऐसे श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले कार्यों को ही ‘बंधुआ मजदूरी’ कहा जाता है।

सामान्यतः, इस प्रकार की मजदूरी में व्यक्ति अपने लिए लिये हुए ऋण को चुकाने के लिए श्रम करता है, लेकिन इस प्रकार की प्रथा अक्सर अन्यायपूर्ण होती है। यह शोषणकारी जमींदारों और साहूकारों द्वारा अनैतिक तरीके से उनका लाभ उठाने के लिए प्रयोग की जाती है, जिससे श्रमिकों को उनके मौलिक मानवाधिकारों से वंचित किया जाता है।

भारत में बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था की उत्पत्ति

बंधुआ मजदूरी भारतीय समाज और उसकी विशेष सामाजिक-आर्थिक संस्कृति के कारण हुई है। इसे वर्ण-व्यवस्था की एक उपशाखा के रूप में भी देखा जाता है। समाज में आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर स्थिति में रहने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को गाँवों में जमींदार या साहूकार अक्सर अपने श्रम को केवल वेतन के बिना या बहुत कम वेतन पर बेचने के लिए मजबूर करते हैं।

अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि बंदोबस्त व्यवस्था ने बंधुआ मजदूरी को आधार प्रदान किया। अंग्रेजों ने भू-राजस्व की शोषणकारी व्यवस्था को इस प्रकार अपनाया कि किसान अब स्वयं उसकी खेती करने का किराएदार बन गया। जब उसने निर्धारित समय पर भू-राजस्व नहीं चुकाया, तो उसे बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया।

बंधुआ मजदूरी इसलिए होती है क्योंकि ऐसे लोगों को अक्सर अन्यायपूर्ण संकटों का सामना करना पड़ता है, जो समाज में उन्हें उनके मौलिक मानवाधिकारों से वंचित करते हैं। इसके बारे में समाज को जागरूक होना चाहिए ताकि ऐसी अन्यायपूर्ण प्रथा का खत्म हो सके और समाज में समानता और न्याय का संरक्षण हो सके।

न्यूनतम वेतन अधिनियम – श्रमिकों के शोषण की रोकथाम

  • न्यूनतम वेतन और इनकार की समस्या: श्रमिक अक्सर ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जहां नियोक्ता उन्हें न्यूनतम वेतन से कम पेशकश करते हैं या उन्हें उचित वेतन नहीं देते, जिससे उनकी वेतन विवादित होती है और उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
  • सरकारी हस्तक्षेप: सरकार ने श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए विभिन्न श्रम कानून बनाए हैं। एक महत्वपूर्ण क़ानून है “न्यूनतम वेतन अधिनियम,” जो सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से कम नहीं दिया जाता।
  • शोषण से बचाव: न्यूनतम वेतन अधिनियम अनुसार, श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से कम नहीं दिया जा सकता, जो कानूनात्मक और अनैतिक माना जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों को कम वेतन नहीं मिलता।
  • न्यूनतम वेतन के नियम का समय-समय पर संशोधन: सरकार न्यूनतम वेतन को नियमित अंतराल पर संशोधित करती है ताकि अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों का समावेश कर सके और विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को योग्य अनुदान दे सके, जैसे कि फैक्ट्री के श्रमिक, निर्माण कार्य में लगे श्रमिक, कृषि मजदूर और घरेलू श्रमिक आदि।

बंधुआ मजदूरी  को दूर करने में चुनौतियाँ

  • सरकारी सर्वेक्षण की कमी: 1978 के बाद से देशव्यापी सरकारी सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जिससे बंधुआ मजदूरी की समस्या का ठीक से माप नहीं सका जा सकता।
  • आँकड़ों की अनुपलब्धता: बंधुआ श्रम पर सरकारी आँकड़े बचाव और पुनर्वास संख्या पर आधारित हैं, जो वास्तविकता को ठीक से दर्शाने में असमर्थ हैं।
  • मामलों की अंडर रिपोर्टिंग: 2017 के आँकड़ों से पता चलता है कि बहुत सारे मामले पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं किए गए हैं। 2014 से 2016 के बीच सिर्फ 290 पुलिस केस दर्ज किए गए, जिनमें केवल 1338 व्यक्तियों को पीड़ित माना गया।
  • कानूनों का लचर कार्यान्वयन: लचर कानून प्रवर्तन के कारण बंधुआ मजदूरी एक समस्या बनी है। श्रम संगठनों की सतर्कता और पुनर्वास की समितियों का कार्य कानूनों के प्रभावी लागू होने में नहीं रहता।
  • श्रमिकों की जागरूकता की कमी: बंधुआ मजदूरों को श्रम कानून के बारे में जानकारी नहीं होती है, और वे प्रशासन को सूचित करते हैं जब उनका शोषण होता है।
  • पुनर्वास की समस्या: बाल श्रमिकों सहित बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास की व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। इनमें सुदृढ़ीकरण सेवाएँ, मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, संगठनात्मक जवाबदेही और सरकारी संगठनों के साथ संवाद की कमी शामिल हैं।

निष्कर्ष

कई कारणों से, भारत में बंधुआ मजदूरी और उसके प्रभावों को समझना और समाप्त करना मुश्किल है। व्यापक सरकारी सर्वेक्षण की कमी, आँकड़ों की अनुपलब्धता, आदिकांतन के मामलों की अंडर-रिपोर्टिंग, और कानूनों के लचर कार्यान्वयन ने इस समस्या को बढ़ावा दिया है। श्रमिकों की जागरूकता की कमी और पुनर्वास की समस्या भी इसे गंभीर चुनौती बनाती हैं। इस समस्या को समाधान के लिए सरकार, सामाजिक संगठन, और समाज के सभी क्षेत्रों को मिलकर काम करना होगा।

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