करवा चौथ का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है । अक्सर करके यह त्यौहार हिन्दू धर्म के लोग मानते है । इस त्यौहार में सुहागन महिलाये अपने सुहाग (पति) के लंबी आयु के लिए व्रत रखती है । यह व्रत निर्जला होता है । चाँद निकलने के बाद ही कुछ खा सकते है । इस दिन व्रत करने वाली महिलाये पूरा सोलह श्रृंगार करती है।
करवा चौथ कब और किस दिन मनाया जाता है
हिन्दू कलैंडर के हिसाब से करवा चौथ कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है । इस बार करवा चौथ भारतीय समय के अनुसार 1 नवम्बर 2023 को मनाई जाएगी।
करवा चौथ का इतिहास
पौराणिक कथा के अनुसार सभी देवता और देत्यो के बीच बहुत भयंकर युद्ध शुरू हुआ । देवताओ की सुरक्षा के लिए ब्रम्हा जी ने उन देवताओ की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने के लिए कहे । ऐसा कहा जाता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई।
एक और कथा के अनुसार माता पार्वती जी ने भगवान शिव जी को पाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखी थी।
करवा चौथ मनाने की विधि
करवा चौथ का उपवास शादी शुदा महिलाये अपने सुहाग (पति ) के लिए रहती है । ऐसा कहा जाता है कि यह व्रत करने से उनके सुहाग की तरक्की होती है और आयु बढता है । सभी व्रती महिलाये दिन भर निर्जला व्रत रखती है और शाम को अच्छे अच्छे पकवान बनाती है । उसके बाद सोलह श्रृंगार करके तैयार होती है । कहा जाता है कि इस व्रत में पूजा करना जितना जरुरी थी, उसी प्रकार पूरा श्रृंगार करना भी जरुरी है।
इस दिन करवा चौथ माता की पूजा करते है । उन्हें पूरा सोलह श्रृंगार चढ़ाया जाता है । पूजा करने के बाद हम चाँद देखने जाते है । पहले चाँद को चालन से देखते है उसके बाद अपने पति को चालन से देखते है । फिर चाँद की पूजा करते है । उसके बाद अपने पति के हाथ से पानी पी के अपने व्रत तोड़ते है । इस प्रकार हमारी करवाचौथ की पूजा संपन्न होती है।
पूजा के समय पढ़ी जाने वाली कहानी
वीरवती नाम की एक राजकुमारी थी । बड़े होने के बाद उसकी शादी एक राजा से हुई । शादी के बाद करवाचौथ का व्रत करने के लिए वीरवती अपने माँ के घर आई । वीरवती अपने घर की लाडली बेटी और बहन थी । सात भाइयो की वह एक बहन थी । इसलिए उसे बहुत कोमल से पाला गया था । और वह बहुत नाजुक और कोमल थी।
करवाचौथ के दिन शाम होते ही वीरवती को चक्कर आने लगा । तभी उसके सातो भाइयो ने सोचा की उसका व्रत तुडवा देना चाहिए । उन्होंने पहाड़ी पर आग लगाई और उसे चाँद निकल गया बता कर व्रत तुडवा कर भोजन करवा दिये । जैसे ही उसने भोजन करना शुरू किया कि उसे खबर आई कि उसके पति की मृत्यु हो गई।
और वह तुरंत वह से रवाना हो गई । वीरवती रोते रोते जा रही थी तभी रस्ते में उसे प्रभु शिवाजी और माता पार्वती जी मिले । माता ते उसे बताया की तूने झूठा चाँद देखकर करवाचौथ का व्रत तोडा है । इसीलिए तेरे पति की मृत्यु हो गई।
करवाचौथ का इतिहास
वीरवती ने अपनी गलतियों के लिए क्षमा मागी । तब माता पार्वती जी ने वरदान दिया कि उसका पति ठीक हो जायेगा लेकिन पूरी तरह स्वस्थ नही रहेगा । वीरवती अपने महल पहुची तो देखि उसके पति बेहोश थे और उमके शरीर में बहुत सारी सुइया चुभी थी । रानी वीरवती रोज एक सुई निकलती गई।
धीरे धीरे एक साल आ गया और करवाचौथ आ गया तभी राजा के शरीर में एक ही सुई बाकि थी । रानी वीरवती ने करवा चौथ का उपवास पुरे मन से रखी और पूजा पाठ की । और आखरी सुई जो बाकि थी उनके शरीर से निकलने के बाद वीरवती के पति होश में आ गये । इस प्रकार वीरवती को उसके पति वापस मिल गये।