भारत-अमेरिका या भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच आपसी संबंधों को ‘भारत-संयुक्त राज्य सम्बन्ध’ कहा जाता है। इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंध की बात हो रही है। चाहे भारत ने पहले निरपेक्ष आंदोलन के साथ गठबंधन किया था, लेकिन शीत युद्ध के दौरान उसके संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध सोवियत संघ से भी बेहतर थे।
इस सदी में, भारत ने विदेश नीति में बदलाव किया और उसने विश्व में अपने अधिकारों की रक्षा और राष्ट्रीय हितों की देखभाल की मांग की। राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा के समय में, अमेरिका ने भारत के राष्ट्रीय हितों का समर्थन किया और उसके साथ मिलकर काम किया। व्यापार और निवेश में भी उनका सहयोग बढ़ा, और विश्व सुरक्षा के मामलों में भी दोनों देशों ने मिलकर कदम उठाए।
इसके अलावा, दोनों देशों के बीच विभिन्न मंचों पर भी सहयोग बढ़ा, जैसे कि विश्व बैंक, आईएमएफ, एपेक आदि। दोनों देशों ने बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं और परमाणु आपूर्ति कर्ता समूह में भी मिलकर काम किया, और तकनीकी सहयोग से आपसी विकास की दिशा में कदम उठाए। इसके माध्यम से भारत और अमेरिका द्वारा साझा किए गए कई कदम ने उन्हें आपसी सहयोग में मजबूती दिलाई और दोनों देशों के बीच गति और प्रगति के मार्ग को बेहतर बनाने में मदद की।
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भारत-अमेरिका संबंध का इतिहास
भारत-अमेरिका संबंध का इतिहास एक रिच और विविध यात्रा है जो दो विभिन्न संस्कृतियों, समाजों और राजनीतिक प्रणालियों के बीच उत्तराधिकारिता और सहयोग की दिशा में बदलती रही है। इन संबंधों की नींव उत्तर-पश्चिमी भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक संवाद से पैदा हुई थीं, जिनमें ब्रिटिश शासन के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय, भारत और अमेरिका के संबंध नए दरवाजे खोलने में मददगार रहे, जिनसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और अमेरिकी मानवाधिकारों के आंदोलन में एक सामर्थ्य पूर्ण योगदान हुआ।
आज, भारत-अमेरिका संबंध नवा चार और विकास के दिशानिर्देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो व्यापार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राजनीति, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्रों में गहराई से प्रभावित हैं।
अमेरिकी क्रांति और ईस्ट इंडिया कंपनी
सन 1778 में, जब फ्रांस ने ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, तो भारत में ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशों के बीच लड़ाई हुई। यह उनके द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरुआत थी, जिसका पहला प्रतीक था। मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने फ्रांस के साथ जुड़कर ब्रिटिश के खिलाफ उत्तरदायित्व लिया। 1780 से 1783 तक, फ्रांको-मैसूरी सेना ने पश्चिमी और दक्षिणी भारत में कई जगहों पर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किए, जैसे माहे और मैंगलोर में।
29 जून को, दोनों पक्षों के कमजोर होने के कारण, ब्रिटिश ने एचएमएस मेडिया को समर्पण के लिए भेजा, जिसमें एक पत्र में लिखा था कि अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध समाप्त हो रहा है। कुड्डालोर की घेराबंदी के कुछ महीने पहले, 30 नवंबर 1782 को पेरिस की संधि का आयोजन किया गया था, लेकिन भारत से संचार में देरी के कारण समाचार नहीं पहुंच सका। आखिरकार, 3 सितंबर 1783 को पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर किए गए और कुछ महीने बाद अमेरिकी कांग्रेस ने इसे मान्यता दी।
