हिन्दी काव्य और नाटक जगत में अपनी प्रख्याति व क्षमता दिखाने वाले महान कविवर जयशंकर लोगों के दिलो में बसे हुए हैं। उन्होंने जो रचनाएं लिखीं वो समाज के विकास औऱ राष्ट्र के हालातों को दर्शाते हैं।
जयशंकर प्रसाद माघ शुक्ल के दिन वर्ष 1946 में काशी के रहने वाले सम्मानित और संस्कारी साहू परिवार में पैदा हुए थे। इनको परिवार का सुख नहीं मिला क्योंकि जब वे केवल बारह वर्ष के थे तभी श्री देवी प्रसाद जी चल बसे।
फिर जब 15 साल के हुए तब उनकी माँ और 17 साल में बड़े भाई की मौत हो गयी। जब ऐसा हुआ तब केवल सातवीं कक्षा में ही थे।
कई भाषाओं का ज्ञान
हालांकि उन्होंने घर पर ही रहकर कई भाषाएँ सीखी जैसे अंग्रेजी, बंगाली, फारसी।
जयशंकर जी की लिखी कई रचनाएँ लोगों को भारत के सभ्यता की सच्ची झलक दिखाती है और इसके अलावा देशभक्ति की भावना भी लोगों में जागृत करती है। वे अपने कौशल से अपनी रचनाओं के विषय में कई मौलिक बदलाव किए।
कवि का अनोखा विचार
इस महान कवि ने प्राचीन और आधुनिक का अद्भुत मिश्रण किया और नई रचनाओं के साथ पेश आये। उन्होंने अपने काव्य में औरतों के कोमल व्यक्तित्वों और उनके अंदर के गुणों की सराहना पर भी ज़ोर दिया।
जयशंकर जी ने अन्य रीति-कालीन कवियों की तरह नारी का चरित्र सिर्फ नायिका की ही तरह न दिखाकर एक त्याग करने वाली बहन, प्रेम करने वाली प्रेमिका और दिलों में श्रद्धा का भाव रखने वाली माता के तौर पर भी लोगों के बीच पेश की।
कई रचनाओं की पेशकश
कविवर जयशंकर प्रसाद ने अपनी पढ़ाई घर से ही की । परन्तु ज्यादा शिक्षा वे नहीं हासिल कर पाए क्योंकि उनके पिता और बड़े भाई की मौत हो गयी जिसकी वजह से पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उन्ही पे आ गयी।
बहुत ही शुरुआत में कविवर जयशंकर ब्रजभाषा में कविता लिखते थे, लेकिन उसके पश्चात वे खड़ी बोली के काव्य की रचनाएं लिखने लगे। उनके द्वारा लिखी सबसे अहम रचनाएँ चित्राधार, कानन कुसुम, झरना व आँसू हैं।
जयशंकर द्वारा लिखी ‘कामायनी’ को सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य का खिताब मिला है।
सच्चे व्यक्तित्व के कवि
कविवर जयशंकर एक बहूत ही ईमानदार व नेक किस्म के कवि तथा नाटककार थे और इसके अलावा काफी सुलझे हुए प्रवृति के भी थे । उनके द्वारा लिखी गयी रचनाओं में सच्चाई घटनाओं पर आधारित कहानियां थी जो लोगों के भावनाओं से सबंधित थी।
जो रचनाओं उन्होंने लिखी उससे हिन्दी साहित्य जगत को बहुत उम्मीदें मिली । कविवर जयशंकर जी सदैव उन कवियों में शामिल रहेंगे जिन्होंने हिंदी साहित्य को गौरवशाली बना दिया।
उनकी सबसे पहली कविता नौ वर्ष की उम्र में दुनिया के सामने आ गयी थी। अत्यधिक कष्ट और दुखदाई परिस्थितियों की वजह से उनका पूरा परिवार कर्जों में डूब गया। कहने का तातपर्य यह है कि उनका हमेशा कष्टमय ज़िन्दगी मिली, लेकिन कविशंकर जी कभी भी हारे नहीं।
जयशंकर की मौत
इन्ही सब चिन्ताओं के कारण उनका पूरा शरीर बीमारी से ग्रस्त हो गया था और जल्द ही वे क्षयरोग से बीमार हो गए थे। दिनांक 15 नवम्बर, वर्ष 1937 को काशी के किसी जगह में उन्होंने अंतिम सांसें ली।