ईसा से कई बरस पूर्व छठीं शताब्दी के नास्तिक संसार के आचार्यों में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था जिसे सब ईश्वर का दूसरा रूप समझते हैं। कहते हैं कि सिद्धार्थ ने इस दुनिया मे दूसरों के कल्याण के लिए बहुत कुछ किया।
वे हमेशा दूसरों के दुखों को समझने वाले व्यक्ती थे। वो कभी किसी की तकलीफ नहीं देख पाते थे। इसी वजह से उनके पिताजी उन्हें दुनिया के सभी विलासिताओं में व्यस्त रखने की कोशिश करते थे, परन्तु इसके बाद भी उनका मन मोह माया में नही लगता था।
बुद्ध की जीवनी
गौतम बुद्ध के जन्म का उद्देश्य दूसरों के बारे में सोचने के लिए हुआ था। एक राजकुमार होने से पहले वे एक महान ज्ञानी, जो ध्यानमग्न था और एक शिक्षक भी थे, समस्त संसार का आज बुद्ध बनने से पूर्व, उन्हें सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था।
उनके पिता श्री शुद्दोधन थे, जो कपिलवस्तु नामक जगह के राजा थे। उनकी माता श्री माया देवी रही थीं जो सिद्धार्थ के जन्म के तुरंत पश्चात चल बसी। सिद्धार्थ का देखभाल बहुत ही नाज़ों उनकी विमाता गौतमी ने किया।
जब गौतम पैदा हुए थे तब उनके बारे में एक भविष्यवाणी की गई कि, वह एक महान व कौशल राजा बनेंगे।
ज्ञानी बुद्ध
जब वे छोटे थे तभी से दूसरों के बच्चों से बहुत ही भिन्न थे। वे विश्वभर के सभी सुखों के साथ एक बड़े से महल में रहते थे। परन्तु उनके पिता उनसे हर वक़्त परेशान रहते थे, जिसका कारण यह था कि सिद्धार्थ बाकी दूसरे राजकुमारों की भांति व्यवहार नहीं करते थे।
उनका मन दुनिया के झूठे शान से बहुत दूर रहता था। उनके सभी गुरु काफी भौचक्के रहते थे, क्योंकि वह बिना पढ़े लिखे संपूर्ण ज्ञान के मालिक थे।
दयालु स्वभाव के सिद्धार्थ
कहते हैं कि सिद्धार्थ को शिकार करना पसंद नहीं था। वैसे वह हथियारों का को उपयोग में लाने में बहुत चतुर और कौशल थे। उनका स्वभाव बहुत दयालु था। एक दिन वे शिकार पर गए तब उन्होंने एक हंस की जान की रक्षा की जिसे उनके चाचा के भाई देवब्रत ने अपने तीर के प्रहार से मार डाला था।
इसके बाद वे अपना ज़्यादातर समय अकेले विचार करने में बिताने लगे। कभी कबार, वह एक वृक्ष के नीचे ध्यान करने बैठ जाते थे। उनका ध्यान जीवन व मृत्यु के उपर लगा रहता था।
भगवान बुद्ध की शादी
भगवान बुद्ध के ध्यान को कहीं ओर खींचने के लिए उनके पिताजी ने उनका लग्न एक खूबसूरत लड़की जिसका नाम यशोधरा था, से तय किया था। परन्तु इसके बावजूद वे किसी के भी लाख कोशिशों से अपने मन को नही बदल सके।
गौतम को इससे भी सुख हासिल नही हुआ फिर उसके बाद वे इस दुनिया को त्याग करने का फैसला किये। एक रात जब वे उनकी पत्नी और पुत्र अकेले सो रहे थे तब सब कुछ त्याग कर वन की ओर प्रस्थान किये।
संसार का त्याग
अकेले में ध्यान लगाकर वे लोगों के जीवन औऱ उनकी मृत्यु, सुख और दुख जैसे विषयों पर विचार करते रहते थे । गौतम को इस तरह समस्त संसार से वैरागी बनते देखे उनके पिता को बहुत सोच में पड़ गए। उनके पिता ने उन्हें दुनिया के सभी सुख व सुविधाओं की तरफ ध्यान भटकाने की बहुत कोशिश की ।
विलासिता के लिए सामान दिया गया उन्हें। सिद्धार्थ ने बहुत बड़ी तपस्या की जिससे उनका शरीर कमज़ोर हो गया फिर उन्होंने एक बहुत ही सरल तरीके का ध्यान लगाया जिसमें उनके कई मित्रों ने उनका साथ छोड़ने का निश्चय किया।
निष्कर्ष
35 वर्ष में गौतम बुद्ध वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल की छाँव में‘ज्ञान’ हासिल किये । वे फिर लोगों के दुख औऱ उसके पीछे की वजह जान पाए ।