सूरदास पर निबंध। Biography, Surdas Essay in Hindi

surdas essay in hindi, कविवर सूरदास पर निबंधसूरदास पर निबंध, सूरदास एक महान भक्ति कवि थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम को बहुत प्यार से व्यक्त किया। उनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य में विशेष हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में भक्ति और प्रेम के भावनाओं को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया। उनके गीतों और दोहों में भगवान की लीलाएँ और भक्ति के भाव बहुत सुंदर रूप से दिखते हैं। लोग उन्हें भगवान के प्यारे भक्त और भक्ति के बड़े ज्ञानी मानते हैं।

‘सूरसागर’ सूरदास जी की सर्वश्रेष्ठ और महानतम रचना है। इस ग्रंथ में विभिन्न प्रसंगों के पद संग्रहित हैं, जो भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को विस्तार से वर्णित करते हैं।

कवि ने ‘सूरसागर’ में भगवान कृष्ण की बालकृष्ण लीला, उनकी रूप-माधुरी, प्रेम, विरह और भ्रमर गीत के प्रसंगों को विस्तारपूर्वक वर्णित किया है।

कुल पदों की संख्या लगभग सवा लाख बताई जाती है, परन्तु अभी तक प्राप्त पदों की संख्या लगभग दस हजार है। सूरदास ने अपने पदों में कृष्ण-जन्म की बधाईयों से अपने पदों को प्रारम्भ कर उनके कौमार्यावस्था तक का वर्णन किया है।

‘सूरसागर’ में सूरदास जी ने दर्शाया है कि बालकृष्ण अपने हाथ में माता यशोदा द्वारा दिए गए नवनीत (मक्खन) को लिए हुए अपने सौन्दर्य से विशेष आकर्षण प्रकट कर रहे हैं।

सूरदास जी का जीवन परिचय

कविवर सूरदास का जन्म और परिवार: कविवर सूरदास का वास्तविक नाम सूरदास रामनाथ सारस्वत था। उनका जन्म सन् 1478 से 1483 के बीच हुआ था। वे हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के सीही गांव में जन्मे थे। उनके माता-पिता के नाम जमुनादास देवी और रामदास सारस्वत थे। कविवर सूरदास हिंदू धर्म के प्रमाणिक अनुयायी थे और उनका विशेष श्रद्धा भगवान श्रीकृष्ण में था।

सूरदास के साहित्यिक योगदान: कविवर सूरदास 16वीं शताब्दी के एक महान गायक और कवि रहे हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में अलंकारों का भी बहुतायत उपयोग किया। सूरदास एक प्रमुख कृष्ण भक्त थे और उन्होंने मध्य भारत के भक्ति आंदोलन में अपना योगदान दिया।

कविवर सूरदास की प्रमुख रचनाएं: कविवर सूरदास की सबसे लोकप्रिय रचना ‘सूरसागर’ उनके व्यक्तित्व को बहुत अधिक चमकाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में भक्ति और श्रृंगार रस की विशेष भावनाओं का उत्कृष्ट वर्णन किया।

सूरदास का अंतिम समय और योगदान: कई इतिहासकारों का मानना है कि महाकवि सूरदास की मृत्यु 1579 से 1584 ईस्वी के बीच हुई थी। उनकी मृत्यु के समय वह उत्तर प्रदेश राज्य के पारसोली गांव में रह रहे थे। वे 101 वर्षीय थे और अपने विशेष योगदान से हिंदी साहित्य को अमर बनाया। उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में हिंदी साहित्य को अनगिनत मूल्यवान योगदान दिया जिसे हम कभी भी भुला नहीं सकते।

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सूरदास जी की प्रसिद्ध रचनाएँ

सूरदास जी की प्रसिद्ध रचनाएँ

सूरसागर

यह सूरदास जी की सर्वश्रेष्ठ रचना है, जिसमें कृष्ण लीला के विभिन्न प्रसंगों के पद संग्रहित हैं।

इस ग्रन्थ में उन्होंने कृष्ण की बाल-लीला, रूप-माधुरी, प्रेम, विरह और भ्रमर गीत को विस्तारपूर्वक वर्णित किया है।

कुल पदों की संख्या करीब सवा लाख बताई जाती है।

उदाहरण के रूप में:

“सोभित कर नवनीत लिए।
घुटखुनि चलत रेनु तन मंडित दधि मुख लेप किए।”

“मैया कबहि वढेगी चोटी।
किती बार मोहि दूध पिवत भई यह अजहुँ छोटी।
जो कहति बल की बेनी ज्यो हवै लॉबी मोटी॥”

“कृष्ण का अद्वितीय सौन्दर्य और अपनापन”

“बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहाँ रहति काकी है तू बेटी, देखी नहीं कबहूँ ब्रज खोरी।
काहे को हम ब्रज तन आवत, खेलति रहति आपनि पौरी।
सुनति रहति नंद के ढोटा, कुरत फिरत माखन-दधि चोरी।
तुम्हरो कहाँ चोरि हम लैहे, खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भूरइ राधिका गोरी॥”

