पूरी दुनिया के सबसे तेज बुद्धि व स्वयं के ऊपर पूर्ण रूप से ध्यानमय हो जाने वाले स्वामी विवेकानंद एक साधारण व शिक्षित परिवार से सबन्ध रखते थे। एकाग्रता व ध्यान को अपनी प्रेरणा समझने वाले इस महापुरुष ने अपने ज्ञान और बुद्धि के बल पर विवेकानंद की उपाधि हासिल की।
विवेकानंद जी ने, अपने कार्यों के द्वारा पूरी दुनिया मे भारत काको गौरवशाली बना दिया और यही वजह है कि आज के समय में भी विवेकानंद लोगों के लिए एक तरह से प्रेरणा से कम नही है।
विवेकानंद जी की जीवनी
स्वामी विवेकानंद जी 12 जनवरी, वर्ष 1863 को जन्मे थे। वे जन्म से ही महान थे। उनके पिता विश्वनाथ दत्ता व माता भुवनेश्वरी देवी । स्वामी विवेकानंद जी का नाम नरेन्द्र नाथ दत्ता पड़ा था। स्वामी जी के पिता पाश्चात्य सभ्यता को बहुत मानते थे। वे अपने पुत्र को भी अंग्रेजी की शिक्षा देकर पाश्चात्य सभ्यता के तरीके से उनकी ज़िंदगी बनाना चाहते थे।
शिक्षा काल
जब वे पांच साल की उम्र के हुए तब उन्हें मेट्रोपोलीयन इंस्टीट्यूट में दाखिला प्राप्त हुआ था। फिर वर्ष 1879 में विवेकानंद जी को जनरल असेम्बली कालेज में और बेहतर शिक्षा के लिए प्रवेश मिल गया।
उस कॉलेज में उन्होंने इतिहास, दर्शन, कला कई ऐतिहासिक व पौराणिक विषयों को बहुत ही गहराई के साथ पढाई विवेकानंद जी ने बी०ए० की परीक्षा को पहले दर्जे के साथ उत्तीर्ण करने में कामयाब हुए।
शुरुआती सफर
विवेकानंद जी को उनके शुरुआत के जीवन में नरेंद्रनाथ के नाम से प्रसिद्धि मिली थी। एक सुखी व सम्पन्न परिवार मेंसे सम्बंधित होने के कारण उन का पालन-पोषण बड़े ही विशाल तरीके से हुआ था।
यही वजह थी कि यह बच्चा का बालपन हठी बन गया था। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने कर्म और निष्ठा के लिए अपनी ख़ुद की आत्मा के साथ मजबूत सा सम्बन्ध बनाये जिससे उनके ज्ञानमें वृद्धि होती चली गई।
स्वामी जी का ज्ञान
स्वामी विवेकानंद जी जब बच्चे थे तब उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। इसके अलावा भी कई अन्य नाम थर जैसे नरेंद्र और नरेन। स्वामी विवेकानंद के माता पिता विश्वनाथ व भुनेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध था।
उनके पिताजी कोलकाता के ऊंचे दर्जे के न्यायालय में वकील के पद पर थे और उनकी माता एक धार्मिक तरह की औरत थी। स्वामी जी के तर्कसंगत मन व माता के धार्मिक स्वभाव वाले माहौल के अंदर सबसे प्रेरित व्यक्तित्व में ततब्दील हुए थे।
स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही ध्यान व मन को लगाने वाले व्यक्ति थे और हिंदू देवताओं की मूर्तियां जैसे भगवान शिव हनुमान जी जैसे के सामने मन को ठोस किया करते थे।
वह अपने समय के घूमकर ध्यान केंद्रित करने वाले सन्यासियों व शिक्षकों से भी प्रेरणा लेते थे। स्वामी विवेकानंद बचपन में एक तरह का शरारती प्रवित्ति के हुआ करते थे और अपने माता-पिता की एक न सुनते थे।
निष्कर्ष
स्वामी विवेकानंद हिंदूओं के लिए काफी आदर का भाव रखते थे। इसके अलावा है वे हिंदू धर्म के ऊपर प्रकाश डालते हुए देश में रह रहे भिन्न तरह के लोगों के बीच नई सोच का को पैदा करने में भी काफा भूमिका निभाये थे।
वह पश्चिम में मन को केंद्रित करने वाला योग व आत्म ध्यान के कई दूसरे भारतीय आध्यात्मिक तरीकों को महत्व देने के लिए भी सफल हुए। स्वामी विवेकानंद रास्ट्र के लोगों के लिए एक सच्चाई व आदर्श का पुतला थे।