ऐसा कहा जाता है की संत कबीर दास जी का जन्म काशी के शहर के लहर तारा नामक जगह पर हुआ था । संत कबीर दास भारत देश के एक महान इतिहासकार कवि हुआ करते थे। जिनकी सारी रचनाये सभी अद्भुत थी ।
संत कबीर दास जी एक विधवा ब्राह्मण के घर में जन्म लिए थे, जिन्हें लोक लज्जा की वजह से ब्राह्मण दम्पति ने उन्हें तालाब के किनारे छोड़ दिए । जिनका पालन – पोषण एक नीरू जुलाहे नामक मुस्लिम परिवार द्वारा किया गया था ।
कहा जाता है की कबीर दास की बचपन की स्थितियाँ काफी ख़राब थी, जिसके वजह से वो अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाए । कबीर दास जी ने अपने शिक्षा का ज्ञान अपने गुरु स्वामी रामानंद से प्राप्त किया।
संत कबीर दास जी एक महान कवि के साथ समाज सेवक भी थे । जो कई तरह के असमाजिक तत्वों की लड़ाई में अपना सहयोग दिए । वो हर उस चीज का विरोध करते थे, जो छुआछूत, पाखंड, अत्याचार जैसे विरोध करते हुए कबीर जी अपने को आगे बढाया ।
कबीर दास एक ही चीज हमेशा कहते है की हम सभी को ईश्वर ने बनाया है हम सभी उसी के बन्दे है किसका कोई भी धर्म अलग नहीं होता है, ईश्वर एक ही है जो सभी को बनाया है, तो फिर ये जाति धर्म, छुआछूत जैसे अंधविश्वास नहीं करना चाहिए ।
कबीर दास जी का जीवनी परिचय
संत कबीर दास जी एक महान कवि थे । जिन्होंने कई तरह की रचना कई भाषाओं में किये । कबीर दास जी के दोहे व भजन के रूप में आज भी हम लोगों के बीच बजाये जाते है ।
कबीर दास जी बचपन प्रारम्भिक शिक्षा नहीं ली फिर भी वो बहुत बड़े ज्ञानी थे । वे अपनी सारी शिक्षा अपने स्वामी गुरु रामानंद जी प्राप्त किये । कहा जाता है की उनको कई भाषाओं का ज्ञान था जिनमें से हिंदी, अवध, ब्रज, भोजपुरी इत्यादि ।
इनकी सभी रचनाओं में सभी भाषा का मिश्रण देखने को मिलता है । उन्होंने ग्रन्थ को तीन भाग में रचना के रूप में व्यक्त किया था जो साखी, सबद, रमैनी, सुख निधन, होली आगम इत्यादि की रचना की ।
कहा जाता है की कबीर दास जी के शिष्य धर्मदास ने उनके बोल को संग्रहित करके बीजक नामक ग्रन्थ रचना की । जिसके तीन भाग है पहला साखी, दूसरा सबद और तीसरा रमैनी रखा गया है ।
कबीर दास जी का गुरुदेव रामानंद से मुलाकात
ऐसा माना जाता है की जब कबीर दास एक समय सीढ़ियों पर सो रहे थे, तभी स्वामी रामानंद जी उसी समय उधर से गुजर रहे थे । तभी अचानक गलती से उनका पैर कबीर दास जी पर पड़ गया ।
ऐसा होने के बाद रामानंद जी को अपने गलती का एहसास हुआ तो फिर उनके मुंह से राम – राम कहने लगे । और तभी से वो कबीर दास जी को अपना शिष्य बना लिया। उसके बाद कबीर दास जी अपने गुरु स्वामी रामानंद जी सबसे चहेते शिष्य बन गये ।
कबीर दास जी जो भी अपने गुरु स्वामी रामानंद जी से सीखते थे । उसको अपने जीवन में भी अम्ल करते थे । संत कबीर दास जी हमेशा से समाज के अंदर रहे बहुत सी कुरीतियों का विरोध किया करते थे । जो समाज के लिए हानिकारक होता था, जैसे की लोगो के अंदर ज्यादा अंधविश्वास, धर्म के नाम पर लड़ाई, झूठ बोलना, पाप करना, जीव हत्या इत्यादि सब करते थे ।
उन्होंने अपने द्वारा सभी धर्मो के इस तरह के नासमझ विधान का विरोध किया, जो गलत कार्य किया करते थे । वो सबको बताते थे की सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं होता । कोई भी सत्यता को कभी झुठलाया नहीं जा सकता है ।
तभी तो संत कबीर दास जी कहते है की,
साँच बराबरी तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है, ताकै हृदय आप॥
इसका मतलब ये है की सच्चाई के बराबर कोई तपस्या नहीं है और झूठ (मिथ्या आचरण रखने वाले) के बराबर कोई पाप कर्म नहीं है । अर्थात जिसके हृदय में सच्चाई बसती है बस उसी के हृदय में भगवान का निवास होता है ।
निष्कर्ष
कहा जाता है की संत कबीर जी महान कवि थे क्योंकि उन्हें सबसे प्यार था । और सभी लोग के प्रिय थे । क्योंकि हमेशा कहा करते थे की ना काहू की दोस्ती, ना काहू से बैर । इस दोहे को लोग आज भी अपने जीवन अपनाते है ।
कबीर दास जी के रचना को देखा जाये तो वो हमेशा से एक – दुसरे को जोड़ने का ही ज्ञान मिलता है । वो हमेशा से हर समय सकारात्मक सोच ही रखते थे । जिससे लोगो को आगे बढ़ने में बहुत मदद मिलता है ।