स्वामी दयानंद सरस्वती एक बहुत ही बुद्धिमान व बहादुर पुरूष माने जाते है जिन्होंने भारत राष्ट्र की स्वतंत्रता में तो बहुत बड़ी भूमिका निभाई है इसके अलावा समाज की कई बुराईयों व नीतियों के खिलाफ हमेशा खड़े रहे।
राजनीतिक ज्ञान के अलावा सांस्कृतिक और धार्मिक विचारों व संस्कारों के महत्व में अपनी बहुत बड़ी भूमिका देने वाले महर्षि दयानंद का नाम ख़ासकर हिंदुओं में काफी प्रसिद्ध है।
एक समाज सुधारक
स्वामी दयानन्द जी ने समाज को मेहनत, परिश्रम और पूजा के महत्त्व की पाठ पढाई।
हिंदू धर्म में, वे बहुत बड़ा बदलाव लाए। ईसाई लोगों से बैर कर लिया। इन सबके अलावा दयानंद जी को राष्ट्र की स्वतंत्रता के सबसे प्रख्यात व अहम कवि समझते हैं।
12 फरवरी वर्ष 1824 को वह गुजरात राज्य के मौरवी नामक के गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता जो अम्बाशंकर थे वो गांव के सबसे विख्यात जमींदार माने जाते थे और उनका परिवार बहुत ही सुखमय स्थिति में रहता था।
दयानंद सरस्वती की शिक्षा
सनातन धर्म के मुताबिक पांच साल में ही बालक मूलशंकर को यज्ञोपवीत संस्कार व विद्यारंभ का संस्कार प्राप्त हुआ। इनकी पढ़ाई संस्कृत शिक्षा से आरम्भ हुई। उनकी बुद्धि अधिक तेज होने की वजह से शीघ्र ही संस्कृत सीखे।
30 अक्टूबर वर्ष 1883 को वे चल बसे।स्त्री की साक्षरता को महत्वपूर्ण जगह दी । उस समय के स्वामी जी सबसे महान पुरूष माने जाते थे जो बाल विवाह के खिलाफ खड़े थे । सिर्फ़ यही ही नही सती प्रथा को खत्म करके समाज में औरतों को नई रोशनी दी और विधवाओं की दुबारा शादी को भी सहमति दी थी।
इसके अलावा जाति-धर्म पर होने वाले मारकाट भी कुछ कम हुए। प्राचीन शिक्षा जैसे संस्कृत के प्रसार के लिए गुरुकुल की निर्माण भी की गुरुकुल कांगड़ी के नाम से जो हरिद्वार में स्थित है और आज के युग में यह विश्वविद्यालय बन चुका है ।
अधिक गुणवान
अपनी अच्छे विचारों व गुणों की प्रसिद्धि होने की वजह से कई इनकी शत्रुता बढ़ गयी। उसके याद इन्हें जान से मारने की षडयंत्र होने लगी। इन सबके बावजूद कोई भी इनका बाल भी बांका नही कर पाया। छुआछूत से पीड़ित लोगों के लिए वे अनाथालय और सभी विधवा औरतों को शरण देने के लिए आश्रम बनाये।
स्वामी जी ने धर्म के ऊपर कई संख्यां में पुस्तकें लिखी। हिंदी उनकी भाषा नही होने के बावजूद वे हिन्दी और वेदों की प्रसिद्धि फैलाये। नस्कलवाद और बुरी नीतियों के जाल में फँसे जनता को ज्ञान की रोशनी दिखाई।
उन्होंने वर्ष 1875 में मुम्बई में आर्य समाज की निर्माण की जिसकी प्रख्याति सभी देशों में फैल गईं। आर्य समाज के मंदिरों को लगभग सभी विख्यात शहरों में बनाया गया है।
देश मे परिवर्तन की शुरुआत
नारी की शिक्षा के ऊपर प्रकाश डालने वाला प्रथम आर्य समाज था। एक गुजराती स्वामी दयानंद जी ने अपने विचारों को हिंदी में पेश किया, जिससे हिंदी के क्षेत्र में बहुत ही विकास देखने को मिला अर्थात एक क्रांति सी आ गयी।
पंजाब जैसे उर्दू भाषा बोले जाने वाले देशों में हिंदी को रास्ट्र भाषा का दर्जा मिला और इसी कारण दयानंद की रुचिहिन्दी की तरफ हो गयी। दयानंद जी को हिंदी भाषा में उनके समर्थन के लिए स्मरण करते रहेंगे।