इस संधि के तहत, ब्रिटेन ने पांडिचेरी को फ्रांस को वापस कर दिया और कुड्डालोर को अंग्रेजों को वापस कर दिया। कहा जाता है कि 1775 के ग्रैंड यूनियन झंडे ने एक डिज़ाइन को प्रेरित किया, जिससे अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्तमान झंडे की डिज़ाइन बनी। बाल्टीमोर के युद्ध में मैसूर के रॉकेटों का भी इस्तेमाल हुआ था और उनका उल्लेख अमेरिका के राष्ट्र गान “द स्टार-स्पैंगल्ड बैनर” में है, और उनका उल्लेख वायु में फटने वाले बमों में भी है।
ब्रिटिश राज के तहत (1858-1947)
स्वामी विवेकानन्द, वीरचंद गांधी, हेविवितर्ने धर्मपाल और निकोला टेस्ला जैसे व्यक्तियों के साथ, भारत और ब्रिटिश राज तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के समय में संबंध थे। सन 1893 में, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद में योग और वेदांत को प्रमोट किया। मार्क ट्वेन ने 1896 में भारत का दौरा किया और अपने यात्रा वृतांत में उसने भारत के बारे में विचार किए। उनका निष्कर्ष था कि भारत ही वो देश है जिसके बारे में उन्होंने सपना देखा था या जिसे वह फिर से देखना चाहते थे।
भारत से जुड़े संबंधों में, अमेरिकी लोगों ने अंग्रेजी लेखक रुडयार्ड किपलिंग के लिखित कामों से भी कुछ सिखा। 1950 के दशक में, अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों का महत्व बताया। 1930 और 1940 के दशकों में, रूजवेल्ट ने ब्रिटेन के साथ सहयोगी बनने के बावजूद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया। 1965 से पहले, बीसवीं सदी की शुरुआत में, कैलिफोर्निया जाने वाले सिख किसानों का पहला महत्वपूर्ण आप्रवासन भारत से हुआ था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान
1945 में कोलकाता (पहले कलकत्ता) के एक बाजार में अमेरिकी जीआई देखा गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, भारत ने जापान के खिलाफ युद्ध में अमेरिकी सहायता की, जिसके लिए अमेरिकी चीन, बर्मा, इंडिया थिएटर (सीबीआई) का महत्वपूर्ण योगदान बना। उस समय तक हजारों अमेरिकी सैनिक भारत में पहुंचे, और 1945 में उन्होंने यहाँ से जाना। अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट के नेतृत्व में अमेरिका ने भारत के स्वतंत्रता के लिए आवश्यकता को महत्व दिया, और उन्होंने चर्चिल के साथ मिलकर यह प्रस्ताव खारिज करवाया कि भारत को स्वतंत्रता दी जाए।
रूजवेल्ट ने लम्बे समय तक भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की स्थिति में, अमेरिका यूरोपीय उपनिवेशों के खिलाफ था और युद्ध के परिणाम के बाद के युग में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार था। रूजवेल्ट के नेतृत्व में, अमेरिका ने भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन दिया।
युद्ध के दौरान, पश्चिम बंगाल राज्य में पानागढ़ हवाई अड्डा 1942 से 1945 तक अमेरिकी सैन्य और वायुसेना की आपूर्ति का महत्वपूर्ण आधार बन गया। यहाँ से यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी एयर फोर्स और दसवीं वायु सेना के लिए B-24 लिबरेटर बॉम्बरों की मरम्मत और रखरखाव की गई थी ।
भारत–पाक युद्ध के दौरान
पहले समय में, भारत और अमेरिका के बीच संबंध बहुत अच्छे नहीं थे, जैसे कि होने चाहिए थे। इसके पीछे कई कारण थे। भारत ने सोवियत रूस की ओर ज्यादा ध्यान दिया था, इसके कारण अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा दिया। यह न केवल संबंधों को बढ़ाने में मदद की, बल्कि पाकिस्तान की भारत के खिलाफ गतिविधियों में भी उसकी सहायता की।
इसके पीछे अमेरिका का उद्देश्य था भारत-सोवियत रूस के मित्रता संधि को कमजोर करना और अफगानिस्तान पर रूस के कब्जे के खिलाफ मुजाहिदीनों का सहायता करना। 1971 में भारत और सोवियत रूस के बीच दोस्ती की समझौता ने अमेरिका को पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया और उसने उसे बड़े पैमाने पर सैन्य सहायता प्रदान की। इसके कारण भारत और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया और वे एक-दूसरे को संदेहपूर्ण नजरिये से देखने लगे।
