मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध

दोस्तों, आजकल हर मनुष्य का जीवन विभिन्न प्रकार के परिस्थितियों से भरा हुआ है । इसमें कई तरह के सुख – दुःख, आशा-निराशा, विजय-पराजय इत्यादि सब इसी में समाहित होते है । लेकिन देखा जाये तो हर मनुष्य के वास्तविक रूप उसके हार व जीत पर आधारित होता है।

लोगों के मन का योग ही उनके हार व पराजय की संभावना व्यक्त करता है । क्योंकि अगर हम अपने मन में ठान ले की इस चीज पर जीत हासिल करना ही है, तो निश्चित ही कर सकते है । अन्यथा हम अपने मन के द्वारा पहले ही हार मान लेते है, तो उसका हार पहले ही तय हो जाता है।

ये सारी प्रक्रिया मनुष्य के मस्तिष्क के द्वारा उसके संचालन पर निर्भर होता है । क्योंकि कभी – कभी मेरा मस्तिष्क किसी कार्य को गलत बताता है, तो मन उनको सही ठहराता है । इसके वजह से लोग मस्तिष्क व मन के असमंजस में फँसकर अक्सर अपने मन का ही करते है।

मनुष्य के जीवन में मन की प्रक्रिया

सभी मनुष्य के जीवन अलग – अलग तरह का प्रक्रिया का संचालन होता है । जिसके वजह जो मनुष्य मन ही मन ये ठान लेता है की उसको ये कार्य करना ही है तो वो निश्चित ही उस कार्य में सफल होता है । फिर चाहे कार्य कठिन हो या आसान मनुष्य उसको करके ही मानता है।

मनुष्य का कार्य लगभग उसके मस्तिष्क पर निर्भर रहता है । क्योंकि जो उसका मन सोचता है उस ओर ही उसका मस्तिष्क कार्य करने लगता है । व्यक्ति का विचार जो भी धारण करता है उसका शरीर भी उसी के अनुरूप ढल जाता है।

सभी मनुष्य का मन मस्तिष्क निराशा व आशावादी भावनाओं से घिरा हुआ रहता है । यदि मनुष्य निराशा से घिरा हुआ रहता है तो उसका शरीर उसके अनुरूप शिथिल व समस्त चैतन्यता में विलीन हो जाता है।

यही अगर हम आशावादी होते है तो हमारे मन में ये जिज्ञासा होती है की हम अपने भविष्य में कुछ न कुछ करें । आशावादी लोग हमेशा सकारात्मक विचारो के अनुरूप अपने प्रगति पर आगे बढ़ाते जाते है।

हमें अपने चारों तरफ ऐसे अनेक तरह के उदाहरण देखने को मिलता है । की कई व्यक्ति अपने मन को सकारात्मक रखकर सफलता को प्राप्त करते है । वही असफल व्यक्ति का मुख्य कारण ये होता है, की वो अपने मन को कोई कार्य करने से पहले ही हर मान लेता है ।  क्योंकि वह किसी चीज को पाने के लिए भरपूर प्रयास नहीं करता है।

संघर्षशील व्यक्ति

एक संघर्षशील व्यक्ति का उसका मन कर्म ही प्रधान होता है । संघर्षशील व्यक्ति हमेशा कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी निरंतर संघर्ष करता रहता है । और उसे अंततः: सफलता प्राप्त हो जाता है ।

संघर्षशील मनुष्य अपने मनोबल व दृढ़ इच्छा शक्ति के द्वारा असम्भव कार्य को भी संभव कर देता है । वो अपने मन को अपने मानसिक व शारीरिक क्षमताओं द्वारा काबू में कर लेता है । इसलिए उसके मन में हमेशा सकारात्मक भाव ही पैदा होता है।

एक व्यक्ति सफल तब ही होता है । जब वो पूरी लगन व मेहनत के द्वारा उस कार्य को अपने मन से पूर्ण करता है । आज हमें मनुष्य के ताकत के द्वारा ही आकाश की ऊँचाई तथा जमीन की गहराई को नाप लिया है । ये सब वो अपने मन की शक्ति के द्वारा ही प्राप्त किया है।

मन के सम्बन्ध में विचार

गुरुनानक जी द्वारा मन के बारे में कहा गया है की जो मन को जीत लिया वो पूरे जगत को जीत लिया । अर्थात हमें सबसे पहले अपने मन को जितने का महत्व देना चाहिए क्योंकि हमारा मन किसी के वश में नहीं होता है । मन हमेशा से चंचल तथा अस्थिर होता है । उस पर खुद के द्वारा काबू पाना एक चुनौती पूर्ण होता है।

अगर व्यक्ति अपने मन पर जीत हासिल कर लेता है । तो वो दूसरों के मन को भी जीत सकता है । क्योंकि रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है की हम किसी को हथियार के बल से मनुष्य को पराजित कर सकते है । लेकिन उसे जीत नहीं सकते है।

निष्कर्ष

हमें अपने मन को काबू पाने के लिए अपने सारे हीनता की भावना को दूर करना जरूरी है । यदि आप अपने मन को सशक्त बनाकर रखेंगे तो आप निश्चित ही अपने कार्य में सफल होंगे।

क्योंकि मन ही अनन्त शक्ति का स्रोत है । इस मन की शक्ति को ऋग्वेद में भी बताया गया है, की मैं ही शक्ति का केंद्र हूँ जीवनपर्यंत मेरी पराजय नहीं हो सकती है । अगर हमें अपने मन की शक्ति को दुर्लभ बना दिया है तो हमारे पास सब कुछ होते हुए भी असंतुष्ट व पराजित महसूस करेंगे।

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