सूरसारावली

यह एक छन्द संग्रह है और इसमें होली के खेल के रूपक में सृष्टि रचना का वर्णन है।

साहित्य लहरी

यह सूरदास के दृष्टि कूट पदों की रचना है, जिसमें राधा-कृष्ण के प्रेम, अनुराग, नायिका-भेद, अलंकार तथा रस का विवेचन है।

सूरदास जी की साहित्यिक विशेषताएँ

  • उच्च कोटि के भक्त कवि: सूरदास जी उच्च भक्ति को साधना मात्र नहीं मानते थे, बल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित होने के कारण उन्होंने पुष्टिमार्गीय भक्ति को ग्रहण किया था।
  • वात्सल्य तथा माधुर्य भाव की भक्ति: उनकी मुख्य भक्ति वात्सल्य और माधुर्य भाव की थी। उनके काव्य में विनय और दास्यभाव के अत्यंत सुन्दर उदाहरण हैं।
  • विनय और दीनता: सूरदास जी अपनी रचनाओं में विनय और दीनता का अद्वितीय रूप से वर्णन करते हैं। उन्होंने अपने इष्टदेव कृष्ण की महत्ता को महसूस कराया।
  • सृष्टि रचना का वर्णन: सूरदास जी ने होली के खेल के रूपक में सृष्टि रचना का वर्णन किया है।
  • उदाहरण के रूप में काव्य: उनके काव्य में “सूर की गोपिकाएँ” उनकी माधुर्य भक्ति का आदर्श स्वरूप हैं।
  • विवेकपूर्ण उपमेयता: सूरदास जी ने अपने काव्य में विवेकपूर्ण उपमेयता का वर्णन किया है जैसे “अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल’ पद में भक्त सूरदास नंदलाल से विनय करते हैं-“सूरदास की सवै अविधा दूरि करौ नन्दलाल।“
  • सूरदास की लघुता और दीनता: उनकी लघुता और दीनता भावना उनके विनय पदों का मुख्य सार है।
  • क्रीडावर्णन: उन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण के खेलों का वर्णन किया है, जो सामान्य बालकों की तरह उत्साहित और उल्लासित करता है।

कला पक्षीय विशेषताएँ

सूरदास जी के काव्य का कला पक्ष उनकी रचनाओं को अत्यधिक विशेष बनाता है। यहाँ उनकी काव्यिक विशेषताएँ विस्तार से दी जा रही हैं:

  • भावपक्ष और कलापक्ष: सूरदास जी के काव्य में भावपक्ष के साथ-साथ कलापक्ष का विशेष ध्यान रहता है। उन्होंने ब्रजभाषा को काव्यपयोगी भाषा बनाकर माधुर्य संचार का अत्यधिक श्रेष्ठ उपयोग किया है।
  • भाषा का विविधता: सूरदास जी के काव्य में फारसी, उर्दू और संस्कृत के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो उनके काव्य को और भी रंगीन और विविध बनाता है।
  • छन्दों का प्रयोग: उन्होंने अपने काव्य के वर्णनात्मक भाग में विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया है, जैसे चौपाई, चौबोला, दोहा रोला, रूपकाव्य, सोरण, सबैया आदि।
  • अलंकारों का उपयोग: सूरदास जी ने श्लेष, वक्रोक्ति, यमक आदि अलंकारों का रमणीय प्रयोग किया है, जो उनकी रचनाओं को विशेष बनाता है।
  • शैली और विशेषता: उनके बाल-लीला और गोपी-प्रेम के प्रसंगों में शैली सरस, प्रवाहपूर्ण और माधुर्यपूर्ण है। जिससे पाठक विशेष आकर्षित होते हैं।
  • दृष्टकूट पदों की विशेषता: उनके दृष्टकूट पदों में शैली अत्यन्त अस्पष्ट और कठिन है, जो रसिक श्रोताओं के लिए एक नया अनुभव प्रदान करता है।

सूरदास जी के काव्य का यह कला पक्ष उनके काव्य को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण और अद्वितीय बनाता है।

निष्कर्ष

सूरदास जी के रचनाओं का आध्यात्मिक और साहित्यिक महत्व अत्यधिक है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के भक्त के रूप में अपना जीवन समर्पित किया और भक्ति के माध्यम से उनके भगवान के साथ प्रेम और साक्षात्कार की अद्वितीय अनुभूति को साझा किया। उनकी रचनाएँ भक्ति और साधना के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में मानी जाती हैं। वे ब्रजभाषा के कवि रहे हैं और उनकी रचनाएँ आज भी भक्तों को भगवान के प्रति निष्ठा और प्रेम की उत्कृष्ट उपदेश देती हैं। उनका काव्य और उनकी भक्ति वास्तविक आध्यात्मिक अनुभूतियों का माध्यम बनते हैं जो सांसारिक जीवन में आध्यात्मिक साक्षात्कार की ओर प्रेरित करते हैं।

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