1971 में भारत-पाक युद्ध के समय, अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की। इसके बाद, 1974 में भारत ने पहले परमाणु परीक्षण किया और अमेरिका ने इसे खुले तौर पर नकारा और अनेक प्रतिबंध लगाए।
1998 में, अमेरिका ने भारत के तारापुर रिएक्टर के ईंधन की आपूर्ति बंद कर दी। यह समस्याएँ भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न करने में मदद करती रही। लेकिन 1991 में, सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भारत और अमेरिका के संबंध में सुधार दिखाई देने लगा।
भारत-अमेरिका संबंधों का वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान में, भारत-अमेरिका संबंध अत्यधिक महत्वपूर्णता प्राप्त कर चुके हैं। व्यापार, रक्षा सहयोग, और विश्व स्तर पर राजनीतिक सहमति के क्षेत्र में दोनों देश साथी हो चुके हैं। व्यापार में वृद्धि, सामर्थ्य विकास और सामर्थ्यवर्धन के प्रयासों के साथ, यह संबंध और भी मजबूत हो रहे हैं।
आर्थिक प्रगति
- 2000 के बाद से, भारत और अमेरिका के बीच दोनों देशों के बीच व्यापार में दस गुना वृद्धि हुई है।
- 2022 में, इस व्यापार की मात्रा 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई है और 2021 में भारत अमेरिका के साथ व्यापार के दृष्टि से 9वां सबसे बड़ा भागीदार बन गया है।
- वस्तुओं और सेवाओं के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 2021 में 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है।
- अमेरिका भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है और इससे भारत को आवश्यक निर्यात बाजार मिलता है।
- यह दुनिया के कुछ देशों में से एक है जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष की स्थिति बनी हुई है।
- 2021-22 में भारत ने अमेरिका के साथ 32.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार अधिशेष किया है।
राजनीतिक विचारधारा में समानता
- भारत और अमेरिका दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकास, शांति, और समृद्धि की दिशा में समान विचार रखते हैं।
- भारत ने अमेरिका के नेतृत्व वाले ‘समृद्धि के लिए हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा’ (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF) का समर्थन भी किया है।
- हालांकि कुछ मुद्दों पर दोनों देशों की प्रतिक्रियाएँ भी आई है, जैसे रूस-यूक्रेन संकट, अफगानिस्तान के मुद्दे, और ईरान के मुद्दे पर।
रक्षा सहयोग
- भारत ने पिछले दो दशकों में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के अमेरिकी हथियार खरीदे हैं, जो उसकी सशस्त्र सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
- यह सहयोग भारत को रूस पर निर्भरता कम करने में मदद करता है, जो स्वयं भी अमेरिका के रक्षण हित में है।
- भारत और अमेरिका की सशस्त्र सेनाएं विभिन्न सैन्य अभ्यासों में शामिल होती हैं जैसे ‘युद्ध अभ्यास’, ‘वज्र प्रहार’, ‘मालाबार’ आदि।
- दोनों देश मध्य-पूर्व एशिया में गठित एक नया समूह I2U2 (India, Israel, UAE and the US) के हिस्से हैं, जिसे ‘न्यू क्वाड’ भी कहा जाता है।
भारत-अमेरिका संबंध निष्कर्ष
इस प्रकार, वर्तमान समय में भारत-अमेरिका संबंध एक उच्च महत्वपूर्णता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा सहयोग और वैश्विक राजनीतिक सहमति के क्षेत्र में गहरा सहयोग हो रहा है। व्यापार में दर्ज की जा रही तेजी, उद्यमिता की बढ़त, और संयम पूर्ण दृष्टिकोण इन संबंधों को मजबूती देने में सहायक हो रहे हैं।